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Equitas SFB को मिला 14.32 करोड़ रुपये का टैक्स डिमांड नोटिस, जानिए डिटेल

दिल्ली जीएसटी डिपार्टमेंट ने Equitas SFB को कुल 14,32,343 रुपये का टैक्स डिमांड नोटिस भेजा है, जिसमें 7,32,365 रुपये टैक्स, 6,08,926 रुपये का ब्याज और 91,052 रुपये का जुर्माना शामिल है। ESFB ने कहा है कि इस टैक्स डिमांड नोटिस से उसकी वित्तीय या ऑपरेशनल एक्टिविटी पर कोई मटेरियल इंपैक्ट नहीं पड़ा है

अपडेटेड Aug 25, 2024 पर 3:35 PM
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इक्विटास स्मॉल फाइनेंस बैंक (ESFB) को दिल्ली जीएसटी डिपार्टमेंट से 14.32 लाख रुपये का टैक्स डिमांड नोटिस मिला है।

इक्विटास स्मॉल फाइनेंस बैंक (ESFB) को दिल्ली जीएसटी डिपार्टमेंट से 14.32 लाख रुपये का टैक्स डिमांड नोटिस मिला है। कंपनी को यह नोटिस CGST/DGST एक्ट, 2017 की धारा 73 के तहत जारी किया गया है। यह नोटिस वित्त वर्ष 2019-20 से संबंधित है और इसमें बैंक के इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) क्लेम से जुड़े मुद्दों पर बात की गई है। बीते शुक्रवार को कंपनी के शेयरों में 0.85 फीसदी की गिरावट देखी गई। यह स्टॉक BSE पर 82.88 फीसदी के भाव पर बंद हुआ है। कंपनी का मार्केट कैप 9,420.53 करोड़ रुपये है।

Equitas SFB को मिले GST डिमांड नोटिस से जुड़ी डिटेल

दिल्ली जीएसटी डिपार्टमेंट ने ESFB को कुल 14,32,343 रुपये का टैक्स डिमांड नोटिस भेजा है, जिसमें 7,32,365 रुपये टैक्स, 6,08,926 रुपये का ब्याज और 91,052 रुपये का जुर्माना शामिल है। नोटिस की मुख्य वजह अयोग्य इनपुट टैक्स क्रेडिट की कम घोषणा और कैंसल किए गए डीलरों, रिटर्न डिफॉल्टरों और टैक्स न चुकाने वालों से ITC के क्लेम्स शामिल हैं।


ESFB ने कहा है कि इस टैक्स डिमांड नोटिस से उसकी वित्तीय या ऑपरेशनल एक्टिविटी पर कोई मटेरियल इंपैक्ट नहीं पड़ा है। बैंक वर्तमान में इस बात का आकलन कर रहा है कि इस एक्शन को आगे बढ़ाया जाए या नहीं।

यह नोटिस वित्तीय वर्ष 2019-20 से संबंधित है, और बैंक ने स्टेकहोल्डर्स को भरोसा दिलाया है कि वह इस मुद्दे को लागू लीगल फ्रेमवर्क के अनुसार मैनेज करेगा। ESFB को भरोसा है कि इसका उसके फाइनेंशियल हेल्थ पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा।

यह टैक्स डिमांड जीएसटी कंप्लायंस से निपटने के दौरान वित्तीय संस्थानों द्वारा सामना किए जाने वाले व्यापक मुद्दे को दिखाती है। इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) टैक्स देनदारियों के मैनेजमेंट में एक अहम एलिमेंट है, और किसी भी गड़बड़ के कारण भारी जुर्माना और ब्याज शुल्क लग सकता है। यह मामला जीएसटी रेगुलेशन के साथ सख्त कंप्लायंस बनाए रखने की अहमियत को बताता है, विशेष रूप से नॉन-कंप्लायंस वेंडर्स से आईटीसी क्लेम के संबंध में।

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