Cinema Ka Flashback: आज मौसम बड़ा बेईमान है....,पुकारता चला हूं मैं..., गुलाबी आंखें जो तेरी देखीं... किंग ऑफ मेलॉडी के नाम से मशहूर मोहम्मद रफी संगीत की दुनिया के बादशाह थे। उन्होंने 25 हजार से ज्यादा गानों को अपनी सुरीली आवाज दी है। आज भी रफी के गाने यह किसी की जुबान पर रहते हैं। रफी साहब को इस दुनिया से गए हुए 45 साल हो चुके हैं, लेकिन उनकी यादें आज भी जहन में जिंदा हैं।
रफी साहब ने सिर्फ 13 साल की उम्र में पहला गाना गया था। अपने सुनहरे करियर में उन्होंने 25 हजार से ज्यादा हिट गाने कई भाषा में गए हैं। मोहम्मद रफी को पहली बार के एल सहगल ने लाहौर में एक कॉन्सर्ट के दौरान गाना गाने का सुनहरा मौका दिया था। 1948 में उन्होंने राजेंद्र कृष्णन का लिखा गाना 'सुनो सुनो ऐ दुनिया वालों बापू की ये अमर कहानी' को अपनी आवाज दी थी। यह गाना लोगों के साथ-साथ पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भी काफी पसंद था। उन्होंने खुश होकर रफी को अपने घर पर आने का न्योता दिया था और गाना गाने के लिए कहा था। कहा जाता है कि रफी ने जब अपने भाई की दुकान पर एक फकीर का गाना सुना उसके बाद से ही उन्होंने संगातकार बनने की कसम खा ली थी।
रफी साहब ने अपने करियर कई तरह के अलग-अलग गाने गाए हैं। उन्होंने सेड सॉन्ग भी गाए हैं। दर्दभरे गाने को गाकर सभी की आंखें नम हो गईं थी। ऐसा ही एक सुपरहिट गाना उन्होंने गाया, जिसे गाते हुए वो खुद ही रो पड़े थे। ‘नीलकमल’ फिल्म के गीत 'बाबुल की दुआएं लेती जा' को गाते गाते रफी सहाब बहुत रोए थे। इसके पीछे की एक वजह थी कि रिकॉर्डिंग से एक दिन पहली ही उनकी बेटी का रिश्ता पक्का हुआ था। दो दिन बाद शादी थी। इस गाने को गाते उन्हें अपनी बेटी विदाई का समय महसूस हो गया था। मोहम्मद रफी को इस गाने के लिए नेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया था।
मोहम्मद रफी ने 'लैला मजनू' और 'जुगनू' जैसी फिल्मों में अपनी अदाकारी भी दिखाई थी। उन्होंने ने कई सुपरहिट गाने गाए थे। 31 जुलाई 1980 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था। कहा जाता है जब उनका निधन हुआ तो तेज बारिश हो रही थी, बावजूद इसके उनके जनाजे में करीब 10 हजार से ज्यादा लोग पहुंचे थे।
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