Cough Syrup Deaths: बच्चों का पोस्टमार्टम नहीं हुआ, अधिकारी मनाते रहे छुट्टी! MP में कफ सिरप मौत के मामलों नया खुलासा

Cough Syrup Deaths: एक ऐसी सिस्टमेटिक लापरवाही और सुस्ती का खुलासा हुआ है, जिसने पूरे हेल्थ सिस्टम की पोल खोल दी है। वहीं दूसरी ओर, तमिलनाडु सरकार ने 24 घंटे में कार्रवाई करते हुए सिरप पर बैन लगा दिया। "अगर तमिलनाडु 24 घंटे में कार्रवाई कर सकता है, तो मध्य प्रदेश ने 11 मौतों का इंतजार क्यों किया?" पारसिया ब्लॉक की धूल भरी गलियों में बैठे मातम में डूबे माता-पिता का यही सवाल है

अपडेटेड Oct 05, 2025 पर 4:48 PM
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Cough Syrup Deaths: बच्चों का पोस्टमार्टम नहीं हुआ, अधिकारी मनाते रहे छुट्टी! MP में कफ सिरप मौत के मामलों नया खुलासा

मध्य प्रदेश में 11 बच्चों की मौत हो चुकी है, जबकि 6 से ज्यादा जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हैं, परिवारों का दावा है कि इन सभी मामलों का रिश्ता ‘Coldrif’ कफ सिरप से है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि अब तक एक का भी पोस्टमॉर्टम नहीं हुआ। NDTV की रिपोर्ट में एक ऐसी सिस्टमेटिक लापरवाही और सुस्ती का खुलासा हुआ है, जिसने पूरे हेल्थ सिस्टम की पोल खोल दी है। वहीं दूसरी ओर, तमिलनाडु सरकार ने 24 घंटे में कार्रवाई करते हुए सिरप पर बैन लगा दिया।

"अगर तमिलनाडु 24 घंटे में कार्रवाई कर सकता है, तो मध्य प्रदेश ने 11 मौतों का इंतजार क्यों किया?" पारसिया ब्लॉक की धूल भरी गलियों में बैठे मातम में डूबे माता-पिता का यही सवाल है।

पोस्टमॉर्टम नहीं, जवाब नहीं


मध्य प्रदेश में जिन 11 बच्चों की मौत हुई, उनमें से किसी का भी पोस्टमॉर्टम नहीं कराया गया। पारसिया के SDM शुभम यादव ने दावा किया कि परिवारों ने सहमति नहीं दी। लेकिन NDTV ने बताया कि जब वे पीड़ित परिवारों से मिले, तो यह दावा झूठा साबित हुआ।

पांच साल के उसैद के पिता यासिन खान ने कहा, “न तो अस्पताल से किसी ने पूछा, न प्रशासन से। किसी ने हमें बताया तक नहीं कि पोस्टमॉर्टम जरूरी है।”

इसी तरह, अदनान के पिता अमीन खान ने बताया, “नागपुर मेडिकल कॉलेज में बेटे की मौत हुई, लेकिन किसी ने कहा ही नहीं कि जांच करनी चाहिए।”

एक और पिता, जिनके बेटे की 2 सितंबर को मौत हुई, बोले, “हम तैयार थे, लेकिन किसी ने पूछा ही नहीं।”

नतीजा: कोई फॉरेंसिक सबूत नहीं, कोई जवाबदेही नहीं, और शोक में डूबे परिवारों के पास सिर्फ सवाल हैं।

जब तमिलनाडु जागा, तब मध्य प्रदेश सोता रहा

पहला केस 24 अगस्त को सामने आया, एक बच्चे को किडनी फेल्योर हुआ। 2 सितंबर को चार साल के शिवम राठौड़ की मौत हुई। दो हफ्तों में छह और बच्चों की जान चली गई। फिर भी प्रशासन ने इसे “संजोग” मानकर नजरअंदाज किया।

29 सितंबर को छिंदवाड़ा प्रशासन ने Coldrif सिरप पर बैन लगाया, लेकिन जहर की पुष्टि करने वाली रिपोर्ट चार दिन बाद, 3 अक्टूबर को आई। अगले दिन जाकर पूरे राज्य में इस कफ सिरप पर बैन लगा।

इसी दौरान, तमिलनाडु ने 1 अक्टूबर की शाम जांच शुरू की, 3 अक्टूबर तक रिपोर्ट तैयार की, और तुरंत कंपनी बंद कर दी। इतना ही नहीं तमिलनाडु के वैज्ञानिकों ने गांधी जयंती की छुट्टी में भी काम किया, जबकि मध्य प्रदेश का लैब स्टाफ नवरात्र और दशहरा मनाता रहा।

“जब तमिलनाडु जांच कर रहा था, मध्य प्रदेश आराम कर रहा था”

NDTV ने तमिलनाडु की लैब रिपोर्ट के हवाले से बताया, “Coldrif Syrup, Batch SR-13 में 48.6% Diethylene Glycol पाया गया — एक बेहद जहरीला केमिकल जो किडनी को खराब कर देता है।”

इसके बाद 4 अक्टूबर को मध्य प्रदेश के खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने पूरे राज्य में सिरप और कंपनी के दूसरे प्रोडक्ट पर बैन लगाने का आदेश जारी किया।

आदेश पर कंट्रोलर दिनेश कुमार मौर्य के हस्ताक्षर हैं। आदेश में लिखा है कि सिरप “मानक के अनुरूप नहीं” और “जहरीले तत्वों से दूषित” पाया गया।

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने बयान जारी किया, “छिंदवाड़ा में बच्चों की मौत बेहद दुखद है। तमिलनाडु की रिपोर्ट आने के बाद हमने तुरंत कार्रवाई की है और कंपनी की सभी दवाओं पर प्रतिबंध लगाया है।”

जांच में सामने आया कि सरकारी आंकड़ा कम दिखाया गया। असल में अब तक 12 बच्चों की मौत हुई है, जबकि सरकार सिर्फ 11 मान रही है। बेतुल जिले में हुई एक मौत अभी तक सरकारी रिकॉर्ड में नहीं जोड़ी गई।

सभी बच्चों में एक जैसे लक्षण दिखे- बुखार, उल्टी और पेशाब का बंद होना, जो Diethylene Glycol जहर के क्लासिक संकेत हैं।

लापरवाही की लंबी चेन

नागपुर के डॉक्टरों ने बायोप्सी रिपोर्ट में पहले ही किडनी टॉक्सिसिटी की पुष्टि कर दी थी, लेकिन छिंदवाड़ा प्रशासन ने 29 सितंबर तक सिरप की बिक्री जारी रहने दी। जबलपुर के डिस्ट्रीब्यूटर से सिरप दूसरे जिलों में भेजा जाता रहा।

बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रवीन सोनी, जिनके क्लिनिक में ज्यादा बच्चों का इलाज हुआ, को आज गिरफ्तार किया गया है। उनकी पत्नी और भतीजे के मेडिकल स्टोर्स में भी यही सिरप बेचा जा रहा था।

फिर भी, दवा नियंत्रण विभाग और स्थानीय ड्रग इंस्पेक्टरों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।

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