Live-in में पार्टनर के अधिकार और जिम्मेदारियां, जानें पूरी डिटेल यहां
Live-in relationship: बड़े शहरों में तेजी से बदलते रिश्तों के दौर में लिव-इन रिलेशनशिप युवाओं के बीच नया ट्रेंड बन गया है। समाज और कानून की बदलती सोच के बीच इस रिश्ते को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं क्या ये सच में सही कदम है या आगे मुश्किलें बढ़ा सकता है?
Live-in relationship: देश के कई हिस्सों में ऐसे रिश्तों को लोग अभी भी गलत नजर से देखते हैं
भारत के बड़े शहरों में रिश्तों की परिभाषा तेजी से बदल रही है। युवा अब पारंपरिक बंधनों से हटकर ऐसे विकल्प चुन रहे हैं, जो उन्हें अधिक स्वतंत्रता देता हैं। लिव-इन रिलेशनशिप इसी बदलती सोच की झलक है, जिसे कभी सिर्फ अमीर वर्ग की जीवनशैली माना जाता था। आज ये मेट्रो सिटीज के साथ-साथ मध्यमवर्गीय युवाओं में भी लोकप्रिय हो रही है। ये न सिर्फ पार्टनर को करीब से जानने का अवसर देती है, बल्कि ये तय करने का मौका भी कि आगे जीवन एक साथ बिताना संभव होगा या नहीं।
इस बदलाव को समाज और कानून दोनों ने आंशिक रूप से स्वीकार किया है, जिससे युवाओं को खुलकर जीने का आत्मविश्वास मिला है। हालांकि, इसके साथ नई चुनौतियां और सवाल भी जुड़े हैं रिश्तों में स्थिरता, सामाजिक दृष्टिकोण और कानूनी अधिकार जैसे मुद्दे आज भी चर्चा में रहते हैं।
क्या है लिव-इन रिलेशनशिप?
जानकार बताते हैं कि रिलेशनशिप का अर्थ है शादी किए बिना सहमति से साथ रहना। पहले भारतीय समाज और संस्कृति में इसे गलत नजर से देखा जाता था, लेकिन बदलते समय के साथ लोगों की सोच में भी बदलाव आया है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, शादी से पहले साथ रहना न तो अपराध है और न ही अवैध। हालांकि, ऐसे रिश्तों में शादीशुदा जोड़े जैसे सारे अधिकार नहीं मिलते।
क्या मिलते हैं कानूनी अधिकार?
भारत में लिव-इन रिलेशनशिप के लिए कोई अलग परिभाषा नहीं है, लेकिन कानून इसमें रह रहे लोगों को कुछ सुरक्षा जरूर देता है।
बच्चों को संपत्ति में हक
अगर कपल लंबे समय तक साथ रहता है, तो उनके बच्चों को शादीशुदा माता-पिता के बच्चों की तरह सभी कानूनी अधिकार मिलते हैं। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16 के तहत, बच्चों को माता-पिता की अर्जित संपत्ति में पूरा हक मिलेगा। साथ ही, 144 BNSS के अनुसार उन्हें भरण-पोषण का भी अधिकार है।
भरण-पोषण का अधिकार
क्रिमिनल प्रोसीजर कोड 1973 की धारा 125(1)(a) के तहत, अगर लिव-इन में रहने वाली महिला को उसका पार्टनर आर्थिक सहायता देने से मना करता है, तो वो भरण-पोषण की हकदार होती है।
बच्चों की कस्टडी का फैसला
लिव-इन रिलेशनशिप खत्म होने पर बच्चों की परवरिश किसे मिलेगी, ये अदालत तय करती है। कोर्ट बच्चों के भले और भविष्य को प्राथमिकता देती है, जैसे वह शादीशुदा जोड़े के बच्चों के मामलों में करती है।
महिलाओं की सुरक्षा
2010 से लिव-इन में रहने वाली महिलाओं को घरेलू हिंसा कानून के तहत पूरी सुरक्षा दी गई है। ये कानून सुनिश्चित करता है कि महिलाएं शारीरिक और मानसिक हिंसा से सुरक्षित रहें।
लिव-इन रिलेशनशिप के नुकसान
देश के कई हिस्सों में ऐसे रिश्तों को लोग अभी भी गलत नजर से देखते हैं और बातें बनाते हैं।
रिश्ते के भविष्य को लेकर अनिश्चितता रहती है, जिससे तनाव बढ़ सकता है।
लिव-इन रिश्तों में अक्सर पक्का भरोसा नहीं होता, जिससे डर रहता है कि पार्टनर कभी भी रिश्ता छोड़ सकता है।
लंबे समय तक बिना शादी के साथ रहने पर एक-दूसरे पर शक और अविश्वास बढ़ सकता है।
कई बार ऐसे रिश्ते झगड़े, कानूनी परेशानी या गंभीर घटनाओं का कारण बन जाते हैं।