विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को पुणे में कहा कि आज दुनिया भारत को पहले से ज्यादा पॉजिटिव नजरिए से देखती है। उन्होंने कहा कि भारत की इमेज में आया यह बदलाव एक सच्चाई है, जिसे नकारा नहीं जा सकता। विदेश मंत्री ने शनिवार को कहा कि बदलती वैश्विक राजनीति को देखते हुए भारत को एक साफ़ और स्पष्ट विदेश नीति के “गेम प्लान” के साथ आगे बढ़ना चाहिए। पुणे बुक फेस्टिवल के दौरान एक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि आज की ग्लोबल पॉलिटिक्स तेज़ी से जटिल और अनिश्चित होती जा रही है, ऐसे में किसी तरह की उलझन या कन्फ्यूजन से बचना ज़रूरी है। उन्होंने ज़ोर दिया कि विदेश नीति में फैसले देश के हितों को ध्यान में रखकर साफ़ तौर पर लेने चाहिए, न कि हिचकिचाहट के साथ।
एस जयशंकर ने कही ये बात
एस जयशंकर ने कहा कि विदेश नीति को लेकर साफ सोच और स्पष्टता बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा, “जब आप विदेश नीति पर काम करते हैं, तो आपके पास स्पष्टता होनी चाहिए, फैसले लेने होते हैं और एक ठोस गेम प्लान होना चाहिए।” उन्होंने यह भी जोर दिया कि भारत को यह समझना चाहिए कि उसके हित में क्या है और उसी दिशा में लगातार आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत को अपनी रणनीतिक सोच को अपनी सभ्यता और संस्कृति के नजरिए से पेश करना चाहिए। उनके मुताबिक, केवल पश्चिमी अकादमिक विचारों पर भरोसा करना सही नहीं है, क्योंकि वे अक्सर भारत की राज्य संचालन की पुरानी और मजबूत परंपराओं पर सवाल उठाते हैं।
भारत बड़ा वैश्विक ताकत
विदेश एस जयशंकर ने कहा कि हाल के वर्षों में बड़ी वैश्विक ताकतों के साथ भारत के रिश्ते पहले से कहीं ज़्यादा जटिल हो गए हैं। उन्होंने बताया कि अमेरिका के साथ तालमेल बनाना अब आसान नहीं रहा है, चीन को संभालना चुनौतीपूर्ण हो गया है और यूक्रेन युद्ध के चलते रूस के साथ भरोसा बनाए रखना भी मुश्किल हुआ है। साथ ही उन्होंने कहा कि यूरोप भारत का एक अहम साझेदार बना हुआ है, जिसके लिए नई दिल्ली को अब और ज़्यादा कूटनीतिक प्रयास करने की जरूरत है।
मदद के लिए भारत हमेशा आगे
एस जयशंकर ने भारत के पड़ोसी देशों का जिक्र करते हुए कहा कि छोटे पड़ोसियों के साथ रिश्ते राजनीतिक रूप से संवेदनशील होते हैं और इनमें उतार-चढ़ाव आना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि कभी ये देश भारत की सराहना करते हैं और कभी आलोचना, लेकिन इन बदलावों के बावजूद यह ज़रूरी है कि रिश्तों में स्थिरता बनी रहे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि चुनौती यह है कि ऐसे हालात में भी संबंधों को जितना संभव हो उतना संतुलित और स्थिर कैसे रखा जाए। उदाहरण देते हुए एस जयशंकर ने बताया कि हाल के संकटों में भारत ने कैसे ज़मीनी स्तर पर मदद की। उन्होंने साइक्लोन दितवाह के दौरान और बाद में श्रीलंका को तुरंत सहायता, COVID-19 के समय पड़ोसी देशों को मदद, और यूक्रेन युद्ध से पैदा हुई रुकावटों के बीच ईंधन, गेहूं और खाद की सप्लाई का ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि ऐसे कदम दिखाते हैं कि मुश्किल हालात में भारत की विदेश नीति सिर्फ बातों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि सीधे कार्रवाई में बदलती है।
एक लिटरेचर फेस्टिवल में अलग बातचीत के दौरान एस जयशंकर ने मौजूदा वैश्विक व्यवस्था की तुलना गठबंधन की राजनीति से की। उन्होंने कहा कि आज की दुनिया में हालात लगातार बदलते रहते हैं और किसी एक बड़ी ताकत का दबदबा नहीं है। उनके शब्दों में, यह ऐसा दौर है जहाँ किसी के पास स्पष्ट बहुमत नहीं है। उन्होंने ज़ोर दिया कि भारत को ऐसे माहौल में फुर्तीला रहना चाहिए, अलग-अलग मुद्दों पर अलग-अलग देशों के साथ साझेदारी करनी चाहिए और हर फैसले में देश के हित को सबसे ऊपर रखना चाहिए।
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