प्रयागराज में महाकुंभ 2025 का शुभारंभ 13 जनवरी को हुआ, जो श्रद्धा, आस्था और सनातन संस्कृति का प्रतीक है। इस महापर्व के दौरान तीन महत्वपूर्ण अमृत स्नान हो चुके हैं—मकर संक्रांति (15 जनवरी), मौनी अमावस्या (29 जनवरी) और बसंत पंचमी (3 फरवरी)। इन तिथियों पर संगम तट पर आस्था का अभूतपूर्व संगम देखने को मिला, जहां देश-विदेश से आए लाखों श्रद्धालुओं और साधु-संतों ने डुबकी लगाकर मोक्ष व आध्यात्मिक शुद्धि का आशीर्वाद प्राप्त किया। महाकुंभ न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह सनातन संस्कृति, संत परंपरा और भारतीय आध्यात्मिकता का भव्य उत्सव भी है।
इसमें विभिन्न अखाड़ों के साधु-संतों, नागा बाबाओं और तपस्वियों की मौजूदगी इसे और भी दिव्य बना देती है। महाकुंभ का हर स्नान व्यक्ति के पापों को नष्ट करने और पुण्य अर्जित करने का अवसर प्रदान करता है।
नागा साधुओं की विदाई और शेष स्नान
बसंत पंचमी का अमृत स्नान संपन्न होने के बाद, अधिकांश नागा साधु अपने-अपने अखाड़ों के साथ वापस लौटने लगे। हालांकि, महाकुंभ में अभी भी दो महत्वपूर्ण स्नान बचे हुए हैं—
माघी पूर्णिमा (12 फरवरी 2025)
महाशिवरात्रि (26 फरवरी 2025)
धार्मिक दृष्टि से ये स्नान भी बेहद शुभ माने जाते हैं, लेकिन इन्हें अमृत स्नान का दर्जा नहीं दिया गया है।
माघी पूर्णिमा और महाशिवरात्रि का स्नान अमृत स्नान क्यों नहीं?
महाकुंभ का आयोजन ग्रहों और ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर किया जाता है। जब सूर्य मकर राशि में और गुरु वृषभ राशि में होते हैं, तो स्नान को अमृत स्नान माना जाता है। इसी वजह से मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी को अमृत स्नान का विशेष दर्जा दिया गया। लेकिन माघी पूर्णिमा (12 फरवरी) और महाशिवरात्रि (26 फरवरी) के दिन सूर्य कुंभ राशि में रहेगा, जबकि गुरु वृषभ राशि में ही होगा। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, इस स्थिति में ये स्नान अमृत स्नान की श्रेणी में नहीं आते, लेकिन इनका धार्मिक महत्व कम नहीं होता।
महाकुंभ के महास्नान की प्रमुख तिथियां
माघी पूर्णिमा (12 फरवरी 2025) को महाकुंभ का चौथा स्नान होगा, जिसे पुण्यदायी माना जाता है। वहीं, महाशिवरात्रि (26 फरवरी 2025) को अंतिम महास्नान होगा, जिसके बाद महाकुंभ का समापन हो जाएगा। इन तिथियों पर संगम में स्नान करने से व्यक्ति को विशेष आध्यात्मिक लाभ और पुण्य की प्राप्ति होती है।
महाकुंभ में अमृत स्नान का महत्व
हिंदू धर्म में महाकुंभ के दौरान अमृत स्नान को बेहद शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस स्नान से
व्यक्ति का शरीर और आत्मा शुद्ध हो जाते हैं।
सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
बसंत पंचमी के दिन संगम स्नान करने से मां सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे जीवन में ज्ञान, सुख और समृद्धि आती है।