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Budget 2024 : बजट भाषण को दिलचस्प बनाने के लिए कविता और शेरो-शायरी का इस्तेमाल करते रहे हैं वित्तमंत्री

Interim Budget 2024 : बजट भाषण में अनगिनत आंकड़े होते हैं। इकोनॉमी और फाइनेंस से जुड़े कई दर्जन टर्म्स होते हैं। इससे बजट भाषण कई बार बोझिल हो जाता है। बीच-बीच में कविता या शेरो-शायरी का इस्तेमाल इसे दिलचस्प बनाने में मदद करता है। अक्सर वित्तमंत्री के शेर या कविता कहते हैं सदन तालियों से गूंज उठता है

अपडेटेड Jan 19, 2024 पर 7:42 PM
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Budget 2024 : साल 2021 में देश कोरोना की महामारी की चपेट में था। ऐसे में देश के लोगों का हौसला बढ़ाने की कोशिश वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने की थी। अपने बजट भाषण में उन्होंने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की कविता की कुछ पंक्तियों का जिक्र किया था।

Union Budget 2024: बजट भाषण को दिलचस्प बनाने के लिए वित्तमंत्री कविता और शेरो-शायरी का इस्तेमाल करते रहे हैं। बजट भाषण में अनगिनत आंकड़े होते हैं। इकोनॉमी और फाइनेंस से जुड़े कई दर्जन टर्म्स होते हैं। इससे बजट भाषण कई बार बोझिल हो जाता है। बीच-बीच में कविता या शेरो-शायरी का इस्तेमाल इसे दिलचस्प बनाने में मदद करता है। अक्सर वित्तमंत्री के शेर या कविता कहते हैं सदन तालियों से गूंज उठता है। इससे माहौल भी हल्का-फुल्का बना रहता है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण सहित कई पूर्व वित्तमंत्रियों ने अपने बजट भाषण में शेरो-शायरी के इस्तेमाल किए हैं। कई बार तो वित्तमंत्री ने सरकार के बुलंद इरादों को जताने के लिए इनका इस्तेमाल किया है।

बजट 2024 में भी बजट भाषण में कविता का इस्तेमाल कर सकती हैं वित्तमंत्री

साल 2021 में देश कोरोना की महामारी की चपेट में था। ऐसे में देश के लोगों का हौसला बढ़ाने की कोशिश वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने की थी। अपने बजट भाषण में उन्होंने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की कविता की कुछ पंक्तियों का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था, "उम्मीद एक ऐसा पक्षी है जो प्रकाश को महसूस करता है और अंधेरे में भी चहचहाता है." तब वित्त मंत्री सीतारमण ने तमिल संत तिरुवल्लुवर की कविता भी पढ़ी थी। इसकी सदन के ज्यादातर सदस्यों ने तालियां बजाकर तारीफ की थी।


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अरुण जेटली ने उर्दू नज्म का लिया था सहारा

पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली ने साल 2016 का बजट पेश किया था। उस समय सरकार खासकर अर्थव्यवस्था की चुनौतियों को बयां करने के लिए उर्दू नज्म का सहारा लिया था। उन्होंने कहा था, "कश्ती चलाने वालों ने जब हार कर दी पतवार हमें, लहर लहर तूफान मिलें और मौज-मौज मझधार हमें, फिर भी दिखाया है हमने और फिर ये दिखा देंगे सबको, इन हालातों में आता है दरिया करना पार हमें।" यह नज्म पूरा होते ही करीब पूरे सदन ने मेज थपथपाकर इसकी तारीफ की थी।

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मनमोहन सिंह ने फ्रांसीसी उपन्यासकार की पंक्तियां दुहराई थीं

इंडिया की इकोनॉमी की दिशा बदलने का श्रेय पूर्व वित्तमंत्री मनमोहन सिंह को जाता है। प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की सरकार में वह वित्तमंत्री थे। तब देश की इकोनॉमी मुश्किल दौर से गुजर रही थी। यह लाइसेंस और परमिट राज की बड़ियों में जकड़ी हुई थी। इन बेड़ियों को काटने का काम मनमोहन सिंह ने किया था। उन्होंने बड़े आर्थिक सुधार के ऐलान किए। इंडियन इकोनॉमी में लोगों का भरोसा बनाए रखने की कोशिश की। इसके लिए उन्होंने फ्रांसीसी लेखक और उपन्यासकार विक्टर ह्यूगो की पंक्तियों का इस्तेमाल किया था। ह्यूगो की पंक्तियां दोहराते हुए उन्होंने कहा था, “जिस विचार का समय आ गया होता है, उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती।”

यशवंत सिन्हा ने शेर के जरिए सरकार के आत्मविश्वास का परिचय दिया था

यशवंत सिन्हा प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वित्तमंत्री थे। सिन्हा ने 2001 का बजट पेश किया था। तब सरकार देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने और ग्रोथ की रफ्तार बढ़ाने के लिए बड़े फैसले ले रही थीं। ढांचागत सुविधाओं को बेहतर बनाने पर सरकार ने फोकस बढ़ाया था। इन सदी भारत के लिए उम्मीदों से भरी लग रही थी। तब 2001 के अपने बजट भाषण में सिन्हा ने कहा था, “तकाजा है वक्‍त का की तूफान से जूझो, कहां तक चलोगे किनारे-किनारे।” उन्होंने ये पंक्तियां यह बताने के लिए कही थीं कि वाजपेयी सरकार बड़े फैसले लेने से पीछे हटने वाली नहीं है।

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