RBI Monetary Policy: शक्तिकांत दास की पॉलिसी से पहले जान लीजिए मॉनेटरी पॉलिसी का मतलब क्या है
RBI Monetary Policy: आरबीआई हर दो महीने में एक बार मॉनेटरी पॉलिसी पेश करता है। मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की बैठक 3 अप्रैल को शुरू हो गई थी। इसके नतीजे आज यानी 5 अप्रैल को आएंगे। आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास 5 अप्रैल को सुबह 10 बजे बताएंगे कि केंद्रीय बैंक की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) ने मीटिंग में क्या-क्या फैसले लिए
एक्सपर्ट्स का मानना है कि केंद्रीय बैंक इस साल मॉनेटरी पॉलिसी को उदार बनाना शुरू करेगा। वह रेपो रेट में कमी करेगा। इससे होम, ऑटो सहित दूसरे लोन के इंटरेस्ट रेट में कमी आएगी।
RBI Monetary Policy: RBI की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की बैठक के नतीजे आज (5 अप्रैल) थोड़ी देर में आ जाएंगे। हर दो महीने पर MPC की मीटिंग होती है। अर्थव्यवस्था के मैनेजमेंट के लिए मॉनेटरी पॉलिसी जरूरी है। केंद्रीय बैंक की एमपीसी इकोनॉमी की स्थिति और जरूरत को देखते हुए मॉनेटरी पॉलिसी पेश करती है। एमपीसी जरूरत पड़ने पर मॉनेटरी पॉलिसी में बदलाव करती है। मॉनेटरी पॉलिसी में बदलाव कौन करता है, यह बदलाव कब-कब किया जाता है, पॉलिसी में बदलाव के लिए क्या प्रक्रिया है? आइए इन सवालों के जवाब जानते हैं।
महंगाई यानी इनफ्लेशन पर नियंत्रण
मॉनेटरी पॉलिसी के जरिए केंद्रीय बैंक इनफ्लेशन को कंट्रोल में रखने की कोशिश करता है। इकोनॉमी की तेज ग्रोथ के लिए इनफ्लेशन का नियंत्रण में रहना जरूरी है। इनफ्लेशन के अचानक बढ़ जाने पर पूरी इकोनॉमी के लिए खतरा पैदा होता है। ऐसा हम 2022 में देख चुके हैं। कोविड की महामारी शुरू होने के बाद इकोनॉमी को सहारा देने के लिए दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों ने अपनी मॉनेटरी पॉलिसी को उदार बनाई थी। मुख्य इंटरेस्ट रेट यानी रेपो रेट में कमी की गई थी। कई देशों की सरकारों ने इकोनॉमी को सहारा देने के लिए पैकेज पेश किए थे। इसके चलते 2022 की शुरुआत में दुनिया की बड़ी इकोनॉमी में इनफ्लेशन बढ़ना शुरू हो गया।
दुनियाभर में इनफ्लेशन बढ़ा था
अमेरिका, यूरोप और इंडिया में रिटेल इनफ्लेशन आसमान पर पहुंच गया। इसे काबू में करने के लिए केंद्रीय बैंकों ने मॉनेटरी पॉलिसी को सख्त बनाना शुरू किया। प्रमुख इंटरेस्ट रेट (रेपो रेट) में वृद्धि की गई। फिर इनफ्लेशन धीरे-धीरे काबू में आने लगा।
मॉनेटरी पॉलिसी में बदलाव का असर
आरबीआई के इंटरेस्ट रेट बढ़ाने से लोन महंगा हो जाता है। इसका मतलब यह है कि लोन का इंटरेस्ट रेट बढ़ जाता है। इससे लोग लोन लेना कम कर देते हैं। इससे इकोनॉमी में चीजों की मांग घट जाती है। ऑटो और होम लोन इसके उदाहरण हैं। लोग कार खरीदने के लिए बैंक से लोन लेते हैं। इंटरेस्ट रेट कम होने पर लोन लेने में लोगों की दिलचस्पी ज्यादा होती है। इंटरेस्ट रेट बढ़ जाने पर उनकी दिलचस्पी कार लोन लेने में घट जाती है। यही बात होम लोन और दूसरे लोन पर भी लागू होती है। आरबीआई इंटरेस्ट रेट बढ़ाकर इकोनॉमी में डिमांड घटाने की कोशिश करता है। डिमांड कम होने पर चीजों की कीमतें नहीं बढ़ती हैं।
इकोनॉमी में मनी सप्लाई
इकोनॉमी में संतुलित ग्रोथ के लिए मॉनेटरी पॉलिसी जरूरी है। इसके जरिए केंद्रीय बैंक यह तय करता है कि इकोनॉमी के लिए कितना मनी सप्लाई जरूरी है। कभी अर्थव्यवस्था में ज्यादा लिक्विडिटी की जरूरत पड़ती है। कई बार लिक्विडिटी ज्यादा हो जाने पर उसे घटाने की जरूरत पड़ती है। हर दो महीने पर पेश होने वाली मॉनेटरी पॉलिसी में आरबीआई लिक्विडिटी की स्थिति के बारे में बताता है। अगर लिक्विडटी कम है तो वह उसे बढ़ाने के लिए जरूरी कदम उठाता है। लिक्विडिटी ज्यादा होने पर उसे कम करने के उपाय करता है।
पर्याप्त क्रेडिट की उपलब्धता
आरबीआई इस बात पर भी नजर रखता है कि इकोनॉमी के अलग-अलग सेक्टर को पर्याप्त क्रेडिट मिल रहा है या नहीं। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। मान लीजिए कि किसी वजह से एजुकेशन लोन की मांग बढ़ जाती है। अचानक मांग बढ़ने पर बैंकों के लिए उसे पूरा करने में मुश्किल आती है। ऐसे में ग्राहकों को एजुकेशन लोन मिलने में दिक्कत आ सकती है। आरबीआई का काम इस दिक्कत को दूर करना है। वह बैंकों के लेवल पर एजुकेशन लेवल की उपलब्धता बढ़ाने के लिए पॉलिसी और नियम में बदलाव कर सकता है। इससे ग्राहकों को जरूरत के मुताबिक एजुकेशन लोन मिलने लगता है।
सेविंग्स का संतुलित स्तर
मॉनेटरी पॉलिसी के जरिए केंद्रीय बैंक सेविंग्स को भी मैनेज करता है। किसी इकोनॉमी की सफलता में सेविंग्स का बड़ा रोल है। परिवार और व्यक्ति अपने भविष्य के लिए सेविंग्स करते हैं। सेविंग्स ज्यादा करने पर परिवार और व्यक्ति को भविष्य में पैसे की दिक्कत नहीं होती है। साथ ही यह पैसा सरकार के लिए भी बहुत मददगार साबित होता है। लोगों के सेविंग्स बढ़ाने पर सरकार के हाथ में इस्तेमाल के लिए ज्यादा पैसा आता है। सरकार स्मॉल सेविंग्स स्कीम के जरिए आने वाले पैसे का इस्तेमाल करती है। वह इस पर लोगों को इंटरेस्ट देती है। इस तरह सरकार को कम इंटरेस्ट पर फंड उपलब्ध होता है। आरबीाई मॉनेटरी पॉलिसी के जरिए सेविंग्स को सही लेवल पर बनाए रखने की कोशिश करता है।
एक साल से RBI ने इंटरेस्ट नहीं बढ़ाया है
पिछले करीब एक साल से आरबीआई ने रेपो रेट में बदलाव नहीं किया है। उसने इस साल की पहली मॉनेटरी पॉलिसी फरवरी में पेश की थी। यह लगातार छठी पॉलिसी थी, जब केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट में बदलाव नहीं किया था। इससे पहले फरवरी 2023 में केंद्रीय बैंक ने आखिरी बार रेपो रेट बढ़ाया था। उसके बाद करीब एक साल तक इसे अपरिवर्तित रखा है। रिटेल इनफ्लेशन अब आरबीआई की तय रेंज में आ गया है।
इस साल इंटरेस्ट में कमी करना शुरू कर सकता है केंद्रीय बैंक
इसलिए एक्सपर्ट्स का मानना है कि केंद्रीय बैंक इस साल मॉनेटरी पॉलिसी को उदार बनाना शुरू करेगा। वह रेपो रेट में कमी करेगा। इससे होम, ऑटो सहित दूसरे लोन के इंटरेस्ट रेट में कमी आएगी। इसका मतलब है कि लोन सस्ता होगा। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस साल की दूसरी छमाही में आरबीआई रेपो रेट में कमी करना शुरू कर सकता है।
RBI रेट घटाने से पहले फेडरल रिजर्व के फैसले का इंतजार करेगा
हालांकि, वह पहले अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के रेट घटाने तक इंतजार करना चाहेगा। अमेरिकी केंद्रीय बैंक के इस साल जून में इंटरेस्ट रेट में कमी का सिलसिला शुरू करने की उम्मीद है। उसके इंटरेस्ट रेट में कमी करने के बाद आरबीआई भी रेपो रेट में कमी करना शुरू कर सकता है। उम्मीद है कि इस साल की दूसरी छमाही से अगले वित्त वर्ष की पहली छमाही तक रेपो रेट में दो-तीन बार कमी की जा सकती है।
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