Haq Lands In Trouble: कानूनी पचड़े में फंसी यामी गौतम-इमरान हाशमी की फिल्म हक, शाहबानो की फैमली ने रिलीज पर रोक लगाने की मांग की

Haq Lands In Trouble: यामी गौतम और इमरान हाशमी की फिल्म हक पर कानूनी विवाद शुरू हो गया है। शाह बानो बेगम की फैमली ने इंदौर उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दावा किया है कि फिल्म शरिया कानून को गलत तरीके से पेश करती है।

अपडेटेड Nov 02, 2025 पर 2:31 PM
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कानूनी पचड़े में फंसी यामी गौतम-इमरान हाशमी की फिल्म हक

Haq Lands In Trouble: यामी गौतम और इमरान हाशमी शाह बानो बेगम मामले से प्रेरित अपनी आगामी कोर्टरूम ड्रामा फिल्म "हक़" की रिलीज़ की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन अब यह फिल्म कानूनी पचड़े में पड़ गई है क्योंकि शाह बानो बेगम के कानूनी उत्तराधिकारियों, जिनका प्रतिनिधित्व एडवोकेट तौसीफ वारसी कर रहे हैं, ने इंदौर उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर यामी गौतम धर और इमरान हाशमी अभिनीत आगामी फिल्म "हक़" की रिलीज़ पर रोक लगाने की मांग की है।

उनका दावा है कि फिल्म शरिया कानून को गलत तरीके से पेश करती है, मुसलमानों की भावनाओं को ठेस पहुंचाती है और निर्माताओं ने शाहबानो के परिवार से कोई अधिकार परमीशन नहीं ली है। इस मामले की सुनवाई जल्द ही होगी।

हक 1985 में मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बेस्ड है। एक ऐसा फैसला जिसने भारतीय कानून के तहत एक मुस्लिम महिला के गुजारा भत्ता पाने के अधिकार को बरकरार रखा था। यह फिल्म पत्रकार जिग्ना वोरा की किताब बानो भारत की बेटी पर आधारित है और इस मामले से जुड़े कानूनी, भावनात्मक और सामाजिक उथल-पुथल को नाटकीय रूप से पेश करती है।

यामी फिल्म में शाज़िया बानो का किरदार निभा रही हैं, जो न्याय के लिए कानूनी व्यवस्था से पंगा लेती है, जबकि इमरान हाशमी उनके पति और वकील अब्बास खान का किरदार निभा रहे हैं। निर्देशक सुपर्ण वर्मा ने "हक़" को आस्था, समानता और साहस पर आधारित एक सशक्त कहानी बताया हैये विषय आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने चार दशक पहले थे।

मूलत, "हक़" एक सशक्त कोर्टरूम ड्रामा है, जो कानूनी सीमाओं से परे जाकर आस्था, समानता और सत्य की कीमत जैसे व्यापक प्रश्नों की पड़ताल करता है। कहानी यामी गौतम द्वारा अभिनीत शाज़िया के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक ऐसी महिला है जो न्याय की तलाश में व्यवस्था और सामाजिक रूढ़ियों, दोनों को चुनौती देती है। अन्याय के विरुद्ध खड़े होने का उसका दृढ़ संकल्प महिलाओं की स्वायत्तता और आस्था पर एक राष्ट्रव्यापी चर्चा को जन्म देता है।


इमरान हाशमी उनके पति - एक वकील और अदालत में उनके अप्रत्याशित प्रतिद्वंदी - की भूमिका निभाते हैं, जिनका शाज़िया के साथ वैचारिक टकराव फिल्म का भावनात्मक और बौद्धिक केंद्रबिंदु बन जाता है। अदालती मुक़ाबले सिर्फ़ क़ानूनी द्वंद्व के रूप में ही नहीं, बल्कि दृढ़ विश्वास, प्रेम और पहचान के बीच गहरी व्यक्तिगत लड़ाई के रूप में भी सामने आते हैं।

फ़िल्म में शीबा चड्ढा, दानिश हुसैन, असीम हट्टंगडी और नवोदित वर्तिका सिंह भी महत्वपूर्ण भूमिकाओं में हैं। पत्रकार जिग्ना वोरा की किताब "बानो: भारत की बेटी" पर आधारित यह फ़िल्म एक बुनियादी सवाल उठाती है - क्या न्याय को कभी धर्म से अलग किया जा सकता है?

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