Fed rate cuts: फेड रिजर्व ने ब्याज दर घटाई, लेकिन आगे के लिए सख्त संकेत; भारतीय बाजार पर क्या होगा असर?

Fed rate cuts: अमेरिका में फेड ने उम्मीद के मुताबिक ब्याज दर में कटौती की है, लेकिन आगे के लिए सख्त संकेत दिए हैं। अंदरूनी मतभेद, सीमित कटौती की गुंजाइश और ऊंची बॉन्ड यील्ड ने ग्लोबल बाजारों की चिंता बढ़ा दी है। इसका असर भारतीय शेयर बाजार और FII फ्लो पर भी पड़ सकता है। जानिए डिटेल।

अपडेटेड Dec 11, 2025 पर 12:51 AM
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फेड रिजर्व ने ऐलान किया कि वह ट्रेजरी सिक्योरिटीज की खरीद फिर से शुरू करेगा।

Fed rate cuts: अमेरिकी केंद्रीय बैंक Federal Reserve ने बुधवार को अपनी प्रमुख ब्याज दर में कटौती तो की, लेकिन साथ ही यह संकेत भी दिया कि आगे दरें घटाना आसान नहीं होगा। इस फैसले ने साफ कर दिया कि फेड के भीतर इस बात को लेकर गहरा मतभेद है कि प्राथमिकता महंगाई पर काबू हो या रोजगार बाजार को सहारा देना।

क्या रहा फेडरल रिजर्व का फैसला

फेड की नीति निर्धारण समिति Federal Open Market Committee (FOMC) ने ओवरनाइट लेंडिंग रेट में 0.25 प्रतिशत अंक की कटौती की। इसके बाद ब्याज दर 3.5 प्रतिशत से 3.75 प्रतिशत के दायरे में आ गई। बाजार पहले से इस फैसले की उम्मीद कर रहा था, इसलिए इसे 'हॉकिश कट' कहा गया, यानी कटौती तो हुई लेकिन रुख सख्त बना रहा।


6 साल में पहली बार इतने विरोधी वोट

इस फैसले की सबसे अहम बात यह रही कि तीन सदस्यों ने इसके खिलाफ वोट दिया, जो सितंबर 2019 के बाद पहली बार हुआ है। कुल वोटिंग 9–3 के अंतर से हुई, जिससे फेड के अंदर बढ़ता मतभेद साफ दिखाई दिया।

फेड गवर्नर स्टीफन मिरन का मानना था कि हालात ज्यादा बड़ी राहत मांगते हैं, इसलिए उन्होंने 0.50 प्रतिशत अंक की कटौती का समर्थन किया। वहीं, कैनसस सिटी फेड प्रमुख जेफ्री श्मिड और शिकागो फेड प्रमुख ऑस्टन गूल्सबी ने दरों में किसी भी तरह की कटौती का विरोध किया।

आर्थिक डेटा पर रहेगी नजर

बैठक के बाद जारी बयान में FOMC ने वही भाषा दोहराई, जो उसने दिसंबर 2024 में इस्तेमाल की थी। उस समय इस भाषा का मतलब था कि फेड फिलहाल दरें घटाने से रुक सकता है।

बयान में कहा गया कि आगे किसी भी बदलाव का फैसला आने वाले आर्थिक आंकड़ों, बदलते आउटलुक और जोखिमों के संतुलन को देखकर किया जाएगा।

आगे दरों में कटौती की गुंजाइश सीमित

अब लगातार तीन कटौती के बाद सवाल यह है कि आगे क्या होगा। फेड के अपने संकेत बताते हैं कि आगे ज्यादा कटौती की गुंजाइश नहीं बची है।

फेड अधिकारियों की भविष्य की सोच दिखाने वाला डॉट प्लॉट बताता है कि 2026 में सिर्फ एक कटौती की गुंजाइश है। 2027 में भी यही हाल रहने वाला है यानी एक और कटौती। इसके बाद ब्याज दर लंबी अवधि में करीब 3 प्रतिशत के स्तर पर स्थिर हो सकती है।

GDP अनुमान बढ़ा, लेकिन महंगाई चिंता बनी

आर्थिक मोर्चे पर फेड ने 2026 के लिए GDP ग्रोथ अनुमान बढ़ा दिया है। इसे सितंबर के अनुमान से 0.50 प्रतिशत अंक बढ़ाकर 2.3 प्रतिशत कर दिया गया है। हालांकि, फेड का मानना है कि महंगाई 2028 तक उसके 2 प्रतिशत के लक्ष्य से ऊपर बनी रह सकती है।

फेड के पसंदीदा महंगाई पैमाने के मुताबिक, सितंबर में महंगाई दर 2.8 प्रतिशत रही। यह कुछ साल पहले के उच्च स्तर से नीचे जरूर है, लेकिन अब भी फेड के 2 प्रतिशत के लक्ष्य से काफी ऊपर है।

फेड फिर खरीदेगा ट्रेजरी बॉन्ड

ब्याज दरों के फैसले के साथ ही फेड ने एक और बड़ा कदम उठाया। उसने ऐलान किया कि वह ट्रेजरी सिक्योरिटीज की खरीद फिर से शुरू करेगा। अक्टूबर बैठक में फेड ने कहा था कि वह इस महीने से बैलेंस शीट का सिकुड़ना रोक देगा।

फेड शुक्रवार से $40 बिलियन के ट्रेजरी बिल्स खरीदेगा। इसके बाद कुछ महीनों तक खरीदारी ऊंचे स्तर पर रह सकती है और फिर इसे काफी हद तक घटाया जाएगा। यह फैसला ओवरनाइट फंडिंग मार्केट में दबाव की आशंकाओं के बीच लिया गया है।

राजनीतिक दबाव भी बढ़ रहा है

यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब फेड चेयर जेरोम पॉवेल अपने दूसरे कार्यकाल के अंत के करीब हैं। उनके पास अब सिर्फ तीन बैठकें बची हैं। इसके बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने नए उम्मीदवार को नामित करेंगे।

ट्रंप पहले ही संकेत दे चुके हैं कि वे ऐसे व्यक्ति को चुनेंगे जो कम ब्याज दरों के पक्ष में हो। अनुमान बाजारों के मुताबिक, केविन हैसेट के फेड चेयर बनने की संभावना 72 प्रतिशत है। पूर्व फेड गवर्नर केविन वार्श और मौजूदा गवर्नर क्रिस्टोफर वॉलर काफी पीछे हैं।

शेयर बाजार पर क्या होगा असर असर

फेड के इस फैसले से ग्लोबल स्टॉक मार्केट्स में अस्थिरता बढ़ सकती है। ब्याज दर में कटौती के बावजूद फेड का सख्त रुख, अंदरूनी मतभेद और आगे सीमित कटौती के संकेत इक्विटी निवेशकों के लिए निराशाजनक हैं।

अमेरिका में बॉन्ड यील्ड ऊंचे स्तर पर टिके रह सकते हैं, जिससे टेक और ग्रोथ स्टॉक्स पर दबाव आ सकता है। साथ ही, फेड द्वारा ट्रेजरी बॉन्ड की खरीद दोबारा शुरू करने से शॉर्ट टर्म में लिक्विडिटी सपोर्ट मिल सकता है, लेकिन लंबी अवधि के निवेशक अभी भी सतर्क रुख अपना सकते हैं।

भारत के लिए इसका क्या मतलब है

भारत के लिहाज से फेड का सख्त रुख FII फ्लो और रुपये की चाल के लिए अहम है। अगर अमेरिका में ब्याज दरें लंबे समय तक ऊंची रहती हैं, तो विदेशी निवेशकों का झुकाव उभरते बाजारों से घट सकता है, जिससे भारतीय शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव बना रह सकता है।

हालांकि, भारत की मजबूत घरेलू ग्रोथ और कंट्रोल में महंगाई इस दबाव को कुछ हद तक संतुलित कर सकती है। RBI के लिए भी यह संकेत है कि वह दरों में कटौती को लेकर जल्दबाजी नहीं करेगा और वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए सतर्क मौद्रिक नीति बनाए रखेगा।

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