निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई ने शुक्रवार को कहा कि वह वकील तथा न्यायाधीश के रूप में करीब चार दशक की अपनी यात्रा के समापन पर संतोष और संतृप्ति की भावना के साथ और ‘न्याय के विद्यार्थी’ के रूप में न्यायालय छोड़ रहे हैं।
निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई ने शुक्रवार को कहा कि वह वकील तथा न्यायाधीश के रूप में करीब चार दशक की अपनी यात्रा के समापन पर संतोष और संतृप्ति की भावना के साथ और ‘न्याय के विद्यार्थी’ के रूप में न्यायालय छोड़ रहे हैं।
न्यायमूर्ति गवई ने अपने विदाई समारोह के दौरान एक रस्मी पीठ के समक्ष कहा, ‘‘आप सभी को सुनने के बाद, और खासकर अटॉर्नी जनरल (आर वेंकटरमणि) और कपिल सिब्बल की कविताओं और आप सभी की गर्मजोशी भरी भावनाओं को जानने के बाद, मैं भावुक हो रहा हूं।”
इस पीठ में प्रधान न्यायाधीश नियुक्त हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विनोद चंद्रन भी थे।
भावुक दिख रहे प्रधान न्यायाधीश ने विधि अधिकारियों, वरिष्ठ अधिवक्ताओं और युवा वकीलों से खचाखच भरे अदालत कक्ष में कहा,“जब मैं इस अदालत कक्ष से आखिरी बार निकल रहा हूं तो पूरी संतुष्टि के साथ निकल रहा हूं, इस संतोष के साथ कि मैंने इस देश के लिए जो कुछ भी कर सकता था, वह किया है। …धन्यवाद। बहुत-बहुत धन्यवाद।’’
कार्यवाही के दौरान, अधिवक्ताओं ने न्यायमूर्ति गवई की न्यायपालिका पर छोड़ी गई छाप को याद किया। न्यायमूर्ति गवई, केजी बालकृष्णन के बाद दूसरे दलित और पहले बौद्ध प्रधान न्यायाधीश हैं।
उन्होंने कहा, “मेरा हमेशा से मानना है कि हर कोई, हर न्यायाधीश, हर वकील, उन सिद्धांतों से चलता है जिन पर हमारा संविधान काम करता है, यानी बराबरी, न्याय, आज़ादी और भाईचारा। मैंने संविधान के दायरे में रहकर अपना कर्तव्य अदा करने की कोशिश की, जो हम सभी को बहुत प्यारा है।”
न्यायमूर्ति गवई ने 14 मई को प्रधान न्यायाधीश के तौर पर छह महीने से अधिक कार्यकाल के लिए शपथ ली थी। वह 23 नवंबर, 2025 को पद छोड़ेंगे और शुक्रवार उनका आखिरी कार्य दिवस था।
अपनी यात्रा के बारे में बताते हुए, प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “जब मैं 1985 में (कानून के) पेशे में आया, तो मैंने लॉ स्कूल में एडमिशन लिया। आज, जब मैं पद छोड़ रहा हूं, तो मैं न्याय के एक छात्र के तौर पर पद छोड़ रहा हूं।”
उन्होंने एक वकील से उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश और आखिर में भारत के प्रधान न्यायाधीश बनने के अपने 40 साल से ज़्यादा के सफर को “बहुत संतोषजनक” बताया।
उन्होंने कहा कि हर पद को ताकत के तौर पर नहीं, बल्कि “समाज और देश की सेवा करने के मौके” के तौर पर देखा जाना चाहिए।
डॉ. बी. आर. आंबेडकर और अपने पिता, जो एक नेता थे और संविधान के मुख्य रचनाकार के करीबी सहयोगी थे, की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि उनका न्यायिक दर्शन आर्थिक और राजनीतिक न्याय के लिए आंबेडकर की प्रतिबद्धता पर आधारित है।
उन्होंने कहा, “मैंने हमेशा मौलिक अधिकारों को राज्य नीति के दिशानिर्देशक सिद्धांत साथ संतुलित करने की कोशिश की।”
उन्होंने कहा कि उनके कई फैसलों ने संवैधानिक स्वतंत्रता का सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण जरूरतों के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश की।
उन्होंने कहा कि पर्यावरण के मामले उनके दिल के करीब रहे हैं। उन्होंने पर्यावरण, पारिस्थितिकी और वन्यजीवन के मुद्दों से अपने लंबे जुड़ाव के बारे में बताया।
उन्होंने कहा, “इन इतने सालों में, मैंने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने की कोशिश की, साथ ही यह भी पक्का किया कि पर्यावरण और वन्यजीवन बना रहे।”
न्यायालय में कामकाज के मुद्दे पर उन्होंने कहा, “प्रधान न्यायाधीश के तौर पर मैंने जो भी फैसले लिए, वे सब मिलकर लिए…। मेरा मानना था कि हमें एक संस्थान के तौर पर काम करना चाहिए।”
प्रधान न्यायााधीश की तारीफ करते हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “वह एक सहकमी से कहीं ज़्यादा रहे…। वह मेरे भाई और विश्वस्त हैं, और बहुत ईमानदार इंसान हैं।”
उन्होंने कहा, “उन्होंने धैर्य और गरिमा के साथ मामलों को संभाला। उन्होंने युवा वकीलों को हिम्मत दी। उनकी सख्ती हमेशा हास्य से भरी होती थी…। एक भी दिन ऐसा नहीं जाता था जब वह उन्होंने किसी हठी वकील को जुर्माना लगाने की धमकी न दी हो, लेकिन उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया।’’
अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी ने “भूषण” का अर्थ आभूषण या साज-सज्जा बताते हुए कहा कि न्यायमूर्ति गवई ने न्यायपालिका और कानून की दुनिया को सजाया है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उनसे एक न्यायाधीश के तौर पर हुई मुलाकात को याद करते हुए कहा, “आप एक इंसान के तौर पर कभी नहीं बदले।”
विधि अधिकारी ने हाल के फैसलों में “भारतीयता की ताजी हवा” की तारीफ की, और कहा कि राज्यपालों पर संविधान पीठ का फैसला पूरी तरह से देसी न्यायशास्त्र पर आधारित था।
उन्होंने कहा, “निर्णय, निर्णय ही होना चाहिए, कानून समीक्षा का लेख नहीं।’’
उच्चतम न्यायालय बार संघ के अध्यक्ष विकास सिंह ने गवई की सादगी को याद करते हुए उनकी उस बात को याद किया कि वह जब अपने गांव गए थे तो सुरक्षाकर्मी नहीं ले गए थे और कहा था कि “अगर कोई मुझे मेरे ही गांव में मार रहा है, तो मैं जीने का हकदार नहीं हूं।”
सिब्बल ने कहा कि उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति गवई की नियुक्ति इस देश में हुए “बहुत बड़े सामाजिक मंथन” का प्रतीक है। सिब्बल ने कहा कि उनके सफर ने दिखाया है कि एक आदमी अपने न्यायिक करियर के सबसे ऊंचे मुकाम पर पहुंचकर भी एक आम आदमी की सादगी बनाए रख सकता है।
न्यायमूर्ति गवई को 14 नवंबर, 2003 को मुंबई उच्च न्यायालय में अतिरिक्त् न्यायाधीश के रूप में प्रोन्नत किया गया था। वह 12 नवंबर, 2005 को उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश बने। वह 24 मई, 2019 को उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश बने।
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