Cotton Price: कपास उत्पादन में आई गिरावट, CAI ने जारी किया अनुमान, क्या कीमतों पर पड़ेगा असर

Cotton production: कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CAI) ने कॉटन सीजन 2025-26 के लिए 305 लाख बेल्स कपास उत्पादन का अनुमान लगाया गया है। जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 312 लाख गांठ था

अपडेटेड Nov 12, 2025 पर 1:09 PM
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CAI के अनुसार, 2025-26 में कुल कॉटन सप्लाई 410.59 लाख बेल्स रहने की उम्मीद है, जो पिछले साल की 392.59 लाख बेल्स से ज्यादा है।

Cotton Price: कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CAI) ने कॉटन सीजन 2025-26 के लिए 305 लाख बेल्स कपास उत्पादन का अनुमान लगाया गया है। जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 312 लाख गांठ था। इस गिरावट का मुख्य कारण खेतों में अधिक वर्षा, कुछ इलाकों में बाढ़ जैसे हालात और तूफान मोंथा के चलते फसल को हुआ नुकसान बताया जा रहा है।

CAI के अनुसार, 2025-26 में कुल कॉटन सप्लाई 410.59 लाख बेल्स रहने की उम्मीद है, जो पिछले साल की 392.59 लाख बेल्स से ज्यादा है। इसमें स्टॉक और आयात में बढ़ोतरी का अहम योगदान है। इस सीजन की शुरुआत 60.59 लाख बेल्स के ओपनिंग स्टॉक से हुई है, जबकि इंपोर्ट का अनुमान 45 बेल्स का है।

भले ही घरेलू उत्पादन में गिरावट आई हो, लेकिन आयात में भारी वृद्धि से कुल आपूर्ति बढ़ने की उम्मीद है। इस साल अक्टूबर-दिसंबर 2025 के बीच लगभग 30 लाख गांठ कपास का आयात होने की संभावना है, जो पिछले साल की तुलना में तीन गुना अधिक है। पूरे साल के दौरान आयात 45 लाख गांठ तक पहुंच सकता है, जो अब तक का रिकॉर्ड स्तर होगा।


CAI का कहना है कि वर्ष के अंत तक कपास पर आयात शुल्क शून्य होने से मिलों ने बड़ी मात्रा में विदेशी कपास की बुकिंग की है। पिछले साल जब 11 प्रतिशत शुल्क लागू था, तब वार्षिक आयात 41 लाख गांठ पर सीमित रहा था।

CAI का कहना है कि "कम रकबे के बावजूद, हमें इस साल लगभग 330-340 लाख गांठ की ज्यादा पैदावार की उम्मीद थी। लेकिन पिछले महीने हुई ज़्यादा बारिश और चक्रवाती तूफान मोंथा के कारण, फसल को कुछ नुकसान हुआ है और कुल उत्पादन पिछले साल की तुलना में थोड़ा कम है।

सीएआई अध्यक्ष अतुल एस. गणात्रा ने कहा कि देश में कॉटन की खपत कम हो रही है। 1 अक्टूबर को 60.50 लाख बेल्स का ओपनिंग स्टॉक है। इस साल पिछले साल से 2 फीसदी उत्पादन कम होगा। इस साल कॉटन का रिकॉर्ड इंपोर्ट होने की उम्मीद है। इंपोर्ट 25 लाख बेल्स रहने की उम्मीद है।

उन्होंने कहा कि मैनमेड फाइबर पर उत्पादन ज्यादा हो रहा है। मिलो के 4 महीनों की खपत के बराबर का क्लोजिंग स्टॉक रहेगा। बीते 2 सालों में 35 लाख बेल्स कॉटन का इंपोर्ट हुआ। मैनमेड फाइबर पर टैक्स कम होने से मिलें ज्यादा बना रही है।उन्होंने कहा कि क्लीन कॉटन बनाने में लगात 200 रुपये आती है जबकि विस्कोस बनाने की लागत 145 रुपये आती है।

 

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