बाथरूम को अक्सर हम सिर्फ एक उपयोगी जगह मानते हैं—जहां नहाना, फ्रेश होना और खुद को तरोताजा करना होता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसी साफ-सुथरे दिखने वाले बाथरूम में कुछ ऐसी चीजें भी मौजूद होती हैं, जो धीरे-धीरे आपकी सेहत के लिए खतरा बन सकती हैं? दरअसल, बाथरूम की नमी और गर्माहट ऐसे बैक्टीरिया और फंगस के लिए उपयुक्त माहौल बना देती है, जो गंभीर बीमारियों की वजह बन सकते हैं। हैरानी की बात ये है कि ये खतरा उन्हीं चीजों से आता है, जिनका हम रोज इस्तेमाल करते हैं—जैसे लूफा, गीला टॉवेल या टूथब्रश।
हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, कई लोग इन चीजों को समय पर बदलते नहीं, जिससे ये संक्रमण फैलाने वाले ‘साइलेंट किलर’ बन जाते हैं। इसलिए जरूरी है कि हम अपनी आदतों पर ध्यान दें और बाथरूम की सफाई के साथ-साथ इन सामानों की सेफ्टी पर भी फोकस करें।
तीन महीने से पुराना टूथब्रश बैक्टीरिया और गंदगी का अड्डा बन जाता है। बाथरूम की नमी, फ्लश से निकलने वाले सूक्ष्म कीटाणु ब्रश में जम जाते हैं, जिससे मुंह की दुर्गंध, मसूड़ों की बीमारी और अल्सर जैसी समस्याएं हो सकती हैं। हर 2-3 महीने में टूथब्रश बदलना और उसे सूखी जगह पर रखना जरूरी है।
नम टॉवेल स्किन के लिए बेहद नुकसानदेह हो सकता है। गीले कपड़ों में फंगल और बैक्टीरियल ग्रोथ तेजी से होती है, जिससे रैशेज और खुजली हो सकती है। एक ही टॉवेल का इस्तेमाल कई लोगों द्वारा करने से संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है। टॉवेल को रोज धूप में सुखाएं और हफ्ते में दो बार धोना न भूलें।
लूफा शरीर से डेड स्किन हटाने में मदद करता है, लेकिन समय के साथ उसमें नमी और साबुन के अवशेष जम जाते हैं। ये बैक्टीरिया और फंगस को आकर्षित करते हैं जिससे स्किन इंफेक्शन हो सकता है। हर 3 हफ्ते में नया लूफा लें और हर इस्तेमाल के बाद उसे सुखाएं।
PVC से बने शावर कर्टेन गर्म पानी और भाप के संपर्क में आकर हानिकारक रसायन छोड़ते हैं जो सांस के जरिए शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। इससे एलर्जी, हार्मोनल असंतुलन और यहां तक कि कैंसर का खतरा भी हो सकता है। बेहतर है कि कॉटन या इको-फ्रेंडली कर्टेन का इस्तेमाल करें।
रेजर पर नमी के कारण जंग और बैक्टीरिया जल्दी पनपते हैं। इससे शेविंग के दौरान स्किन कटने पर इन्फेक्शन हो सकता है। हर 5-7 बार इस्तेमाल के बाद रेजर बदलें और हर यूज के बाद अच्छी तरह सुखाएं।
पुराने शावर हेड के छोटे छिद्रों में बैक्टीरिया और मिनरल डिपॉजिट जमा हो जाते हैं। माइकोबैक्टीरियम जैसे बैक्टीरिया सांस के जरिए शरीर में जाकर फेफड़ों की बीमारियों को जन्म दे सकते हैं। हर 6-12 महीने में शावर हेड को साफ करना या बदलना फायदेमंद है।