'वोट चोरी' आंदोलन राहुल गांधी के लिए अग्निपरिक्षा! जीत गए बिहार तो बल्ले-बल्ले, अगर हो गई हार तो सब बेकार
राहुल गांधी को यकीन था कि हार कांग्रेस की गलती नहीं थी, बल्कि भाजपा और चुनाव आयोग की मिलीभगत से हुई थी। और तभी एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप ऑफ लीडर्स एंड एक्सपर्ट्स (EAGLE) का विचार आया, जिसका उद्देश्य चुनाव आयोग और चुनावों के कामकाज पर केंद्रित था।
'वोट चोरी' आंदोलन राहुल गांधी के लिए अग्निपरिक्षा! जीत गए बिहार, तो बल्ले-बल्ले
राहुल गांधी एक मिशन पर हैं - चुनावी व्यवस्था में लोगों का विश्वास जगाना। लेकिन क्या चुनाव आयोग (EC) के खिलाफ उनका आंदोलन उनके 'चौकीदार चोर है' अभियान की तरह ही खत्म हो जाएगा? कहानी महाराष्ट्र और हरियाणा के नतीजों तक जाती है। जैसे ही भारतीय जनता पार्टी (BJP) की जीत स्पष्ट हुई, कांग्रेस में कई लोग, खासकर राहुल गांधी के करीबी, चौंक गए। उन्हें यकीन हो गया कि कुछ तो गड़बड़ है।
गांधी को यकीन था कि हार कांग्रेस की गलती नहीं थी, बल्कि भाजपा और चुनाव आयोग की मिलीभगत से हुई थी। और तभी एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप ऑफ लीडर्स एंड एक्सपर्ट्स (EAGLE) का विचार आया, जिसका उद्देश्य चुनाव आयोग और चुनावों के कामकाज पर केंद्रित था।
सूत्रों का कहना है कि विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR), 'वोट चोरी' के खिलाफ पूरे अभियान की निगरानी और माइक्रो मैनेजमेंट राहुल गांधी खुद पर्सनल लेवल पर किया।
उन्होंने अपने पार्टी सहयोगियों से कहा है कि वे इस अभियान को आगे बढ़ाएं, क्योंकि अगर चुनाव में गड़बड़ी हुई तो "चाहे हम कितनी भी मेहनत कर लें, हम कभी नहीं जीत पाएंगे"।
INDIA ब्लॉक, TMC और #votechori
गांधी ने कई पहल की हैं। एक, कभी बिखरी हुए भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन (INDIA) ब्लॉक के नेताओं से व्यक्तिगत रूप से संपर्क करना।
बड़ी कामयाबी तृणमूल कांग्रेस को अपने साथ लाने में रही, जो कई वजहों से कांग्रेस से नाराज चल रही थी। दरअसल, सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस ने टीएमसी को मनाने के लिए ममता बनर्जी के समर्थक शुभंकर सरकार को बंगाल कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया।
इसलिए जब उन्होंने फोन उठाया, और अभिषेक बनर्जी से बात की और SIR मुद्दे पर एक साथ आने के लिए कहा, तो ऐसा करना मुश्किल नहीं था, क्योंकि TMC भी 2026 में राज्य चुनावों से पहले BJP और चुनाव आयोग के खिलाफ अभियान चला रही है।
ऐसे काफी समय बाद हुआ था, जब TMC ने कांग्रेस की तरफ से आयोजित किसी समारोह में भाग लिया।
इतना ही नहीं, गांधी ने शीर्ष नेताओं से यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि सभी पार्टी नेता अपने मतभेद भुलाकर SIR और 'वोट चोरी' अभियान पर एक साथ लड़ें।
राहुल गांधी के आग्रह के कारण ही शशि थरूर और मनीष तिवारी से संपर्क किया गया और हैरानी की बात है कि दोनों ही चुनाव आयोग के मुद्दे पर पार्टी के साथ मजबूती से खड़े रहे।
'वोट अधिकार यात्रा'
लेकिन राहुल गांधी यहीं नहीं रुक रहे हैं। उन्होंने एक ऑनलाइन जन अभियान शुरू किया है, जिसमें लोगों से या तो एक लिंक पर क्लिक करने या मिस्ड कॉल देने के लिए कहा गया है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि ज्यादा से ज्यादा लोग उनका समर्थन करें।
इसके बाद बिहार के सासाराम से एक तरह की भारत जोड़ो यात्रा निकाली जाएगी, जिसे 'मतदाता अधिकार यात्रा' कहा जाएगा, ताकि लोगों को "चुनाव आयोग के अत्याचार" के प्रति "जागृत" किया जा सके। यह यात्रा लगभग 15 दिनों तक चलेगी, जिसका समापन पटना में एक बड़ी INDIA ब्लॉक महारैली के रूप में होगा।
सासाराम से शुरुआत करना एक दिलचस्प विकल्प है, क्योंकि यह कभी राजा हरिश्चंद्र का राज्य था, जिन्होंने अपने सिद्धांतों के लिए अपना राज्य त्याग दिया था, एक ऐसी कहानी जिसे राहुल गांधी अपने बारे में बताना चाहते हैं।
लेकिन क्या गांधी अपने सारे अंडे एक ही टोकरी में डाल रहे हैं? क्या यह जोखिम उठाने लायक है? क्योंकि इस जोखिम का नतीजा बिहार चुनाव के नतीजे होंगे। अगर कांग्रेस और RJD हार जाते हैं, तो इसे राफेल और 'चौकीदार चोर है' की तरह ही राहुल गांधी के एक और अभियान की विफलता के रूप में देखा जाएगा।
यह एक बार फिर राहुल गांधी के लिए अग्निपरीक्षा होगी।