Bihar Chunav 2025: आज भी RJD का पीछा क्यों नहीं छोड़ती 'जंगल राज' की परछाई? कहां से आया ये शब्द और क्या है इसका मतलब

Bihar Elections 2025: आज के कई युवा जो वोट दे रहे हैं, वे तब जन्मे भी नहीं थे, जब RJD सत्ता में थी। फिर भी, अगर NDA नेताओं की बात मानी जाए तो 'जंगल राज' की डरावनी कहानियां जनरेशन से जनरेशन तक लोककथाओं की तरह फैल रही हैं, जिसमें बिहार को 'बैड लैंड' बताया जाता है

अपडेटेड Oct 31, 2025 पर 3:05 PM
Story continues below Advertisement
Bihar Chunav 2025: आज भी RJD का पीछा क्यों नहीं छोड़ती 'जंगल राज' परछाई?

जब RJD ने 2005 में बिहार में सत्ता खोई, तब तेजस्वी यादव, जो वर्तमान में विपक्ष के मुख्यमंत्री चेहरे हैं, वे केवल 16 साल के थे। इसके फिर चाहे वो 2015 का चुनाव हो, 2020 का चुनाव हो या अब 2025 का चुनाव हो, तेजस्वी के सामने RJD के 'जंगल राज' का साया मंडराता ही रहता है। इस बार भी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह तक ने 'जंगलराज' के जरिए RJD पर हमला करने के लिए इस्तेमाल किया है। आज के कई युवा जो वोट दे रहे हैं, वे तब जन्मे भी नहीं थे, जब RJD सत्ता में थी। फिर भी, अगर NDA नेताओं की बात मानी जाए तो 'जंगल राज' की डरावनी कहानियां जनरेशन से जनरेशन तक लोककथाओं की तरह फैल रही हैं, जिसमें बिहार को 'बैड लैंड' बताया जाता है।

'जंगल राज' शब्द पहली बार 1997 में इस्तेमाल हुआ, जो उस समय के वर्तमान अर्थ से काफी अलग था। उस वक्त लालू प्रसाद, जो फोडर घोटाले में फंसे थे, मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे चुके थे और राबड़ी देवी ने पद संभाला था। पानी जमा होने और खराब नाली व्यवस्था पर सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने कहा था कि पटना की हालत 'जंगल राज' से भी बदतर है। उस समय राजनीतिक विपक्ष ने इस शब्द को पकड़ लिया और यह जल्दी ही RJD की 15 साल की सरकार से जुड़ गया।

क्या था जंगल राज?


तो 'जंगल राज' था क्या? क्या यह प्रशासनिक दूरदर्शिता की कमी थी, खराब GDP की दर थी, बूथ कैप्चरिंग का आरोप था, फिरौती के लिए अपहरण थे, सड़कों पर लूटपाट थी, और लगातार हो रहा कत्लेआम था? या इन सब का एक मिक्सचर था?

RJD के सत्ता काल को तीन चरणों में बांटा जा सकता है- राजनीति का मंडलीकरण, राजनीति का धर्मनिरपेक्षीकरण, और राजनीति का यादवाईकरण।

पहले दो चरणों में लालू प्रसाद, जो गोरखपुर जिले के फुलवारीया गांव के साधारण व्यक्ति थे, मुख्यमंत्री बने और कांग्रेस के ऊपरी जाति प्रभुत्व से OBC-केंद्रित राजनीति की दिशा में पहला वास्तविक बदलाव देखा गया। लालू के सत्ता में आने के बादे 35 सालों से ऊपरी जातियों का बिहार की राजनीति पर जमा प्रभुत्व खत्म हो गया।

लालू ने मंडल आंदोलन का इस्तेमाल कर OBC/EBC/दलित वोट को मजबूत किया। 1989 के भागलपुर दंगों ने उन्हें 17% मुस्लिम वोटों का पहला विकल्प बना दिया, जो कांग्रेस के घाटे में गया। 1990 में लालू प्रसाद का BJP नेता एलके आडवाणी के रथ को समस्तीपुर में रोकना, उन्हें धर्मनिरपेक्ष वोटरों का हीरो बना गया।

तीसरे चरण में यादवाईकरण आता है, जिसमें लालू ने अपने यादव समुदाय को ज्यादा सशक्त बनाने पर ध्यान दिया, जिससे गैर यादव OBC, EBC और दलित धीरे-धीरे अलग हो गए। इससे ही नीतिश कुमार नेतृत्व वाली NDA को 2005 में सत्ता हासिल हुई।

लेकिन लालू के साथ जो एक गहरी छवि जुड़ी वो 'राजनीति की अपराधीकरण' की है।

अपहरण और हत्याओं का दौर

अपहरण के मामले देखें, तो 2001-2004 (राबड़ी देवी शासन के तहत) बिहार पुलिस ने 1,527 मामले दर्ज किए, जबकि 2006-2009 में सिर्फ 429। 2005 में पटना के एक स्कूल के छात्र किस्लय के अपहरण ने सुर्खियां बटोरीं, जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा, "मेरा किस्लय लौटा दो।" किस्लय आखिरकार घर लौटा, लेकिन यह बिहार में अपहरण का खुशहाल अंत होने वाले कुछ ही मामलों में से एक था।

फिर आती हैं जातिगत कत्लेआम की घटनाएं। 1976 के अकौड़ी (भोजपुर) से लेकर 2001 के करियामबुरा (जहानाबाद) तक, 1977 से 2001 के बीच 737 लोग, जिनमें कई पुलिसकर्मी शामिल थे, मारे गए। ज्यादातर हत्या- 337, 1994 से 2000 के बीच हुई, जिनमें 50 वामपंथी चरमपंथी थे।

1991 से 2001 के बीच 58 कत्लेआम हुए, जिनमें 566 लोग मरे, जिनमें 343 SC/OBC कृषि मजदूर और 128 ऊपरी जाति के जमींदार थे।

1997 में 12 कत्लेआम हुए, जिनमें 130 लोग मरे। इसके पिछले साल 1996 में 11 कत्लेआम में 76 मौतें हुईं। 1999 में सात कत्लेआमों में 108 मौतें हुईं, और 2000 में पांच कत्लेआमों में 69 मौतें। 2001 में दो कत्लेआम हुए, जिनमें 11 लोग मरे।

लालू-राबड़ी काल के सबसे कुख्यात कत्लेआम

लालू-राबड़ी काल के सबसे कुख्यात कत्लेआम थे- 1992 में बारा (गया), जिसमें 34 ऊपरी जाति जमींदार मरे; 1996 में भठानितोला (भोजपुर), जिसमें 22 अनुसूचित जाति और मुस्लिम कृषि मजदूर मरे; 1997 में लक्ष्मणपुर बाथे (अरवल) में 58 अनुसूचित जाति के कृषि मजदूर मारे गए; 1998 में शंकरबिघा (जहानाबाद) में 23 SC मरे; और 1999 में सेनारी (जहानाबाद) में 35 ऊपरी जाति के लोग मारे गए।

Indian Express के मुताबिक, मृत्युनजय शर्मा, जिन्होंने किताब 'ब्रोकन प्रॉमिसेज: कास्ट, क्राइम एंड पॉलिटिक्स इन बिहार' लिखी है, कहते हैं, 'सामाजिक न्याय की आड़ में राज्य संस्थानों का सिस्टामेटिक ढांचा खोखला किया गया। 1992 में 384 IAS अधिकारियों में से 144 ने केंद्रीय डिपार्टमेंट में जाने की इच्छा जताई, जो उस समय की गंभीर स्थिति को दर्शाता है।

पुलिस राजनीतिक दावे का माध्यम बनी और अक्सर अपराधों में शामिल रही। कमजोरों को सशक्त बनाने के नाम पर बिहार ने नई पावर हायरार्की देखी, जो उन्हीं बहिष्कारों को प्रतिबिंबित करती थी जिनका विरोध करती थी।'

शर्मा ने बताया कि 1990 के दशक के आखिर तक प्रवासन यानी पलायन ही लाखों लोगों के लिए एकमात्र रास्ता बन गया। उन्होंने कहा, "एक पूरी पीढ़ी इस विश्वास के साथ बड़ी हुई कि प्रगति बिहार की सीमाओं के बाहर ही है। एक राज्य जो पहले से ही कामगार सप्लाई करता था, 1991 से 2001 के बीच पलायन में 200% की बढ़ोतरी देखी गई।'

'जंगल राज' पर RJD की सफाई

RJD कहती है कि 'जंगल राज' शब्द का इस्तेमाल लालू-राबड़ी के सामाजिक न्याय की उपलब्धियों से ध्यान हटाने के लिए किया जाता है। पिछले कुछ सालों से यह नीतिश सरकार के अपराध आंकड़ों पर सवाल उठाने लगा है।

RJD के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुबोध कुमार का कहना है, "जंगल राज का नारा लगाना फैशन हो गया है ताकि पिछले 20 सालों में 60,000 हत्याओं से बचा जा सके। 1 जुलाई की CAG रिपोर्ट के अनुसार, नीतिश सरकार ने 70,877.61 करोड़ रुपए के फंड के इस्तेमाल के प्रमाण पत्र जमा नहीं किए। सरकार अब तक इसका हिसाब नहीं दे पाई।"

सुबोध कुमार ने यह भी कहा कि लालू प्रसाद ने हमेशा 'गरीबों और दीन-दुबलों' की आवाज उठाई है।

उन्होंने कहा, "केंद्रिय रेलवे मंत्री के रूप में उन्होंने रेलवे की सेहत में सुधार किया। तेजस्वी यादव ने उप मुख्यमंत्री के रूप में 5 लाख नौकरियां दिलाने में प्रमुख भूमिका निभाई। जब NDA के पास कहने के लिए कुछ नहीं होता तो वे जंगल राज का सहारा लेते हैं।"

Bihar Chunav 2025: जाके संग रहल नारी, ओही के किस्मत खुली भारी! NDA या महागठबंधन किसको मिलेगा महिलाओं का साथ?

हिंदी में शेयर बाजार स्टॉक मार्केट न्यूज़,  बिजनेस न्यूज़,  पर्सनल फाइनेंस और अन्य देश से जुड़ी खबरें सबसे पहले मनीकंट्रोल हिंदी पर पढ़ें. डेली मार्केट अपडेट के लिए Moneycontrol App  डाउनलोड करें।