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Chaitra Navratri 2025: चैत्र नवरात्रि में कैसे करें देवी दुर्गा की पूजा? जानें सही विधि और महत्वपूर्ण नियम

Chaitra Navratri 2025: चैत्र नवरात्रि 2025 एक आध्यात्मिक पर्व है, जिसमें मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। ये आत्मशुद्धि, भक्ति और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। घटस्थापना, उपवास, गरबा, कन्या पूजन जैसी परंपराओं के साथ अब ऑनलाइन आराधना, ईको-फ्रेंडली उत्सव और आधुनिक फैशन भी लोकप्रिय हो रहे हैं

अपडेटेड Mar 01, 2025 पर 9:58 AM
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Chaitra Navratri 2025: नौ दिनों की पूजा का महत्व, तिथियां और शुभ योग

नवरात्रि का अर्थ है ‘नौ रातें’, यह देवी दुर्गा की उपासना का विशेष पर्व है। ये साल में दो बार—चैत्र और शारदीय नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि मां दुर्गा पूरे ब्रह्मांड की शक्ति और दिव्यता का प्रतीक हैं। इन नौ दिनों में भक्त श्रद्धा और भक्ति के साथ देवी के विभिन्न रूपों की पूजा करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान मां दुर्गा स्वयं धरती पर आती हैं और अपने भक्तों को शक्ति, सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।नवरात्रि केवल व्रत और पूजा का पर्व नहीं है, बल्कि ये बुराई पर अच्छाई की जीत, आत्मशुद्धि और नई ऊर्जा का प्रतीक भी है।

इस दौरान कन्या पूजन, गरबा, डांडिया और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है, जिससे समाज में भक्ति और उत्साह का माहौल बना रहता है।

वसंतिक और शारदीय नवरात्रि


हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर साल दो प्रमुख नवरात्रि मनाई जाती हैं— वसंतिक नवरात्रि, जो चैत्र महीने में आती है, और शारदीय नवरात्रि, जो आश्विन महीने में मनाई जाती है। ये दोनों नवरात्रि सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं रखतीं, बल्कि मौसम के बदलाव का संकेत भी देती हैं। इस समय को मां दुर्गा के आगमन का विशेष अवसर माना जाता है, जब भक्त पूरी श्रद्धा से उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।

इस वर्ष 2025 में

चैत्र नवरात्रि: 30 मार्च से 7 अप्रैल तक

शारदीय नवरात्रि: 22 सितंबर से 2 अक्टूबर तक

ये विशेष वर्ष है क्योंकि मां दुर्गा इस बार हाथी की सवारी करके आ रही हैं, जो समृद्धि और शुभता का प्रतीक है।

घटस्थापना शक्ति का आह्वान

घटस्थापना का नवरात्रि में विशेष महत्व होता है। यह एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें मिट्टी या तांबे के कलश को मां दुर्गा की शक्ति का प्रतीक मानकर स्थापित किया जाता है। इस कलश को गंगा जल, सुपारी, अक्षत, नारियल, लाल चुनरी, और सात धातुओं से भरकर मां का आह्वान किया जाता है।

घटस्थापना विधि:

प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में गणपति और मां दुर्गा का ध्यान करें।

एक साफ स्थान पर मिट्टी फैलाकर जौ बोएं।

कलश पर स्वस्तिक बनाएं और कलावा बांधें।

कलश में जल भरकर उसमें सुपारी, सिक्का, और पंच धातु डालें।

नारियल को लाल चुनरी से लपेटकर कलश पर रखें।

प्रतिदिन मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करें और अखंड दीप जलाएं।

मां दुर्गा के नौ स्वरूप और उनकी आराधना

हर दिन मां के एक स्वरूप की पूजा की जाती है:

मां शैलपुत्री (30 मार्च) – हिमालय पुत्री, जो साधना और शक्ति की देवी हैं।

मां ब्रह्मचारिणी (31 मार्च) – ज्ञान और तपस्या की देवी।

मां चंद्रघंटा (1 अप्रैल) – साहस और शक्ति की प्रतीक।

मां कूष्मांडा (2 अप्रैल) – सृष्टि की उत्पत्ति करने वाली देवी।

मां स्कंदमाता (3 अप्रैल) – कार्तिकेय की माता, जो प्रेम और वात्सल्य की देवी हैं।

मां कात्यायनी (4 अप्रैल) – महिषासुर मर्दिनी, जो दुष्टों का नाश करती हैं।

मां कालरात्रि (5 अप्रैल) – तमोगुण और बुरी शक्तियों का नाश करने वाली देवी।

मां महागौरी (6 अप्रैल) – शांति और पवित्रता की देवी।

मां सिद्धिदात्री (7 अप्रैल) – सभी सिद्धियों की दात्री देवी।

नवरात्रि की परंपराएं और आधुनिक बदलाव

समय के साथ नवरात्रि के उत्सव में कई बदलाव आए हैं, फिर भी इसकी आध्यात्मिकता बनी हुई है।

गर्भा और डांडिया – पहले यह सिर्फ गुजरात और राजस्थान में प्रसिद्ध था, लेकिन अब ये पूरे भारत में लोकप्रिय हो गया है।

ऑनलाइन नवरात्रि – डिजिटल युग में लोग वीडियो कॉल पर माता की आराधना और ऑनलाइन भजन संध्या का आयोजन करते हैं।

फैशन ट्रेंड – युवाओं में पारंपरिक और मॉडर्न लुक का फ्यूजन ट्रेंड कर रहा है। चनिया चोली के साथ जीन्स, और कुर्ते के साथ स्टाइलिश जैकेट पहनी जा रही हैं।

ईको-फ्रेंडली उत्सव – अब लोग प्लास्टिक की बजाय प्राकृतिक सामग्री से बने सजावट और मूर्तियों का उपयोग कर रहे हैं।

हेल्दी फास्टिंग – अब लोग साबूदाना, सिंघाड़े के आटे से बने हेल्दी व्यंजन अपना रहे हैं।

नवरात्रि सिर्फ पूजा का त्योहार नहीं है, बल्कि यह खुद को समझने, आंतरिक शक्ति बढ़ाने और सकारात्मक ऊर्जा पाने का समय भी है। ये हमें सिखाता है कि अच्छाई हमेशा बुराई पर जीत हासिल करती है। समय के साथ नवरात्रि मनाने के तरीके बदल सकते हैं, लेकिन इसकी पवित्रता और भक्तिभाव हमेशा बना रहेगा।

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