निर्देशक – वेंकट कल्याण और अभिषेक जायसवाल
लेखक – वेंकट कल्याण
मुख्य कलाकार – सुधीर बाबू, सोनाक्षी सिन्हा, दिव्या खोसला, शिल्पा शिरोडकर, इंदिरा कृष्णा, राजीव कनकाला, रवि प्रकाश, रोहित पाठक, झांसी, सुभालेखा सुधाकर
रेटिंग – 3.5
अवधि – 135 मिनट
Jatadhara Movie Review: सुधीर बाबू, सोनाक्षी सिन्हा और दिव्या खोसला कुमार ने इस बार अपने नए प्रोजेक्ट जटाधारा के जरिए दर्शकों को एक नया एक्सपीरिएंस दिया है। फिल्म केवल कहानी नहीं बल्कि थिएटर में बैठकर महसूस करने वाली एक रोमांचक ट्रिप है। कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जिन्हें बड़े पर्दे पर देखना ही जरूरी होता है, और जटाधारा उनमें से एक है।
निर्देशक वेंकट कल्याण और अभिषेक जायसवाल ने इस फिल्म में बहुत साहसिक कदम उठाया है। उन्होंने पारंपरिक पौराणिक कथाओं और आधुनिक विज्ञान को जोड़कर एक नया फ्रेम तैयार किया है। यह फिल्म न केवल सुपरनैचुरल थ्रिलर है बल्कि यह दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर करती है कि विज्ञान और आस्था, तर्क और विश्वास के बीच क्या संतुलन हो सकता है।
कहानी हमें केरल के अनंथा पद्मनाभ स्वामी मंदिर की रहस्यमय गलियारों में ले जाती है। यहां एक प्राचीन अनुष्ठान पिशाच बंधनम छुपे खजाने की रक्षा करता है। यह अनुष्ठान आत्माओं को बांधकर मंदिर की सुरक्षा करता है और खजानों की रक्षा सुनिश्चित करता है। फिल्म में जिस तरह से पुराने पौराणिक विश्वासों को आधुनिक तर्क और वैज्ञानिक उपकरणों के साथ पेश किया गया है, वह बेहद ताजगी और रोमांच से भरपूर है।
हर सीन दर्शक को यह एहसास कराता है कि यह केवल कहानी नहीं बल्कि एक रहस्यमय यात्रा है। पुराने मंत्र, प्राचीन अनुष्ठानों और विज्ञान के आधुनिक उपकरणों का मिक्स फिल्म को अलग और अनोखा बनाता है।
सुधीर बाबू ने शिव के किरदार में अपनी क्षमता और प्रभावशाली स्क्रीन प्रेजेंस का बेहतरीन प्रदर्शन किया है। शिव एक ऐसा किरदार है जो केवल तर्क और विज्ञान में विश्वास करता है, लेकिन परिस्थितियों की जटिलताओं और अलौकिक शक्तियों के सामने वह अपनी आस्था को भी समझता है। उनके चेहरे के भाव, आंखों की गहराई और शानदार एक्टिंग दर्शकों को पूरी तरह उनके किरदार से जोड़ पाती है।
सोनाक्षी सिन्हा ने धना पिशाची के रूप में अपनी पहली तेलुगु फिल्म में दमदार छवि पेश की है। उनका किरदार लालच, दुख और शक्ति से भरा हुआ है। उनकी आंखों में डर, उनका प्रभावशाली स्टाइल और स्क्रीन पर उनका वर्चस्व दर्शक को इम्प्रेस करता है। उनका ट्रांसफॉमेशन दैवीय और डरावना दोनों है, और यही इस फिल्म का सबसे यादगार सीन है।
दिव्या खोसला कुमार ने सितारा के किरदार में अपनी अच्छा काम किया है। शिल्पा शिरोडकर और इंदिरा कृष्णा ने फिल्म में इमोशनल एक्सप्रेशन से दिल जीत लिया है। सपोर्टिंग एक्टर राजीव कनकला, रवि प्रकाश, और सुभालेखा सुदाकर ने भी अपने किरदारों में जान डाल दी है, जिससे कहानी की विश्वसनीयता बनी रहती है।
साई कृष्ण कार्ने और श्याम बाबू मेरिगा के डायलॉग सरल, साफ और इम्पेक्ट छोड़ने वाले हैं। फिल्म में डायलॉग विज्ञान और आस्था, तर्क और विश्वास के बीच संतुलन बनाए रखते हैं। कई डायलॉग ऐसे हैं जो दर्शक के दिमाग और दिल दोनों में छू जाते हैं।
समीर कल्याणी की सिनेमेटोग्राफी जटाधारा की सबसे बड़ी ताकत है। मंदिर की अंधेरी गलियारियों में रोशनी और धुएं का संयोजन, मंत्रों की आवाज़ और प्राचीन वास्तुकला दर्शक को पूरी तरह फिल्म की दुनिया में ले जाती है। प्रत्येक अनुष्ठान सीन एक चित्र की तरह लगता है—टिमटिमाती दीयों की रोशनी, उठता धुआं, मंत्रों का गान और रहस्यमय परछाइयां।
विज़ुअल इफेक्ट्स फिल्म की सुपरनैचुरल घटनाओं को यथार्थ और डरावना बनाते हैं। धना पिशाची के रूप में सोनाक्षी का प्रकट होना डरावना, भव्य और यादगार है। विजुअल इफेक्ट्स कहीं भी ओवर-द-टॉप नहीं लगे, बल्कि नेचुरल और वास्तविक हैं।
राजीव राज का संगीत फिल्म की आत्मा है। मंदिर की घंटियां, मंत्रों की आवाज़ और चुप्पी का बैलेंस फैंस की भावनाओं को सीधे इंप्रैस करता है। क्लाइमैक्स और रहस्यमय सीन में साउंड डिजाइन फिल्म के हॉरर इमोशन को पूरी तरह उभारते है।
फिल्म के एक्शन सीन केवल लड़ाई नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक और दृश्यात्मक एक्सपीरिएंस हैं। सुधीर बाबू के भूत को पकड़ने वाले सीन, हथियार से होने वाली लड़ाइयां, और लास्ट में खून पीने वाले सीन एक्साइटमेंट पैदा करने वाले हैं। मार्शल आर्ट्स और पौराणिक प्रतीकों का संयोजन इन सीन्स को बेहद अटरेक्टिव और यादगार बनाता है।
जटाधारा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह सिर्फ डराने या रोमांचित करने वाली फिल्म नहीं है। यह फिल्म दर्शकों को सोचने, महसूस करने और अनुभव करने पर मजबूर करती है। निर्देशक वेंकट कल्याण और अभिषेक जायसवाल ने एक शानदार फिल्म बनाई है। अगर आप इस वीकेंड थिएटर में बैठकर कुछ अलग, रहस्यमय और भावनात्मक अनुभव लेना चाहते हैं, तो जटाधारा आपके लिए है। इस वीकेंड जटाधारा जरूर देखें। यह फिल्म आपको एक ऐसा अनुभव देगी जिसे आप केवल थिएटर में बैठकर पूरी तरह महसूस कर सकते हैं।
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