Union Budget 2024 : निर्मला सीतारमण से महिलाएं, गरीब और युवा क्या चाहते हैं?

Union Budget 2024 : चुनावी साल होने की वजह से वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण पर निगाहें लगी हैं। बजट से हर वर्ग की अपनी उम्मीदें होती हैं। लेकिन, इस बार सबसे ज्यादा उम्मीद महिलाओं, किसानों और युवाओं को है। देश की तरक्की में इन तीनों वर्गों का बड़ा योगदान है

अपडेटेड Jan 17, 2024 पर 4:05 PM
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Union Budget 2024 :इकोनॉमी में कृषि की हिस्सेदारी घटी है। लेकिन, रोजगार के मामले में कृषि की हिस्सेदारी में कमी नहीं आई है। इकोनॉमी में रोजगार के उतने ज्यादा मौके पैदा नहीं किए जा सके है कि इसमें कृषि क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को रोजगार मिल सके। इस वजह से गरीब बढ़ी है।

Union Budget 2024 : वित्तमंत्री Nirmala Sitharaman दो हफ्ते में अंतरिम बजट पेश करने जा रही हैं। उन्होंने कहा था कि Interim Budget में बड़े ऐलान नहीं होंगे। लेकिन, चुनावी साल होने की वजह से वित्तमंत्री के बजट भाषण पर निगाहें लगी हैं। बजट से हर वर्ग की अपनी उम्मीदें होती हैं। लेकिन, यहां मैं यहां उन चार वर्गों की उम्मीदों के बारे में बात करना चाहता हूं जिसकी चर्चा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते रहते हैं। इनमें गरीब, युवा, किसान और महिलाएं शामिल हैं।

बजट 2024 : गरीबी घटी है या बढ़ी है?

एक बार फिर से गरीबी पर चर्चा शुरू हो गई है। इकोनॉमिस्ट्स के बीच अक्सर यह बहस होती है कि देश में गरीबी बढ़ी है या इसमें कमी आई है। इस बारे में इकोनॉमिस्ट्स की राय अलग-अलग है। कुछ मानते हैं कि गरीबी घटी है तो कुछ मानते हैं गरीबी बढ़ी है। इस बहस को लेकर एक बड़ी दिक्कत कंजम्प्शन एक्सपेंडिचर सर्वे का नहीं होना है। 2011-12 से यह सर्वे जारी नहीं हुआ है। इस वजह से गरीबी के अनुपात का कैलकुलेशन नहीं हो सकता।


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नीति आयोग ने हाल में मल्टीडायमेंशनल पवर्टी इंडेक्स जारी किया। इससे पता चलता है कि गरीबी अनुपात 2015-16 में 25 फीसदी से घटकर 2019-20 में 15 फीसदी पर आ गया। इस दौरान करीब 13.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं। यह डेटा गरीबी घटने का संकेत देता है। लेकिन सरकार 81 करोड़ लोगों के लिए मुफ्त खाद्यान्न की योजना पांच साल के लिए बढ़ी दी है।

बजट 2024 : युवाओं के बीच बेरोजगारी बड़ी समस्या

आज देश की आबादी में बुजुर्गों की मुकाबले युवाओं की हिस्सेदारी ज्यादा है। इसे डेमोग्राफिक डिविडेंड कहा जाता है। यह ज्यादातर देशों के इतिहास में देखने को मिलता है। जो देश इसका सही इस्तेमाल करता है उसकी इकोनॉमी में लोगों का इनकम लेवल बढ़ जाता है। लेकिन, इसके लिए युवाओं को आर्थिक मौके चाहिए। ऐसा नहीं होने पर यह डिविडेंड अभिशाप बन जाता है। कई ऐसे देश हैं जिन्होंने इस डिविडेंड का इस्तेमाल कर लोगों की इनकम बढ़ाई है। कुछ ऐसे भी देश हैं, जिन्होंने इस मौके को गंवाया है और आज मुश्किल में हैं।

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PLFS2017-18 के मुताबिक, कुल आबादी में बेरोजगारी की दर 6 फीसदी थी, जबकि युवाओं में यह 18 फीसदी थी। PLFS2022-23 में बेरोजगारी दर में कमी आई है। लेकिन, आबादी में कुल बेरोजगारी और युवाओं के बीच बेरोजगारी के बीच फर्क ज्यादा बना हुआ है। 2022-23 में कुल बेरोजगारी दर 3.2 फीसदी थी, जबकि युवाओं के बीच यह 10 फीसदी थी। ग्रामीण युवाओं में बेरोजगारी दर 8 फीसदी है, जबकि शहरी युवाओं में बेरोजगारी दर 15.7 फीसदी है।

युवाओं में बेरोजगारी के आंकड़ों से पता चलता है कि इस पर सरकार को गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। दुनिया में इस बात पर बहस बढ़ रही है कि डिजिटाइजेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते इस्तेमाल का भविष्य में नौकरियों पर असर पड़ सकता है। ऐसे में इस मसले पर विचार करने की जरूरत है।

बजट 2024 : किसानों की हालत में सुधार के उपाय जरूरी

इकोनॉमी में कृषि की हिस्सेदारी घटी है। लेकिन, रोजगार के मामले में कृषि की हिस्सेदारी में कमी नहीं आई है। इकोनॉमी में रोजगार के उतने ज्यादा मौके पैदा नहीं किए जा सके है कि इसमें कृषि क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को रोजगार मिल सके। इस वजह से गरीब बढ़ी है। हर सरकार का फोकस कृषि की सेहत सुधारने और औद्योगिकरण पर रहा है। इसके बावजूद नौकरियों के ज्यादा मौके पैदा नहीं किए जा सके हैं। सरकार ने किसानों की इनकम दोगुना करने का टारगेट तय किया था। इसके लिए सरकार ने कई पॉलिसी और रिफॉर्म्स किए हैं। 2012-13 में गांवों में खेती से जुड़े एक परिवार की औसत मासिक आय 6,426 रुपये थी। यह 59 फीसदी बढ़कर 2018-19 में 10,218 रुपये हो गई है। वित्तमंत्री इस मामले में ताजा डेटा पेश कर सकती हैं।

बजट 2024 : महिलाओं के लिए सिर्फ वेल्फेयर प्रोग्राम से काम नहीं चलेगा

हमें महिलाओं के लिए वेल्फेयर प्रोग्राम शुरू करने से आगे बढ़ने की जरूरत है। पिछले साल हमने मणिपुर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले देखे। महिला पहलवानों ने यौन उत्पीड़न की शिकायतें की। बिलकिस बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से राहत मिली। ये सभी मामले महिलाओं की स्थिति पर सवाल उठाते है। ये मामले नैतिकता और मानवाता से भी जुड़े हैं। देश में अहम पदों पर महिलाएं बैठी हैं। राष्ट्रपति और वित्तमंत्री खुद महिला हैं। लेकिन उन्होंने महिलाओं के खिलाफ हिंसा और दुर्व्यवहार के खिलाफ कुछ नहीं किया है। अगर हम महिलाओं की बेहतरी के बारे में नहीं सोच सकते तो वेल्फेयर प्रोग्राम शुरू करने का कोई मतलब नहीं है।

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First Published: Jan 17, 2024 4:00 PM

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