कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी (देवोत्थान) एकादशी कहा जाता है। इसे तुलसी विवाह भी कहते हैं। इस बार कार्तिक माह की एकादशी 11 नवंबर को शाम 6:46 बजे से शुरू हो जाएगी। यह 12 नवंबर को शाम 4:04 बजे तक रहेगी। लेकिन जो लोग एकादशी का व्रत करते हैं। वह उदय तिथि के हिसाब से 12 नवंबर को देवउठनी एकादशी का व्रत रखेंगे। पारण 13 नवंबर को सुबह 6 बजे के बाद होगा। इस तिथि पर जगत के पालनहार भगवन विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने का विधान है। इसके साथ ही सभी पापों से छुटकारा पाने के लिए व्रत भी किया जाता है।
देवउठनी एकादशी के दिन व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। इसके पाठ के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। कार्तिक मास के एकादशी का बहुत ज्यादा महत्व माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि सारे रुके काम एकादशी से शुरू हो जाते हैं। सारे देवी देवता जाग जाते हैं। सभी शुभ काम जैसे शादी- विवाह, गृह प्रवेश और मुंडन जैसे मांगलिक काम शुरू हो जाते हैं।
देवउठनी एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगर के राजा के राज्य में सभी लोग (राजा से प्रजा तक) विधि-विधान से एकादशी की पूजा करते थे। व्रत भी रखते थे। इस राज्य में एकादशी के नियम का भी पूरी तरह से पालन किया जाता था। एकादशी के दिन पशु-पक्षियों तक को अन्न नहीं दिया जाता था। एक बार नगर में एक व्यक्ति नौकरी की तलाश में आया। उसने राजा से नौकरी मांगी। राजा ने कहा काम तो मिल जाएगा लेकिन शर्त यह है कि तुम्हें यहां रोजाना भोजन मिलेगा। लेकिन एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाएगा। व्यक्ति ने राजा की शर्त मान ली और नौकरी करने लगा।
जब एकादशी का दिन आया तो उसे अन्न न देकर व्रत के लिए केवल फलाहार मिला। उसने फलाहार किया लेकिन इससे उसका पेट नही भरा। उसने राज दरबार में पहुंचकर राजा से कहा कि, फलाहार कर उसका पेट नहीं भरा है। अगर उसके कुछ अन्न नहीं खाया तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। उसने राजा के सामने हाथ जोड़कर अन्न दिलाने की प्रार्थना की। तब राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई। लेकिन इस पर भी वह राजी नहीं हुआ। आखिरकार राजा ने उसे आटा, दाल, चावल आदि दिलवाया।
नौकर रोज की तरह स्नान के लिए नदी तट पहुंच गया। स्नान के बाद भोजन पकाने लगा। भोजन तैयार कर वह ईश्वर को इसे स्वीकार करने के लिए पुकारने लगा। तभी वहां भगवान विष्णु वहां प्रकट हो गए। उसने भगवान के लिए भी भोजन परोसा। भगवान ने भोजन किया और व्यक्ति ने भी भोजन किया। भोजन के बाद भगवान श्रीहरि वैकुंठ लौट गए और व्यक्ति भी अपने काम पर लौट गया।
15 दिन बाद जब फिर से एकादशी तिथि आई तो उसने राजा से दोगुना अन्न देने की मांग की। उसने राजा से कहा कि, पिछली बार उसके बाद साथ प्रभु ने भी भोजन किया। जिससे उसका पेट पूरा नहीं भर पाया। नौकर की बात सुनकर राजा को आश्चर्य हुआ। राजा ने कहा प्रभु तुम्हारे साथ भोजन कैसे कर सकते हैं? राजा ने उसे दोगुना अन्न तो दे दिया लेकिन नदी किनारे पेड़ के पीछे छिपकर देखने लगा कि नौकर सच बोल रहा है या झूठ। नौकर ने हमेशा की तरह पहले नदी में स्नान किया, फिर भोजन पकाया और फिर भोजन ग्रहण करने के लिए भगवान से प्रार्थना करने लगा।
लेकिन इस बार भगवान नहीं आए। उसने भगवान से कई बार आने की प्रार्थना की। लेकिन जब भगवान नहीं आए तो उसने कहा कि प्रभु यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूद जाऊंगा। इसके बावजूद भी भगवान वहां नहीं आए और आखिरकार वह नदी के पास जाकर छलांग लगाने लगा। तभी भगवान श्रहरि ने आकर उसे रोक लिया और उसके साथ बैठकर भोजन किया और फिर बैकुंठ चले गए।
राजा यह सब दृश्य देखकर हैरान रह गया। उसे इस बात का ज्ञान हो गया कि किसी भी व्रत के लिए व्यक्ति का मन पवित्र और आचरण शुद्ध होना चाहिए। तभी व्रत संपन्न होता है। उसका फल भी मिलता है। इसके बाद राजा भी पवित्र मन और श्रद्धाभाव से एकादशी का व्रत करने लगा।
हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार सृष्टि के पालनहार श्री हरि भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी पर चार महीने की योग निद्रा से जागते हैं। भगवान विष्णु के जागने पर इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप संग तुलसी विवाह विधि-विधान के साथ किया जाता है। ऐसे में विवाह के दौरान तुलसी जी की आरती और मंत्र जरूर पढ़ना चाहिए।
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