ईद-ए-मिलाद जिसे मविलद-उल-नबी भी कहा जाता है। इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-अल-अव्वल की 12 तारीख को मनाया जाता है। पैगंबर मोहम्मद का जन्म 570 इस्वी में मक्का में हुआ था। उनके जीवन और उपदेशों को याद करते हुए यह पर्व मनाया जाता है, जिसमें उनके शिक्षाओं, करुणा, न्याय और अहिंसा के संदेश को प्रमुखता दी जाती है।
इस पर्व की शुरुआत औपचारिक रूप से 10वीं शताब्दी में फातिमी खिलाफत के दौरान हुई, जहां इसे आधिकारिक रूप से उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा। इस दिन मुसलमान मस्जिदों और घरों में कुरान की तिलावत करते हैं, दुआएं करते हैं, ईमानदार नौजवानों के शौर्य की कहानियां सुनाते हैं, और जरूरतमंदों को दान करते हैं।
भारत में भी ईद-ए-मिलाद का पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन मस्जिदों और घरों को सजाया जाता है और परिवार, रिश्तेदार, एवं समुदाय के लोग एक-दूसरे से मिठाइयां बांटते हैं। मुंबई सहित कई शहरों में इस दिन सार्वजनिक अवकाश रहता है, जो कई बार सामाजिक और राजनीतिक नेताओं के प्रयासों से मान्यता प्राप्त होता है।
दरअसल मुंबई में मौलाना ओबैदुल्लाह खान आजमी ने पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह से मुलाकात की थी और इस दिन को छुट्टी घोषित करने की पहल की थी। आजमी ने बताया कि वीपी सिंह ने उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया और स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में ईद-ए-मिलाद को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने के निर्णय की घोषणा की। यह एक ऐतिहासिक निर्णय था और यहां तक कि वीपी सिंह सरकार का समर्थन करने वाली भाजपा ने भी इसका विरोध नहीं किया।
इसके साथ ही ओबैदुल्लाह खान आजमी ने संसद में एक भाषण दिया भी जिसमें सदस्यों को याद दिलाया कि सामाजिक न्याय के नाम पर बनी सरकार को सामाजिक न्याय और समानता के प्रतीक पवित्र पैगंबर का सम्मान करना चाहिए। प्रधानमंत्री वीपी सिंह सहित सभी सदस्यों ने उनके भाषण को सकारात्मक भावना से सुना।
मौलाना ओबैदुल्लाह खान आजमी ने संसद में सक्रिय भूमिका निभाई थी और अपने प्रयासों से ईद-ए-मिलाद को भारत में सार्वजनिक अवकाश घोषित करवाया था। उनकी यह पहल लोगों के बीच इस त्योहार के महत्व को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय स्तर पर इसे स्वीकार्यता दिलाने में मील का पत्थर साबित हुई।