बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता और फिल्म निर्देशक मनोज कुमार का 87 साल की उम्र में निधन हो गया। देशभक्ति फिल्मों के लिए मशहूर मनोज कुमार को 'भारत कुमार' के नाम से भी जाना जाता जाता था। उन्होंने मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में शुक्रवार सुबह अंतिम सांस ली। वो देश भक्ति फिल्मों के लिए जाने जाते थे। उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया था। उन्हें भारतीय सिनेमा और कला में उनके योगदान के लिए भारत सरकार की ओर से साल 1992 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इसके अलावा साल 2015 में सिनेमा के क्षेत्र में सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। मनोज कुमार के निधन से बॉलीवुड में शोक की लहर दौड़ गई है। तमाम फैंस और सेलेब्स दिग्गज अभिनेता के निधन पर दुख जाहिर कर रहे हैं।
अशोक पंडित ने मनोज कुमार को दी श्रद्धांजलि
मनोज कुमार के निधन पर फिल्म निर्माता अशोक पंडित ने कहा कि महान दादा साहब फाल्के पुरस्कार विजेता, हमारे प्रेरणास्रोत और भारतीय फिल्म उद्योग के 'शेर' मनोज कुमार जी अब हमारे बीच नहीं रहे। यह उद्योग के लिए बहुत बड़ी क्षति है और पूरी इंडस्ट्री उन्हें याद करेगी।
कैसे हुई मनोज कुमार की मौत?
मनोज कुमार के बेटे कुणाल गोस्वामी ने बताया कि ‘भारत कुमार’ लंबे समय से स्वास्थ संबंधी बीमारी से जूझ रहे थे। हालांकि, उन्होंने बड़ी ही बहादुरी से इसका सामना किया। आज सुबह 3:30 बजे उन्होंने कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में आखिरी सांस ली। उन्होंने आगे यह भी बताया कि मनोज कुमार का अंतिम संस्कार कल किया जाएगा।
जानें मनोज कुमार का असली नाम
मनोज कुमार का जन्म 24 जुलाई 1937 को पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में हुआ था। उस दौर में पाकिस्तान नहीं बना था। उनका असली नाम हरिकृष्ण गिरी गोस्वामी था। जब वह 10 साल के थे तो उनका परिवार बंटवारे के कारण दिल्ली आ गया था। उन्होंने अपने आदर्श दिलीप कुमार के सम्मान में अपना स्क्रीन नेम मनोज कुमार रखा था। उनकी सिनेमाई यात्रा ऐसे दौर में शुरू हुई जब भारतीय सिनेमा बदलाव के दौर से गुजर रहा था। मनोज कुमार ने अपने अभिनय कौशल से ही नहीं, बल्कि फिल्मों में देशभक्ति और सामाजिक चेतना को जीवंत करने की क्षमता से खुद को अलग साबित कर दिया था।
मनोज कुमार ने 'सहारा' (1958), 'चांद' (1959) और 'हनीमून' (1960) जैसी फिल्मों में काम किया। इसके बाद उन्होंने 'कांच की गुड़िया' (1961) फिल्म में काम किया। इस फिल्म में वो पहली बार लीड रोल में दिखे। इसके बाद 'पिया मिलन की आस' (1961), 'सुहाग सिंदूर' (1961), 'रेशमी रूमाल' (1961) में आई थी। उन्हें सबसे अधिक सफलता साल 1962 में विजय भट्ट की 'हरियाली और रास्ता' से मिली। इस फिल्म में माला सिन्हा थीं। इसके बाद 'शादी' (1962), 'डॉ. विद्या' (1962) और 'गृहस्थी’ (1963) फिल्मों में काम किया। इस फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर जमकर धमाल मचाया।