RBI Monetary Policy: आरबीआई हर दो महीने में एक बार क्यों पेश करता है मॉनेटरी पॉलिसी?
RBI Monetary Policy: RBI एक फाइनेंशियल ईयर में छह बार मॉनेटरी पॉलिसी पेश करता है। इस तरह यह पॉलिसी हर दो महीने में एक बार आती है। इकोनॉमी की स्थिति और जरूरत को देखते हुए केंद्रीय बैंक मॉनेटरी पॉलिसी में बदलाव करता है
आरबीआई के पास ऐसे कई टूल्स हैं, जिनका इस्तेमाल वह चीजों को नियंत्रण में रखने के लिए करता है।
RBI Monetary Policy: फाइनेंशियल ईयर 2024-25 की पहली मॉनेटरी पॉलिसी 5 अप्रैल को आने वाली है। RBI की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की मीटिंग 3 अप्रैल को शुरू हुई थी। 5 अप्रैल को सुबह 10 बजे आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास एमपीसी की बैठक के नतीजे बताएंगे। केंद्रीय बैंक हर दो महीने पर मॉनेटरी पॉलिसी पेश करता है। मॉनेटरी पॉलिसी का मकसद क्या है, मॉनेटरी पॉलिसी कितने तरह की होती है और मॉनेटरी पॉलिसी के कितने टूल होते हैं? आइए इन सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं।
मॉनेटरी पॉलिसी का मकसद क्या है?
सबसे पहले यह जान लेना जरूरी है कि मॉनेटरी पॉलिसी का मकसद क्या है। RBI का काम इकोनॉमी से जुड़ी कई चीजों का प्रबंधन करना है। इनमें इनफ्लेशन, इकोनॉमी में मनी फ्लो, क्रेडिट डिस्ट्रिब्यूशन, इकोनॉमिक ग्रोथ आदि शामिल हैं। इनमें सबकी अपनी अहमियत है। लेकिन, सबसे प्रमुख है इनप्लेशन। केंद्रीय बैंक की जिम्मेदारी इनफ्लेशन को नियंत्रण में रखना है। ज्यादा इनफ्लेशन न सिर्फ आम लोगों की जिदंगी मुश्किल बना देता है बल्कि यह इकोनॉमी के लिए भी खराब है। RBI समय-समय पर इनफ्लेशन को लेकर अपने अनुमान बताता है। वह इनफ्लेशन का टारगेट भी तय करता है। इनफ्लेशन ज्यादा होने पर वह इसे नियंत्रण में लाने के लिए जरूरी कदम उठाता है।
2022 में इनफ्लेशन बढ़ने पर केंद्रीय बैंक ने सख्त पॉलिसी अपनाई
2022 में दुनियाभर में खासकर अमेरिका, यूरोप और इंडिया जैसी बड़ी इकोनॉमीज में इनफ्लेशन काफी बढ़ गया था। तब दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों ने इसे कंट्रोल में लाने के लिए मॉनेटरी पॉलिसी को सख्त बनाने शुरू किए। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व, यूरोपीय संघ के केंद्रीय बैंक ECB और RBI ने इनफ्लेशन को कंट्रोल में लाने को अपनी प्राथमिकता बनाई। इसके लिए उन्होंने इंटरेस्ट रेट बढ़ाना शुरू किया। इससे लोन महंगा होना शुरू हो गया। इंडिया में आरबीआई ने लोन महंगा करने के लिए रेपो रेट बढ़ाना शुरू किया। करीब डेढ़ साल की कोशिश के बाद इनफ्लेशन RBI के कंट्रोल में आ गया है।
कितने तरह की होती है मौद्रिक पॉलिसी?
मॉनेटरी पॉलिसी मुख्य रूप से दो तरह-उदार (Expansionary) और सख्त (Contractionary) होती है। आरबीआई जरूरत के हिसाब से कभी उदार मौद्रिक नीति बनाता है तो कभी सख्त मौद्रिक नीति पेश करता है। यह फैसला वह कई बातों को ध्यान में रख कर लेता है। इसके लिए आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी होती है। इसमें छह सदस्य हैं। वे आम राय से मॉनेटरी पॉलिसी के बारे में फैसले लेते हैं।
उदार मौद्रिक नीति का मतलब क्या है?
Expansionary मॉनेटरी पॉलिसी का मकसद आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देना होता है। इसमें केंद्रीय बैंक इंटरेस्ट रेट में कमी करता है। इससे लोन लेना सस्ता हो जाता है। लोग जरूरी चीजें खरीदने के लिए ज्यादा लोन लेना शुरू करते हैं। इससे इकोनॉमी में डिमांड बढ़ती है। इसे उदार मौद्रिक नीति भी कहा जाता है। आम तौर पर उदार मौद्रिक नीति से इकोनॉमिक ग्रोथ की रफ्तार बढ़ाने में मदद मिलती है।
सख्त मौद्रिक नीति का मतलब क्या है?
आरबीआई Contractionary मॉनेटरी पॉलिसी तब अपनाता है जब इनफ्लेशन बेकाबू हो जाता है। चीजों की कीमतें आसमान में पहुंच जाती है। इसका असर आम आदमी की जिंदगी पर पड़ता है। तब आरबीआई इनफ्लेशन को कंट्रोल में लाने के लिए इंटरेस्ट रेट बढ़ाना शुरू करता है। इसे लोन महंगा हो जाता है। इससे लोग खरीदारी के लिए लोन लेना कम कर देते हैं। इसका असर डिमांड पर पड़ता है। डिमांड घटने से धीरे-धीरे चीजों की कीमतें कम होने लगती हैं। 2022 में इनफ्लेशन अचानक बढ़ने पर आरबीआई ने इसी तरह की पॉलिसी अपनाई थी।
आरबीआई के पास ऐसे कई टूल्स हैं, जिनका इस्तेमाल वह चीजों को नियंत्रण में रखने के लिए करता है। इनमें इनफ्लेशन, मनी सप्लाई, क्रेडिट फ्लो आदि शामिल हैं। इकोनॉमी की जरूरत को देखते हुए केंद्रीय बैंक अपने टूल का इस्तेमाल करता है। उदाहरण के लिए कई बार उसे लिक्विडिटी बढ़ाने की जरूरत महसूस होती है। कभी-कभी ज्यादा लिक्विडिटी हो जाने पर उसे घटाने की जरूरत होती है।
मॉनेटरी पॉलिसी के निम्नलिखित टूल्स हैं:
1. Statutory Liquidity Ratio (SLR): इसे हिन्दी में वैधानिक तरलता अनुपात कहते हैं। यह बैंकों के लिए है। बैंकों को एसएलआर के रेट के मुताबिक अपने डिपॉजिट का हिस्सा खास सिक्योरिटीज में रखना पड़ता है।
2. Cash Reserve Ratio (CRR): इस रेट के मुताबिक बैंकों को अपने डिपॉजिट का हिस्सा कैश में रखना पड़ता है।
3. Repo Rate: यह वह रेट है, जिस पर बैंक आरबीआई से जरूरत पड़ने पर कर्ज लेते हैं।
4. Reverse Repo Rate: यह वह रेट है, जिस पर बैंकों को आरबीआई के पास रखे अपने पैसे पर इंटरेस्ट मिलता है।
5. Open Market Opeartion: आरबीआई इकोनॉमी में लिक्विडिटी को सही लेवल पर रखने के लिए इस टूल का इस्तेमाल करता है। इसके तहत वह सरकार के बॉन्ड्स और दूसरी सिक्योरिटीज को खरीदता या बेचता है।
6. Bank Rate: यह वह रेट है, जिस पर आरबीआई बैंकों को बहुत कम वक्त के लिए कर्ज देता है। इसके लिए बैंकों को केंद्रीय बैंक के पास किसी तरह की सिक्योरिटी नहीं रखनी पड़ती है।
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