इस साल का 15 अगस्त यानी हमारा स्वतंत्रता दिवस कई मायनों में खास होने वाला है। यह हमारी आजादी का 76वां साल है। साल 1947 में ब्रिटिश हुकूमत से आजाद होने के बाद से ही इन 76 सालों में हमारे देश में कई बदलाव हुए हैं। इस दौरान हमारा देश आर्थिक मोर्चे पर भी काफी बदला है और मजबूत भी हुआ है। 1947 में आजाद होने के बाद जहां भारत की गिनती पिछड़े और गरीब देशों में की जा रही थी तो वहीं आज हम दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। भारत की इकोनॉमी दुनिया की सबसे तेज रफ्तार अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। साथ ही आज हम दुनिया के सबसे बड़े बाजारों में से एक हैं। ऐसे में हम आपको कुछ ऐसे कानूनों या मौकों के बारे में बताएंगे जिसने हमारी अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर डाला हो और इसे बदल कर रख दिया हो। जिनके बिना साल 2023 के भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में सोचना भी शायद बेमानी सा होगा।
पंच वर्षीय योजनाओं के पीछे की सोच यह है कि इसमें भारत सरकार अपनी ओर से दस्तावेज तैयार करती है, जिसमें अगले 5 सालों के लिए उसकी आमदनी और खर्च की योजना होती है। केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों के बजट को दो भागों में बांटा गया है, गैर-योजना बजट और योजना बजट। गैर-योजना बजट सालाना आधार पर रोज के कामों के हिसाब से खर्च किया जाता है। वहीं योजना बजट को योजना द्वारा निर्धारित प्राथमिकताओं के आधार पर पांच सालों के दौरान खर्च किया जाता है। साल 1951 से 2017 तक भारतीय अर्थव्यवस्था का मॉडल पंचवर्षीय योजनाओं पर आधारित था। इसे सही तरह से लागू करने के लिए योजना आयोग नाम की एक संस्था भी बनाई गई थी। जिसकी जगह पर साल 2015 में एक नई संस्था नीति आयोग अस्तित्व में आई थी।
यह साल 1951 से लेकर 1956 तक के लिए थी। इस दौरान भारत में आर्थिक विकास पर जोर दिया गया था। इसे भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय संसद में प्रस्तुत किया था। इस दौरान एक युवा अर्थशास्त्री के.एन. राज ने तर्क दिया कि भारत को पहले दो दशकों के दौरान "धीरे-धीरे विकास" करना चाहिये। इसने मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें बाँधों और सिंचाई में निवेश शामिल था। इस दौरान भाखड़ा नांगल बांध के लिए खूब पैसा दिया गया था। यह हैरोड डोमर मॉडल पर आधारित था और इसने बचत बढ़ाने पर अधिक ज़ोर दिया। 1956 के अंत तक, पांच भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी IIT की स्थापना की गई थी।
दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-61)
दूसरी पंचवर्षीय योजना ने इंडस्ट्रलाइजेशन और पब्लिक सेक्टर पर फोकस किया। इसकी रूपरेखा तैयार करने और नियोजन का कार्य पी.सी. महालनोबिस के नेतृत्व में किया गया। इसमें रैपिड स्ट्रक्चरल चेंज पर फोकस किया गया। इसी दौरान पहली बार घरेलू उद्योगों को बचाने के लिए इंपोर्ट ड्यूटी लगाई गई थी।
इन पंचवर्षीय योजनाओं में भी हुए थे बड़े बदलाव
वहीं साल 1969-74 में चौथी पंचवर्षीय योजना के दौरान भारत के बैंकिंग सेक्टर में बड़ा बदलाव देखने को मिला। इस दौरान पहली बार 14 प्रमुख भारतीय बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया और हरित क्रांति ने कृषि को बढ़ावा दिया। जबकि साल 1974-78 के दौरान पांचवी पंचवर्षीय योजना के दौरान पहली बार रोजगार को बढ़ाने और गरीबी को हटाने पर फोकस किया गया। इसी दौरान 1975 में विद्युत आपूर्ति अधिनियम में संशोधन किया गया, जिससे केंद्र सरकार को बिजली बनाने के क्षेत्र में एंट्री मिल सकी। इसी दौरान भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्रणाली की शुरुआत की गई थी। छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85) के दौरान भारत में आर्थिक उदारकरण की शुरुआत हुई। इसी दौरान शिवरमन समिति की सिफारिश पर, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक- नाबार्ड की स्थापना की गई। आंठवी पंचवर्षीय योजना 1992-97 के दौरान भारत विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बना।