Delhi: 'ऐसे लोग तुरंत छोड़ दें दिल्ली...कोविड से भी खतरनाक', प्रदूषण पर डॉ. रणदीप गुलेरिया की चेतावनी

Delhi NCR AIR Pollution: AIIMS के पूर्व डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने बताया कि दिल्ली की ज़हरीली हवा में सांस लेना ऐसा है जैसे कोई रोज 8 से 10 सिगरेट पी रहा हो। यानी इस हवा का असर शरीर पर उतना ही नुकसान करता है जितना लगातार सिगरेट पीने से होता है। पिछले 10 सालों के आंकड़े बताते हैं कि साल के करीब 70% दिन दिल्ली की हवा खतरनाक रहती है

अपडेटेड Nov 03, 2025 पर 4:49 PM
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Delhi AQI : दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण एक बार फिर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है।

Delhi NCR AIR Pollution: हर साल सर्दियों की शुरुआत में जैसे ही तापमान गिरता है, दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर बढ़ने लगता है। इस साल भी राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों का हाल ऐसा ही है।दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण एक बार फिर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। सोमवार को भी दिल्ली का औसत AQI 366 दर्ज किया गया था, जबकि कई निगरानी केंद्रों पर यह 400 से ऊपर पहुंच गया था। वहीं बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए AIIMS के पूर्व डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने बड़ी चेतावनी दी है।

'साइलेंट किलर' है वायु प्रदूषण

ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) के पूर्व डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने वायु प्रदूषण को लेकर बड़ी चेतावनी दी है। उन्होंने बताया कि साल 2024 में दुनियाभर में लगभग 8.1 मिलियन यानी 81 लाख लोगों की मौत सिर्फ हवा में फैल रहे प्रदूषण की वजह से हुई। यह संख्या कोविड-19 महामारी में हुई मौतों से भी ज़्यादा है। डॉ. गुलेरिया ने वायु प्रदूषण को एक "साइलेंट महामारी" कहा है। उनका कहना है कि यह खतरा लगातार बढ़ रहा है, लेकिन लोग और सरकारें इसे उतनी गंभीरता से नहीं ले रही हैं, जितनी जरूरत है। उन्होंने बताया कि प्रदूषित हवा हमारे फेफड़ों, दिमाग, दिल और शरीर के कई हिस्सों को गंभीर नुकसान पहुंचाती है। यह बच्चों और बुजुर्गों के लिए तो और भी खतरनाक है।


ऐसे लोग छोड़ दें दिल्ली 

यह चेतावनी ऐसे समय में आई है जब दिल्ली और उत्तर भारत के कई हिस्सों में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है। इन दिनों एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) लगातार 300 से 400 के बीच दर्ज हो रहा है। इस स्तर को ‘बहुत खराब’ से ‘गंभीर’ श्रेणी में रखा जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदायक है। डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि प्रदूषण की ये स्थिति बेहद चिंताजनक है। उन्होंने खासकर कमजोर फेफड़ों वाले लोगों को सावधान करते हुए कहा कि ऐसे लोग फिलहाल दिल्ली से दूर चले जाएं। उनके शब्दों में, “अगर आपके फेफड़े कमज़ोर हैं, तो कृपया दिल्ली छोड़ दें।” यह बात इंडिया टुडे की रिपोर्ट में कही गई है। विशेषज्ञों के अनुसार, इतनी खराब हवा सांस की समस्या, दिल से जुड़ी बीमारियों और बच्चों-बुजुर्गों के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकती है। इसलिए ज़रूरी है कि लोग मास्क पहनें, बाहर कम निकलें और हवा साफ रखने में अपना योगदान दें।

हार्ट अटैक और स्ट्रोक का भी खतरा

डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि प्रदूषण में मौजूद PM2.5 और उससे भी छोटे कण सिर्फ फेफड़ों में ही नहीं रुकते, बल्कि खून में घुलकर पूरे शरीर में फैल जाते हैं। उनकी वजह से शरीर में सूजन हो सकती है और खून की नसें संकुचित हो जाती हैं, जिससे हार्ट अटैक, स्ट्रोक और यहां तक कि डिमेंशिया का खतरा भी बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि प्रदूषण का असर सिर्फ खाँसी या सांस फूलने तक सीमित नहीं है। कई अंतरराष्ट्रीय शोध और संस्थाएं अब यह मानती हैं कि वायु प्रदूषण दिल से जुड़ी बीमारियों जैसे हार्ट अटैक, हार्ट फेलियर, स्ट्रोक और कैंसर का बड़ा कारण है। डॉ. गुलेरिया ने यह भी बताया कि लंबे समय तक खराब हवा में रहने से दिमाग पर बुरा असर पड़ सकता है और पार्किंसन जैसी गंभीर बीमारियाँ होने की संभावना भी बढ़ जाती है।

10 सिगरेट के बराबर है यहां सांस लेना

उन्होंने बताया कि दिल्ली की ज़हरीली हवा में सांस लेना ऐसा है जैसे कोई रोज 8 से 10 सिगरेट पी रहा हो। यानी इस हवा का असर शरीर पर उतना ही नुकसान करता है जितना लगातार सिगरेट पीने से होता है। पिछले 10 सालों के आंकड़े बताते हैं कि साल के करीब 70% दिन दिल्ली की हवा खतरनाक रहती है। हवा में सुधार सिर्फ मानसून के समय या 2020 में कोविड-19 लॉकडाउन जैसी खास स्थितियों में देखा गया था, जब गाड़ियों और फैक्ट्रियों का काम रुका था। डॉ. गुलेरिया ने इंडिया टुडे को बताया, “साल के ज़्यादातर समय हम ज़हरीली हवा में सांस लेते हैं। यह लगातार संपर्क शरीर में सूजन पैदा करता है, जिससे फेफड़े, दिल, दिमाग और खून की नसों पर बुरा असर पड़ता है और गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।”

रिपोर्ट में बताया गया है कि वायु प्रदूषण से सबसे ज़्यादा बच्चे और बुज़ुर्ग प्रभावित होते हैं। डॉ. रणदीप गुलेरिया ने खासकर बच्चों को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि बच्चे तेज़ी से साँस लेते हैं, इसलिए उनके शरीर में बड़े लोगों की तुलना में ज़्यादा प्रदूषित कण जाते हैं। यह खतरा तब और बढ़ जाता है जब बच्चे सुबह या शाम के समय बाहर खेलते हैं, क्योंकि उस समय स्मॉग ज़्यादा होता है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि इससे बच्चों के फेफड़ों की ग्रोथ और विकास प्रभावित हो सकता है। इसलिए माता-पिता को सलाह दी गई है कि वे एयर क्वालिटी इंडेक्स पर नज़र रखें और जब प्रदूषण ज़्यादा हो, तब बच्चों को बाहर खेलने न भेजें और घर के अंदर सुरक्षित माहौल बनाने की कोशिश करें।

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