Mahakumbh 2025: हिन्दू धर्म महाकुंभ का काफी महत्व होता है। इस बार महाकुंभ का आयोजन उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले में हो रहा है। प्रयागराज में महाकुंभ का आरंभ 13 जनवरी से हो रहा है। महाकुंभ हर 12 साल में एक बार देश के केवल 4 स्थानों पर आयोजित होता है। महाकुंभ में शामिल होने के लिए देश-विदेश से साधु-संत और श्रद्धालु पवित्र त्रिवेणी संगम पर आस्था की डुबकी लगाने के लिए एकत्र होते हैं। इस दौरान बहुत से साधु तपस्या करते हैं, जबकि कुछ कल्पवास भी करते हैं।
महाकुंभ के दौरान कल्पवास के नियमों जो निष्ठापूर्वक पालन करता है उसको भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। कल्पवास का पालन किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन शास्त्रों के अनुसार कुंभ, महाकुंभ और माघ मास में इसका महत्व विशेष रूप से बढ़ जाता है। आइए जानते हैं क्या होता है कल्पवास और इसके महत्व, नियम और लाभ के बारे में।
कल्पवास एक तरह से तपस्या और साधना की ही तरह होता है, जिसमें जातक पूरे एक महीने तक संगम तट पर रहकर पवित्र नदी के किनारे ध्यान, पूजा करता है। इस दौरान भक्त को कठिन तपस्या और साधना करनी होती है। कल्पवास के समय पूरी तरह से खुद को प्रभु भक्ति के लिए समर्पित करना होता है। हालांकि, कुंभ के समय किए गए कल्पवास का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। कल्पवास के दौरान साधक को बेहद संयमित जीवन जीना होता हैं और आत्मशुद्धि के लिए साधना भी करना होता है। ऐसा कहा जाता है कि अपनी जिंदगी में एक बार कल्पवास जरूर करना चाहिए। अगर आप कल्पवास करना चाहते हैं तो महाकुंभ के साथ ही आप अपना कल्पवास भी आरंभ कर सकते हैं। कल्पवास की न्यूनतम अवधि एक रात होती है, लेकिन इसकी अवधि तीन रात, तीन महीने, छह महीने, छह साल, बारह साल या जीवनभर भी हो सकती है।
कल्पवास करने के नियम काफी कठिन होते है, ये करना हर किसी के बस की बात नहीं होती है। कल्पवास के दौरान जातक को काफी कठिन साधना करनी पड़ती है। कल्पवास के दौरान इन नियमों का पालन करना सबसे ज्यादा जरूरी होता है, वरना आपकी तपस्या भी भंग हो सकती है। कल्पवास करने वाले साधकों को रोजाना ब्रह्ममुहूर्त में उठकर 3 बार नदी में स्नान कर जप करना चाहिए। इसके साथ ही दान भी देना चाहिए। इससे कल्पवास का ज्यादा फल मिलता है।
कल्पवास करने वाले साधक को कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए। इस दौरान व्यक्ति को इस दुनिया के सभी प्राणियों के लिए दयाभाव रखना चाहिए। गलती से भी हिंसा नहीं करना चाहिए। कल्पवास के समय साधन को पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। कल्पवास के समय किसी की भी बुराई नहीं करनी चाहिए। कल्पवास करने वाला इंसान को जमीन पर सोना होता है और दिन में केवल एक बार भोजन करना होता है।
कल्पवास करने से व्यक्ति को न केवल मनोवांछित फल प्राप्त होता है, बल्कि उसे आत्मिक और शारीरिक शांति भी मिलती है। कल्पवास के दौरान की जाने वाली साधना और तपस्या से व्यक्ति को उसके सभी पाप मुक्ति मिल जाती है। कल्पवास के समय जातक को भगवान की विशेष कृपा मिलती है, जिससे जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं। कल्पवास आत्मिक सुख देने के साथ-साथ मानसिक और शारीरिक शुद्धि का भी एक उपाय होता है। इस दौरान व्यक्ति अपने जीवन में संतुलन और शांति की अनुभूति करता है।
डिस्क्लेमर: इस लेख की सामग्री पूरी तरह से ज्योतिषीय भविष्यवाणियों पर आधारित है। हम इसकी सत्यता और सटीकता का पूरी तरह दावा नहीं करते। यहां दी गई किसी भी जानकारी के आधार पर कोई वित्तीय, स्वास्थ्य या व्यावसायिक निर्णय लेने से पहले योग्य विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य करें।