IndusInd Bank: इंडसइंड बैंक में साल 2017 से चल रहा था ट्रेजरी फ्रॉड? ईमेल्स ने खोले कई बड़े राज
इंडसइंड बैंक (IndusInd Bank) में कथित ट्रेजरी फ्रॉड का मामला अब और गहराता जा रहा है। मनीकंट्रोल को मिली ईमेल्स से पता चलता है कि बैंक के ट्रेजरी से जुड़ीं विवादास्पद अकाउंटिंग प्रैक्टिसेज के बारे में बैंक के अंदरूनी स्तर पर 2017 या उससे पहले से ही जानकारी थीं। जबकि इन्हें पहली बार सार्वजनिक मार्च 2025 में किया गया था
IndusInd Bank के कई पूर्व सीनियर अधिकारी इस समय मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) की जांच के दायरे में हैं
इंडसइंड बैंक (IndusInd Bank) में कथित ट्रेजरी फ्रॉड का मामला अब और गहराता जा रहा है। मनीकंट्रोल को मिली ईमेल्स से पता चलता है कि बैंक के ट्रेजरी से जुड़ीं विवादास्पद अकाउंटिंग प्रैक्टिसेज के बारे में बैंक के अंदरूनी स्तर पर 2017 या उससे पहले से ही जानकारी थीं। जबकि इन्हें पहली बार सार्वजनिक मार्च 2025 में किया गया था। इनमें खासतौर पर फॉरेन एक्सचेंज (Forex) कॉन्ट्रैक्ट्स से जुड़ी अकाउंटिंग गड़बड़ियां शामिल हैं।
उस साल के ईमेल्स से यह भी पता चलता है कि इन संभावित समस्याओं के बारे में बैंक के सीनियर अधिकारियों के बीच चर्चा हुई थी। इन ईमेल्स में मामले के सार्वजनिक होने से कई साल पहले बैंक के मुनाफे और उसके नेटवर्थ पर अकाउंटिंग प्रथाओं के संभावित असर को लेकर चर्चा की गई है।
29 जून 2017 की एक ईमेल में उस समय बैंक के ग्लोबल मार्केट ग्रुप के कंट्री हेड , अरुण खुराना ने लिखा था, “मुझे नहीं लगता कि इसे बहुत जटिल बनाना चाहिए। मैं हर स्थिति में हेजिंग करूंगा, चाहे ट्रीटमेंट कुछ भी हो। दरअसल, पहले भी हमने हेजिंग एक्सपोजर के लिए ALCO की मंजूरी नहीं ली थी। चूंकि यह एक लंबी अवधि का मामला है, इसलिए मुझे यह उचित लगा। शायद हमें सिर्फ ALCO सदस्यों के बीच सहमति के लिए इसे सर्कुलेट कर देना चाहिए। मैंने इस पर पहले ही एमडी से चर्चा कर ली है।”
बैंकिंग की भाषा में ALCO का मतलब होता है एसेट एंड लायबिलिटी कमेटी (Asset and Liability Committee)। यह वह समिति होती है जो बैंक के ब्याज दर और लिक्विडिटी जैसे महत्वपूर्ण जोखिमों की निगरानी करती है।
ये ईमेल एक ऐसे लोन सुविधा से जुड़ी थीं जिसकी अवधि 8 वर्ष की थी। एक कर्मचारी ने अरुण खुराना और दूसरे सीनियर अधिकारियों को यह बताने की कोशिश की थी कि अगले वित्त वर्ष से लागू होने वाले नए अकाउंटिंग मानकों को ध्यान में रखते हुए बैंक को यह समझना होगा कि लंबी अवधि वाले इस एक्सपोजर पर हेजिंग से जुड़ी अकाउंटिंग ट्रीटमेंट क्या होगी।
खुराना की ईमेल उस कर्मचारी की ईमेल के जवाब में थी, जिसने अकाउंटिंग मानकों में हो रहे बदलावों के प्रति बैंक का ध्यान खींचना चाहा था। उस कर्मचारी ने लिखा था, “CFO विभाग से परामर्श कर एक पैराग्राफ जोड़ा जा सकता है जिसमें हेज अकाउंटिंग ट्रीटमेंट को Pre-IND-AS और Post-IND-AS दोनों अवधि के संदर्भ में स्पष्ट किया जाए।”
यहां IND-AS का अर्थ है इंडियन अकाउंटिंग स्टैंडर्ड, यानी भारतीय लेखा मानक, जिन्हें रिजर्व बैंक की ओर से चरणबद्ध तरीके से लागू किया जा रहा था।
नए अकाउंटिंग मानकों को लेकर चेतावनी
FY18 में लागू नियमों के मुताबिक, बैंकोंकोफॉरेन एक्सचेंज (Forex) कॉन्ट्रैक्ट्स की हेजिंग का समय तय करने के मामलों में कुछ हद तक लचीलापन मिला था। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के प्रस्तावित नए मानकों में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि ऐसे सभी फॉरेक्स कॉन्ट्रैक्ट्स की हेजिंग उसी दिन से करनी होगी, जिस दिन अनुबंध किया गया हो।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि IND-AS (Indian Accounting Standards) को बैंकों में लागू करने की प्रक्रिया पिछले कई वर्षों से जारी है और इस पर चर्चा FY17 से ही शुरू हो चुकी थी। नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों (NBFCs) ने IND-AS को FY19 में अपना लिया था, जबकि बैंकों में इसे अगले वित्त वर्ष से लागू किया जाना है।
हालांकि, इंस्टिट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (ICAI) की ओर से जारी दिशा-निर्देश पहले से ही सार्वजनिक थे। इसलिए अधिकतर बड़े बैंकों ने अपने प्रो-फॉर्मा वित्तीय नतीजों को (pro-forma financials) पहले ही IND-AS के अनुरूप तैयार करना शुरू कर दिया था।
जांच के घेरे में शीर्ष अधिकारी
ऐसा ही मामला इंडसइंड बैंक के साथ भी देखा गया, और यही बात इन ईमेल्स में स्पष्ट रूप से सामने आती है। इन ईमेल्स में हुई बातचीत का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि बैंक के 4 से 5 पूर्व सीनियर अधिकारी इस समय मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) की जांच के दायरे में हैं। इनमें बैंक के पूर्व सीईओ (CEO), डिप्टी सीईओ (Deputy CEO) और सीएफओ (CFO) शामिल हैं।
इंडसइंड बैंक ने 25 मई को वित्त वर्ष 2024–25 की मार्च तिमाही के नतीजे जारी किए, तो बैंक के स्टैच्युटरी ऑडिटरों ने ट्रेजरी गतिविधियों से जुड़ी गड़बड़ियों को फ्रॉड की कैटेगरी में रखा। इसके बाद बैंक ने इस मामले की जानकारी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) समेत दूसरी संबंधित जांच एजेंसियों को दी।
नेटवर्थ में हेरफेर का संकेत
इसके अलावा, बैंक के पूर्व चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर (CEO) एस वी जरेगांवकर की ओर से साल 2021 की शुरुआत में लिखे गए एक ईमेल में यह एनालिसिस किया गया था कि बैंक की अकाउंटिंग प्रथाओं का उसकी नेटवर्थ पर क्या असर हो सकता है।
ईमेल में जरेगांवकर ने लिखा था कि, “FY22 के लिए ओपनिंग इक्विटी लगभग ₹1,908 करोड़ तक प्रभावित हो सकती है, जिसका प्रमुख कारण अतिरिक्त ECL प्रोविजन ₹2,068 करोड़, इफेक्टिव इंटरेस्ट रेट ₹862 करोड़, ALM स्वैप्स MTM ₹700 करोड़, और LC/BG अपफ्रंटिंग ₹200 करोड़ हैं। हालांकि, इसे इनवेस्टमेंट बुक से ₹1,393 करोड़ के लाभ से कुछ हद तक संतुलित किया जा सकता है। आखिरकार नेटवर्थ अधिक दिखाई देगी क्योंकि हम AT1 बॉन्ड्स को कैपिटल का हिस्सा मानेंगे।”
इस ईमेल से यह साफ होता है कि बैंक को पहले से ही इस बात का अंदाजा था कि इंडियन अकाउंटिंग सिस्टम (IND-AS) लागू होने के बाद उसकी वित्तीय स्थिति पर क्या असर पड़ेगा। ईमेल में निम्न बिंदुओं का जिक्र किया गया है-
ECL (अनुमानित क्रेडिट लॉस): यह एक महत्वपूर्ण घटक है जो IND-AS अपनाने के बाद बैंकों की बैलेंस शीट पर असर डालता है।
ALM Swaps MTM (Asset-Liability Management Swaps Mark-to-Market): यह बैंक के लिए ब्याज दर और लिक्विडिटी जोखिम को संभालने और हेज करने का एक अहम उपकरण है।
LC/BG Upfronting: इसका मतलब है कि बैंक को अपने लेटर ऑफ क्रेडिट (LC) और बैंक गारंटी (BG) से जुड़े जोखिमों के लिए अतिरिक्त प्रोविजन या अग्रिम सुरक्षा देनी होगी।
Additional Tier-1 Capital Classification: ईमेल में यह भी बताया गया कि बैंक एडिशनल टियर-1 कैपिटल (AT1 Capital) को कॉमन इक्विटी के रूप में क्लासिफाई करने की योजना बना रहा था, जिसकी मौजूदा नियमों के तहत इजाजत नहीं है।
इन सभी बिंदुओं से यह संकेत मिलता है कि इंडसइंड बैंक को बहुत पहले से पता था कि नए IND-AS मानकों के लागू होने के बाद उसके वित्तीय आंकड़े और पूंजी संरचना पर बड़ा असर पड़ सकता है।