इस साल भारत में कई राज्यों में बारिश का पैटर्न असामान्य रूप से बदल गया है। आमतौर पर जो मात्रा में बारिश होती है, उससे ज्यादा इस बार कई जगहों पर पानी बरस रहा है। मौसम विभाग ने पहले ही चेतावनी दी थी कि सितंबर में भी सामान्य से ज्यादा बारिश हो सकती है। सितंबर की शुरुआत में ही इसका असर दिखाई दिया और कई राज्यों में जलभराव की स्थिति बन गई। नदियों और नालों में पानी बढ़ गया, खेतों और सड़कों पर पानी जमा हो गया, जिससे लोगों की जिंदगी प्रभावित हुई। विशेषज्ञों का कहना है कि ये असामान्य बारिश मौसमी बदलाव और वायुमंडलीय परिस्थितियों के कारण हो रही है।
ऐसे मौसम में लोगों को सतर्क रहना चाहिए और बारिश से जुड़ी समस्याओं से बचने के लिए तैयार रहना चाहिए। बारिश ने जहां कुछ क्षेत्रों में पानी की कमी को पूरा किया, वहीं दूसरी ओर बाढ़ जैसी समस्याएं भी उत्पन्न कर दी हैं।
ला नीना लौट सकती है, सर्दियों में बढ़ोतरी की संभावना
मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि साल के आखिर में ला नीना की स्थिति फिर से बन सकती है। इसका मतलब है कि इस साल भारत में सामान्य से ज्यादा ठंडी सर्दियां पड़ सकती हैं। अमेरिका के जलवायु पूर्वानुमान केंद्र के अनुसार, अक्टूबर-दिसंबर में ला नीना आने की 71 प्रतिशत संभावना है। इस स्थिति के फरवरी 2026 तक जारी रहने की संभावना भी है।
ला नीना, प्रशांत महासागर में समुद्र के पानी के ठंडा होने की स्थिति है। इससे उत्तरी भारत में ठंडी सर्दियां आती हैं। हालांकि, मानसून के दौरान प्रशांत महासागर की स्थिति अभी तटस्थ है, यानी न तो ला नीना और न ही एल नीनो है।
भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, मानसून के बाद के महीनों में ला नीना बनने की संभावना 50 प्रतिशत से ज्यादा है। ला नीना वाले सालों में आमतौर पर भारत में सामान्य से ज्यादा ठंड पड़ती है। हालांकि, जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मी का असर थोड़ी हद तक सर्दियों को नरम कर सकता है।
पहाड़ी राज्यों में भारी बर्फबारी का खतरा
अगर ला नीना बनता है तो इसका असर खासतौर पर उत्तर भारत और हिमालयी इलाकों में दिखाई देगा। ये कड़ाके की ठंड और पहाड़ी राज्यों में भारी बर्फबारी ला सकता है। इससे निचले स्तर की हवाओं में बदलाव होता है, जो ठंडी हवा को ऊपरी इलाकों से भारत की ओर लाता है।
स्काइमेट वेदर के अध्यक्ष जीपी शर्मा ने बताया कि प्रशांत महासागर पहले से ठंडा है, लेकिन अभी ला नीना की सीमा तक नहीं पहुंचा। अगर समुद्र की सतह का तापमान 0.5°C से नीचे चले और तीन तिमाहियों तक बना रहे, तभी इसे ला नीना माना जाएगा।