Project Cheetah: प्रधानमंत्री मोदी ने 17 सितंबर 2022 में नामिबिया से लाए गए 8 चीतों की पहली खेप को कूनो नेशनल पार्क में छोडा था। फिर 18 फरवरी 2023 को दक्षिण अफ्रिका से लाए गए 12 चीते कूनो नेशनल पार्क में छोड़े गए। 1950 से ही भारत मे विलुप्त हो चुकी ये चीते की प्रजाति को वापस भारत की धरती पर लाने की कमर पीएम मोदी ने ही कसी। चीतों को किसी दुसरे देश और वातावरण से लाना और उन्हें यहां ठीक से रखने की जिम्मेदारी एक विभाग की नहीं हो सकती थी। यहां दो देश और वहां की सरकारें जुड़ी थीं। लेकिन मोदी सरकार ने अपनी राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई।
आलम ये है कि अब लाए गए 20 चीतों की संख्या बढ कर 27 हो चुकी है। मुश्किल की घड़ी तब आई जब अफ्रीका से आए गए 20 चीतो में बदले वातावरण के चलते सिर्फ 11 ही बचे थे। लेकिन कूनो नेशनल पार्क का मौसम और माहौल इन चीतों को भा गया। अब उनकी संख्या बढ कर 27 तक जा पहुंची है।
पर्यावरण मंत्रालय का मानना है कि अब ये भारतीय मौसम और स्थान के मुताबिक खुद को ढाल चुके हैं। सरकार के लिए के चीते हीरे से भी ज्यादा कीमती हैं। इन पर रेडियो कॉलर लगाकर 24 घंटे निगरानी भी रखी जाती है। मध्य प्नदेश के कूनो नेशनल पार्क का इलाका काफी कुछ अफ्रीका के सवाना इलाके से मिलती है।
तभी तो कामिनी नाम की मादा चीता अपने 4 बच्चों के साथ ट्रैकिंग करते हुए दूर माधवगढ तक जा पहुंची थी। एक महीना बिताने के बाद ट्रेक कर के वापस भी आ गई थी। अचरज की बात ये थी कि वो जिस इलाके मे एक महीने अपने छोटे बच्चों के साथ रही वो एक टाईगर रिजर्व था।
भारत मे 21 फीसदी इलाका जंगल और जंगल के प्राणियों के लिए है। इसका 5 फीसदी इलाका जंगली जीवों के लिए चिह्नित किया गया है। तभी तो चीतों के लिए कूनों के साथ तीन और इलाकों को चुना गया है। इसमे मध्यप्रदेश का गांधीसागर और नौरादेही और गुजरात का बन्नी घासभूमि शामिल हैं। गांधी सागर में भी पहले दो चीतों को और फिर इस साल 17 सिंतबर को एक मादा चीते को छोड़ा गया था।
पर्यावरण मंत्रालय के सूत्रों की माने तो 15 दिसंबर, 2025 के बाद अफ्रीका के कुछ देशों से और चीतों को भारत लाने के लिए अंतिम दौर की बातचीत हो चुकी है। इनकी संख्या भढाने के लिए अगले कुछ सालों में 10-12 नए चीते लाकर भारत में छोड़ने का लक्ष्य रखा गया है। बोत्सवाना, केन्या और नामिबिया से ये चीते लाए जाएंगे जिनके लिए जंगल के नए इलाके जोडे जा रहे हैं।
मौजुदा समय में इनके लिए 3500 वर्ग किमी का एक पूरा इलाका रिजर्व रखा गया है। लक्ष्य है इन 4-5 निर्धारित इलाकों में कम से कम 25 चीते मौजूद रहें। इस अनुमान के मुताबिक अगले 10 साल में भारत मे इनकी संख्या करीब 150 तक पहुंच जाएगी।
चीता को अपनी शान और भारतीय संस्कृति में अपने महत्व के लिए जाना जाता रहा है। चीता खुद एक संस्कृत शब्द चित्रका से निकला है जिसका मतलब होता है धब्बे वाला...। नव पाषाण काल में मध्य भारत की गुफाओं की पेंटिंग में भी चीते की तस्वीर बताती है कि प्राचीन भारत मे भी ये पर्यावरण का हिस्सा ही थे। रीगवेद औऱ अथर्व वेदों में भी चीते का जिक्र मिलता है। मुगलकाल से ही चीतों के शिकार का जिक्र मिलना शुरु हुआ। शिकार और रहने की जगह के खत्म होने के कारण संख्या कम होती गई। 1952 में भारत में इसे पूरी तरह से विलुप्त घोषित कर दिया गया।
अब भारत में फिर से चीते नजर आने लगे हैं जो भारत में ही जन्में हैं। इसमें सरकार और वन विभाग ने स्थानीय लोगों के सहयोग से इन चीतों को बसाने का काम किया है। इनके संंरक्षण के लिए इनक्लूसीव इंगेजमेंट की पहल की गई है। इस परिधी मे रहने वाले गांव वालों की आर्थिक गतिविधियों से लेकर जागरुकता अभियान भी चलाया जा रहा है।
लगभग 80 गांवों के लोगों को बतौर वोलंटियर 'चीता मित्र' यानि चीतों के संरक्षण के लिए बनी मंडली का हिस्सा बनाया गया है। लगभग 25 गावों को पुनर्स्थापित किया गया है। इसलिए अब पर्यटकों के लिए नए अवसर और दुनिया के लिए एक बड़ा संदेश जरुर जा रहा है कि भारत पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण का झंड़ा बुलंद कर सबसे आगे चल रहा है।