AI-171 के आखिरी 120 सेकेंड का राज, ब्लैक बॉक्स में छिपी है मौत की मिस्ट्री, CVR और FDR से खुलेंगी सारी परतें

Air India Plane Crash: CVR और FDR- इन दोनों डिवाइस को मिलाकर आमतौर पर “ब्लैक बॉक्स” कहा जाता है। हर हवाई हादसे की जांच में इनका सबसे अहम रोल होता है। आइए समझते हैं कि ये दोनों डिवाइस क्या करते हैं, एक-दूसरे से कैसे अलग हैं, और क्यों ये अहमदाबाद की दुर्घटना की जांच में निर्णायक साबित हो सकते हैं

अपडेटेड Jun 16, 2025 पर 3:57 PM
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Air India Plane Crash: AI-171 के आखिरी 120 सेकेंड का राज, ब्लैक बॉक्स में छिपी है मौत की मिस्ट्री, CVR और FDR से खुलेंगी सारी परतें

एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171 के मलबे से कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) और फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR) बरामद होने के बाद, जांचकर्ता अब यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि 12 जून को अहमदाबाद एयरपोर्ट के पास दुर्घटना से पहले आखिरी पलों में असल में क्या गलत हुआ था। इन दोनों डिवाइस को मिलाकर आमतौर पर “ब्लैक बॉक्स” कहा जाता है। हर हवाई हादसे की जांच में इनका सबसे अहम रोल होता है।

आइए समझते हैं कि ये दोनों डिवाइस क्या करते हैं, एक-दूसरे से कैसे अलग हैं, और क्यों ये अहमदाबाद की दुर्घटना की जांच में निर्णायक साबित हो सकते हैं।

क्या होता है CVR?


ब्लैक बॉक्स के ये दोनों हिस्से अलग-अलग तरह की जानकारियां रिकॉर्ड करते हैं। कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर, यानी CVR, पायलटों की आपसी बातचीत, एयर ट्रैफिक कंट्रोल से संपर्क, कॉकपिट में बजने वाले अलार्म, इंजन की आवाजें, स्विच दबाने की बीप जैसी तमाम ऑडियो एक्टिविटी को रिकॉर्ड करता है। यह लगभग दो घंटे तक की रिकॉर्डिंग स्टोर करता है और लगातार लूप में चलता रहता है। अक्सर किसी विमान हादसे में यह पता लगाने में मदद करता है कि पायलट किस मानसिक स्थिति में थे — क्या वे तनाव में थे, भ्रमित थे या किसी तकनीकी चेतावनी को नजरअंदाज कर रहे थे।

FDR क्या होता है?

दूसरी ओर, फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR) पूरी फ्लाइट के दौरान विमान की तकनीकी स्थिति को दर्ज करता है। इसमें विमान की ऊंचाई, स्पीड, दिशा, इंजन का प्रदर्शन, कंट्रोल सिस्टम की स्थिति और ऑटोपायलट की एक्टिविटी जैसे डेटा शामिल होते हैं। FDR हर सेकंड में दर्जनों पैरामीटर रिकॉर्ड करता है और कम से कम 25 घंटे तक का डेटा स्टोर कर सकता है। इससे जांचकर्ताओं को यह समझने में मदद मिलती है कि उड़ान के दौरान कोई तकनीकी गड़बड़ी हुई थी या नहीं।

हालांकि CVR और FDR दोनों एक साथ मिलकर काम करते हैं, लेकिन उनके रोल अलग होते हैं। CVR यह बताता है कि पायलटों ने मौके पर क्या प्रतिक्रिया दी, उन्होंने क्या देखा, सुना और कहा।

वहीं, FDR बताता है कि विमान ने कैसा रिएक्ट किया, किस सिस्टम में क्या बदलाव हुआ और कौन से सिस्टम एक्टिव थे। दोनों डिवाइस के डेटा का एक साथ विश्लेषण कर ही यह पूरी तस्वीर सामने आती है कि किसी दुर्घटना के पीछे मानवीय चूक थी, तकनीकी खराबी थी या कोई बाहरी कारण।

अहमदाबाद क्रैश के मामले में प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो और प्रधानमंत्री कार्यालय ने पुष्टि की है कि दोनों रिकॉर्डर मिल चुके हैं और विशेषज्ञों की टीम इनका विश्लेषण कर रही है। यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि कहीं विमान में कोई तकनीकी खराबी तो नहीं आई थी, पायलटों ने इमरजेंसी कॉल की थी या कोई बाहरी वजह — जैसे बर्ड स्ट्राइक या इंजन फेल्योर — इस दुर्घटना की वजह बनी।

ब्लैक बॉक्स के विश्लेषण में कितना वक्त लगेगा?

ब्लैक बॉक्स का विश्लेषण कितना वक्त लेगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि रिकॉर्डर की हालत कैसी है और डेटा कितना जटिल है। अगर डिवाइस सुरक्षित हैं और डेटा जल्दी मिल गया, तो कुछ दिनों में शुरुआती रिपोर्ट आ सकती है, लेकिन पूरी जांच में हफ्तों या महीनों का समय लग सकता है। अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत, किसी भी एयरक्राफ्ट हादसे के 30 दिन के भीतर एक शुरुआती रिपोर्ट जारी की जाती है और विस्तृत तकनीकी रिपोर्ट बाद में आती है।

एक बार जब CVR और FDR रिकवर हो जाते हैं, तो उन्हें किसी स्पेशल लैब में भेजा जाता है। भारत में यह काम एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (AAIB) करता है, या फिर किसी अंतरराष्ट्रीय अधिकृत लैब को सौंपा जाता है।

इन डिवाइस को इस तरह डिजाइन किया जाता है कि वे जबरदस्त टक्कर, आग और पानी के दबाव को भी झेल सकें। डिवाइस का बाहरी हिस्सा भले ही क्षतिग्रस्त हो जाए, लेकिन अंदर का डेटा अक्सर सुरक्षित रहता है।

डेटा को सार्वजनिक नहीं किया जाता

इन रिकॉर्डर का डेटा बेहद संवेदनशील होता है, खासकर CVR का, क्योंकि इसमें पायलटों की व्यक्तिगत बातचीत होती है। इसलिए डेटा तक पहुंचने के लिए कड़े सुरक्षा नियम होते हैं। सिर्फ अधिकृत जांचकर्ता ही इसे देख सकते हैं और आमतौर पर यह सार्वजनिक नहीं किया जाता। इसका मकसद किसी को दोषी ठहराना नहीं, बल्कि यह समझना होता है कि गलती कहां हुई और भविष्य में वैसी स्थिति से कैसे बचा जा सके।

इस तरह का डेटा केवल किसी दुर्घटना के कारणों को समझने में मदद नहीं करता, बल्कि उससे विमान निर्माण, पायलट ट्रेनिंग और आपातकालीन रिस्पॉन्स में सुधार भी होता है। इस समय जब अहमदाबाद क्रैश को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं, असल और पक्के जवाब सिर्फ इन रिकॉर्डर से ही मिल सकते हैं।

CVR ने सुलझाई कई गुत्थी

भारत में पहले भी कई हादसों की गुत्थी ब्लैक बॉक्स के जरिए सुलझी है। 2010 में मंगलोर एयर इंडिया एक्सप्रेस हादसे की जांच में CVR से पता चला कि पायलट नींद से उठने के बाद भ्रमित था और उसने स्वचालित चेतावनियों को अनदेखा किया। वहीं FDR ने दिखाया कि विमान रनवे के तय हिस्से से काफी आगे लैंड हुआ, जिससे रुकने की जगह नहीं बची और विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया।

इसी तरह 2020 के कोझिकोड हादसे में भी ब्लैक बॉक्स ने यह साफ किया कि विमान ने खराब मौसम में लैंडिंग की कोशिश की और तय ज़ोन से काफी आगे उतर गया। इसके बाद DGCA और AAIB ने पायलट ट्रेनिंग को लेकर बदलाव किए और खराब मौसम में लैंडिंग से जुड़े नए नियम बनाए।

अब अहमदाबाद हादसे की जांच भी इसी दिशा में आगे बढ़ रही है। ब्लैक बॉक्स का डेटा यह तय करेगा कि इस दुर्घटना की जड़ में कौन-सी वजह छिपी थी, और वही डेटा भविष्य की उड़ानों को और सुरक्षित बनाने में मदद करेगा।

Shubham Sharma

Shubham Sharma

First Published: Jun 16, 2025 3:54 PM

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