वेदांता ने अपने बिजनेस के डीमर्जर का ऐलान किया है। इसके तहत 6 कंपनियां बनाई जाएंगी, जिनमें वेदांता लिमिडेट, वेदांता स्टील एंड फेरस मटीरियल्स और वेदांता बेस मेटल्स आदि शामिल हैं। इस डीमर्जर में कंपनी के चेयरमैन अनिल अग्रवाल की अहम भूमिका है। उनका कहना था, 'हमारा मानना है कि अपनी बिजनेस यूनिट को डीमर्ज करके हम हर वर्टिकल में तेज ग्रोथ की बेहतर संभावनाओं के लिए गुंजाइश बना पाएंगे।'
अग्रवाल की गिनती भारत के सबसे अमीर लोगों में होती है। हालांकि , उनकी पृष्ठभूमि काफी सामान्य थी। अपनी दृढ़ता और लगन की बदौलत उन्होंने यह मुकाम हासिल किया है। पटना के रहने वाले अग्रवाल अपने शुरुआती दौर में अंग्रेजी के सिर्फ दो शब्द बोल पाते थे- 'यस' और 'नो'। उन्होंने अपने कारोबारी सफर की शुरुआत स्क्रैप डीलर के तौर पर की थी।
वेदांता ग्रुप के फाउंडर और चेयरमैन अनिल अग्रवाल का जन्म बिहार के एक मारवाड़ी परिवार में 1954 में हुआ था। कॉलेज जाने के बजाय वह काफी उम्र में अपने पिता के साथ कारोबार करने लगे। उनके पिता का एल्युमीनियम कंडक्टर का छोटा सा बिजनेस था। 19 साल की उम्र में वह सपनों की नगरी मुंबई पहुंच गए, जहां उन्होंने केबल कंपनियों से स्क्रैप मेटल खरीदकर इसे बेचना शुरू किया। इस बिजनेस में उन्हें अच्छा मुनाफा हासिल हुआ और 1976 में उन्होंने पहली कंपनी खरीदी। इसमें उन्होंने अपनी सारी जमा पूंजी लगा दी और दोस्तों और परिवारों से भी मदद ली।
उन्होंने कॉपर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी शमशेर स्टर्लिंग कॉरपोरेशन को खरीदा था, जो उस वक्त दिवालिया होने के कगार पर खड़ी थी। अगले 10 साल तक उन्होंने अपने दोनों बिजनेस एक साथ चलाया। इसके बाद, अग्रवाल ने 1986 में स्टरलाइट इंडस्ट्रीज की नींव रखी। अग्रवाल को जल्द ही यह अहसास हो गया कि उन्हें इनपुट कॉस्ट को कंट्रोल करना होगा। इसके बाद उन्होंने जरूरी मेटल खरीदने के बजाय खुद से उसकी मैन्युफैक्चरिंग शुरू कर दी।
बाद के वर्षों में उन्होंने कुछ अन्य कंपनियां भी खरीदीं, मसलन मद्रास एल्युमीनियम, भारत एल्युमीनियम कंपनी (51% हिस्सेदारी) और सरकारी कंपनी हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (HZL)। इन कंपनियों के अधिग्रहण ने अग्रवाल को मेटल और माइनिंग मैग्नेट बना दिया। अग्रवाल ने 2003 में लंदन में वेदांता रिसोर्सेज की नींव रखी। हालांकि, वेदांता को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने कंपनी की माइनिंग गतिविधियों का विरोध किया। साथ ही, केंद्र सरकार ने 2010 में कंपनी की बॉक्साइट माइन पर भी रोक लगा दी थी। उनके ऑयल एंड गैस बिजनेस को भी नुकसान पहुंचा था। केंद्र की यूपीए सरकार ने राजस्थान में वेदांता के ऑयल फील्ड का विस्तार करने की अनुमति देने से मना कर दिया था। इसी समय अंतरराष्ट्रीय कमोडिटीज मार्केट में भारी गिरावट का दौर शुरू हो गया था, जिससे अग्रवाल को 2018 में कंपनी को लंदन स्टॉक एक्सचेंज से हटाने पर मजबूर होना पड़ा। हालांकि, अगले कुछ सालों में वेदांता ने दुनिया भर में कई माइंस का अधिग्रहण किया और कंपनी ने सेमीकंडक्टर बिजनेस में भी एंट्री की।
बहरहाल, अनिल अग्रवाल का जीवन सिर्फ इन उपलब्धियों तक सीमित नहीं है। वह एक समाजसेवी भी हैं और खबरों के मुताबिक उन्होंने अपनी ज्यादातर संपत्ति दान करने का वादा किया है। इसके अलावा, उन्होंने हेल्थ और एजुकेशन के क्षेत्र में बेहतरी के लिए कई डोनेशन भी दिए हैं।