Mahakumbh 2025: हिंदू धर्म में महाकुंभ मेले का बहुत बड़ा धार्मिक महत्व है। इस बार महाकुंभ 12 सालों बाद उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में लगने जा रहा है। बता दें कि महाकुंभ के दौरान देश-विदेश से कई श्रद्धालु प्रयागराज में त्रिवेणी के संगम में स्नान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि महाकुंभ के दौरान जो भी श्रद्धालु प्रयागराज के पवित्र संगम तट पर स्नान करते हैं, उनके सभी पाप खत्म हो जाते हैं और उनको मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। इस बार प्रयागराज में महाकुंभ 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक चलेगा। लेकिन क्या आपको पता है प्रयागराज में तीन नदियों का संगम होता है, जिसे त्रिवेणी संगम के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं ये तीन नदियां कौन-कौन सी हैं।
भारत की दो प्रमुख नदियां, गंगा और यमुना दशकों से भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा रही हैं। जहां-जहां इन दोनों नदियों का संगम होता है, वह स्थान तीर्थ स्थल का बन जाता है। प्रयागराज का संगम स्थल इस का सबसे प्रमुख उदाहरण है, जहां गंगा, यमुना और रहस्यमय सरस्वती का संगम माना जाता है।
गंगा नदी को भारतीय संस्कृति में सबसे पवित्र नदी माना जाता है। कहा जाता है कि गंगा नदी स्वर्ग से धरती पर आईं है। गंगा को जीवनदायिनी नदी भी माना जाता है इसमें केवल स्नान करने से ही किसी भी व्यक्ति के सभी पाप धूल जाते हैं। गंगा नगी हिमालय के गंगोत्री से निकलकर पूरे भारत और बांग्लादेश की भूमि को सींचते हुए 2510 किमी की यात्रा करती है। आखिर में वह बंगाल की खाड़ी में समा जाती है, जिसे गंगा सागर कहा जाता है। गंगा का यह प्रवाह न केवल भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से भी अनमोल है। यह भारत की सभ्यता और संस्कृति का एक अनिवार्य हिस्सा है जिसे लोक आस्था ने सदियों से असीम श्रद्धा के साथ पूजा है।
पश्चिमी हिमालय से निकलकर भारतीय राज्यों उत्तरप्रदेश और हरियाणा की सीमा के साथ 95 मील की यात्रा तय कर यमुना नदी उत्तरी सहारनपुर पहुंचती है। इसके बाद यह प्रमुख शहरों दिल्ली और आगरा से होकर प्रवाहित होती है और आखिर में जाकर प्रयागराज (इलाहाबाद) में गंगा नदी में समाहित हो जाती है। जिसको त्रिवेणी संगम के नाम से जाना जाता है। यमुना नदी धार्मिक मान्यताओं में जीवनदायिनी स्वरूप भी धारण करती है।
प्राचीन पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, सरस्वती को ज्ञान और विद्या की देवी के रूप में भी पूजा जाता है। सरस्वती नदी का त्रिवेणी संगम के नाम से प्रसिद्ध संगम स्थल का अपना विशेष धार्मिक महत्व है। हालांकि सरस्वती नदी का भौतिक रूप से यहां कोई अता-पता नहीं मिलता, फिर भी उनको अदृश्य और अध्यात्मिक रूप से उपस्थित माना जाता है। कई जानकारों का मानना है कि सरस्वती भूमि के अंदर प्रवाहित होती है और संगम स्थलों पर अदृश्य रूप से गंगा और यमुना में मिलती है। कुछ वैज्ञानिक अनुसंधान बताते हैं कि सरस्वती नदी कभी वास्तव में बहती थी लेकिन अब सूख गई है या भूगर्भ में समा गई है। इस विचारधारात्मक और पौराणिक अनुनयन के बावजूद, सरस्वती के प्रति लोगों की श्रद्धा और विश्वास कम नहीं हुआ है।
इस प्रकार, गंगा, यमुना और सरस्वती के इस त्रिवेणी संगम का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अडिग है। यह संगम भारत की धार्मिक एकता, सांस्कृतिक धरोहर और आध्यात्मिक विश्वास का प्रतीक बना हुआ है, जहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु आस्था और मोक्ष की प्राप्ति के लिए आते हैं।