UPSC Aspirant Struggles : दोस्त कहते हैं ये महज एक तैयारी ही तो है इसमें इतना प्रेशर क्यों लेना? 5 साल बीतने के बाद घर वालों की खामोशी बार-बार ये सवाल करती है...अब और कितना वक्त? वहीं इंटरव्यू तक पहुंचने के बाद सलेक्ट ना होने पर कुछ लोग तो यहां तक कह देते हैं...अब इनका कुछ भी नहीं होने वाला। तमाम गलतियां, उतार-चढ़ाव और सरकारी नौकरी की चाह ...जब कोई छात्र यूपीएसी की तैयारी करने दिल्ली आता है तो शाबाशियों के साथ उसके कंधों पर उम्मीदों का बोझ भी होता है। दिल्ली के मुखर्जी नगर में उम्मीदों के बोझ लिए ऐसे कई कंधे दिख जाते हैं।
इन सपनों की कीमत है बड़ी भारी
बड़ी-बड़ी इमारतों पर टॉपर्स के लहराते पोस्टर्स, कंधों पर बस्ते टांग चलते युवा और दुकानों में किताबें छानती अनगिनत निगाहें...ये सारा महौल एहसास दिलाने के लिए काफी है कि आप राजधानी दिल्ली के मुखर्जी नगर में हैं। ऐसी दुनिया, जहां हर साल हजारों सपने...सच होने के लिए आते हैं। इन सपनों को पूरा करने की उन्हें भारी क़ीमत चुकानी पड़ती है जो तैयारी पर खर्च किए गए पैसे और समय से कहीं अधिक होती है। हर साल, रिजल्ट आते ही सफल उम्मीदवारों के संघर्ष और कड़ी मेहनत की कहानियां सामने आती हैं। लेकिन उस रिजल्ट में ऐसे लाखों उम्मीदवारों की भी कहानी छिपी होती है, जिनके संघर्षों के बारे में शायद ही कभी बात होती हो। बात, इन छात्रों पर पड़ रहे प्रेशर की भी नहीं होती। अधिकारी बनाने वाली इस दुनिया में हम ऐसे ही कुछ छात्रों से मिले और जाना इस सफर में उनपर पड़ने वाले दबाव के बारे में...यानी IAS बनने के असली प्रेशर के बारे में।
बंद कमरे से आसमान छूने का मुश्किल सफर
अपने इस सफर में हम सबसे पहले मिले सौरभ से। झारखंड के रहने वाले सौरभ पिछले 8 सालों से सरकारी नौकरी के लिए तैयारी कर रहे हैं। तैयारी के लिए उन्होंने झारखंड से पहले बनारस, फिर प्रयागराज और अंत में दिल्ली का रुख किया। दिल्ली में सौरभ पिछले दो सालों से हैं। सौरभ बताते हैं, “शुरुआत में यह उतना मायने नहीं रखता है लेकिन समय के साथ सामाजिक दबाव, पैसे की समस्या बढ़ती जाती है क्योंकि आपको कुछ असफलताएं मिलती हैं। आपकी उम्र के लोगों या दोस्तों को अच्छी जगह नौकरी मिली होगी और आप अभी तैयारी कर रहे हैं, जिससे कई लोग तनाव महसूस करते हैं.
सौरभ की ही तरह में राजधानी दिल्ली में रह रही है नैंसी से मिले। नैंसी बनारस से हैं और दिल्ली में रहकर UPSC की तैयारी कर रही हैं। हाल ही में नैंसी ने इंडियन इकॉनमी सर्विसेज के मेंस का पेपर दिया है। नैंसी बताती हैं कि, “कोचिंग और बाक़ी चीजों पर महीने में औसतन 30 हज़ार रुपये खर्च करके भी हम एक छोटे से डब्बे की तरह कमरे में रहते हैं। यह कबूतर खाने जैसा है, जहाँ कोई सुरक्षा नहीं है।”
UPSC कोचिंग के हब हैं ये इलाके
दिल्ली का मुखर्जी नगर, ओल्ड राजिंदर नगर, करोल बाग और इसके आसपास का इलाका यूपीएससी कोचिंग सेंटरों का हब है। एक रिपोर्ट के अनुसार, इन इलाकों में लगभग एक लाख से अधिक छात्र रहते हैं और यूपीएससी की तैयारी करते हैं। यहां सैकड़ों कोचिंग क्लासेस हैं और कोचिंग इंडस्ट्री का अनुमानित सालाना टर्नओवर 3000 करोड़ रुपये से भी अधिक है। अपने राज्य, परिवार, रहन-सहन को छोड़कर दिल्ली आने वाले छात्रों के लिए इस शहर में खुद को नए सिरे से तैयार करना आसान नहीं है। अपने ऊपर पड़ रहे तमाम दबाव के बीच इन छात्रों के सामने और भी बड़ी समस्या तब खड़ी हो जाती है, जब वो पेपर लीक का खबरें सुनते हैं। ये खबरें उनपर और उनकी तैयारी पर काफी गहरा असर डालती हैं। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ने रश्मिरथी में लिखा है, 'ले लील भले यह धार, मुझे लौटना नहीं स्वीकार मुझे.'....इन छात्रों पर ये पंक्तियां बिलकुल सटीक बैठती है।
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