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सितंबर तक रेट कट की संभावना नहीं, लेकिन जून तक आरबीआई के नीतिगत रुख में हो सकता है बदलाव

सरकार द्वारा अंतरिम बजट में फिस्कल कंसोलीडेशन और बुनियादी ढांचे के खर्च पर जोर देने के तुरंत बाद एमपीसी की बैठक हुई। एमपीसी ने लगातार छठी बार रेपो दर को 6.5 फीसकी पर बनाए रखने के लिए 5-1 के बहुमत से मतदान किया और खाने-पीने की चीजों की महंगाई और भू-राजनीतिक मोर्चे पर अनिश्चितताओं के कारण 'एकोमोडेशन को वापस लेने' पर फोकस किया

अपडेटेड Feb 09, 2024 पर 11:24 AM
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ग्लोबल फ्रंट पर नजर डालें तो आने वाले मजबूत आंकड़ों के साथ नरम लैंडिंग की संभावना बढ़ गई है। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध, इज़राइल-हमास संघर्ष और लाल सागर संकट ओर ग्लोबल ट्रेड में कमजोरी ग्लोबल इकोनॉमी की स्थिति डांवाडोल बनी हुई है

अभिषेक बिसेन, कोटक महिंद्रा एसेट मैनेजमेंट

ग्लोबल और घरेलू आर्थिक स्थितियों को देखते हुए आरबीआई एमपीसी का नीति दरों को अपरिवर्तित रखने का फैसला सही लग रहा है। भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने कहा कि मौद्रिक नीति लंबे समय से चल रही अनिश्चितताओं के दौर के बीच में है। हमें यह सुनिश्चित करने के लिए सतर्क रहना होगा कि यह अवस्फीति (disinflation)के अंतिम चरण को सफलतापूर्वक पार कर सके। हालांकि बाजार का एक तबका आरबीआई के रुख को 'न्यूट्रल' में बदलने की उम्मीद कर रहा था लेकिन एमपीसी ने अपने 'एकोमोडेशन को वापस लेने' के रुख को जारी रखने का फैसला किया।

सरकार द्वारा अंतरिम बजट में फिस्कल कंसोलीडेशन और बुनियादी ढांचे के खर्च पर जोर देने के तुरंत बाद एमपीसी की बैठक हुई। एमपीसी ने लगातार छठी बार रेपो दर को 6.5 फीसकी पर बनाए रखने के लिए 5-1 के बहुमत से मतदान किया और खाने-पीने की चीजों की महंगाई और भू-राजनीतिक मोर्चे पर अनिश्चितताओं के कारण 'एकोमोडेशन को वापस लेने' पर फोकस किया।


एमपीसी सदस्यों में से एक, प्रोफेसर जयंत वर्मा ने रेपो दर को 25 बेसिस प्वाइंट (0.25 फीसदी) कम करने और रुख को न्यूट्रल में बदलने के लिए मतदान किया। आरबीआई के मुताबिक नीति दर में अब तक की गई 250 बीपीएस (2.50 फीसदी) की बढ़त का अर्थव्यवस्था में प्रसारण अभी भी चल रहा है।

ग्लोबल इकोनॉमी की स्थिति डांवाडोल

ग्लोबल फ्रंट पर नजर डालें तो आने वाले मजबूत आंकड़ों के साथ नरम लैंडिंग की संभावना बढ़ गई है। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध, इज़राइल-हमास संघर्ष और लाल सागर संकट ओर ग्लोबल ट्रेड में कमजोरी ग्लोबल इकोनॉमी की स्थिति डांवाडोल बनी हुई है।

 एमपीसी घरेलू ग्रोथ को लेकर पाॉजिट

लेकिन एमपीसी घरेलू ग्रोथ को लेकर पाॉजिट बनी हुई है। भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है। तमाम झटकों के बीच भी इसने अपनी ताकत दिखाई। वित्त वर्ष 2024 में जीडीपी ग्रोथ रेट 7.3 फीसदी रहने का अनुमान है। फिजिकल और डिजिटल बुनियादी ढांचे के विकास, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और राजकोषीय खर्च की बेहतर गुणवत्ता के कारण मजबूत ग्रोथ देखने को मिल रही है।

आगे की ग्रोथ संभावना अच्छी

आगे की ग्रोथ संभावना भी अच्छी दिख रही है। रबी की बुआई में बढ़त के साथ कृषि गतिविधि में सुधार, मैन्युफैक्तरिंग के प्रदर्शन में सुधार के साथ औद्योगिक गतिविधि में तेजी और सर्विस सेक्टर में मजबूता के कारण वित्त वर्ष 2025 के लिए रियल जीडीपी 7 फीसदी रहने का अनुमान है।

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खाने-पीने की चीजों की कीमतों में अस्थिरता परेशानी की वजह

रिटेल महंगाई (सीपीआई) वित्त वर्ष 2022 के 6.7 फीसदी से घटकर अप्रैल-दिसंबर 2023 के दौरान औसतन 5.5 फीसदी रही है। लेकिन खाने-पीने की चीजों की कीमतों में अस्थिरता अभी भी चिंता का विषय है। भले ही आरबीआई को रिटेल महंगाई के नियंत्रण में रहने से राहत मिली है लेकिन खाने-पीने की चीजों की कीमतों में अस्थिरता परेशानी की वजह बनी हुई। इसके अलावा ग्लोबल शिपिंग में आया व्यवधान (स्वेज़ नहर से बचना) सप्लाई चेन में दिक्कत पैदा कर रहा है जिससे तमाम जरूरी वस्तुओं, विशेष रूप से कच्चे तेल की कीमतों में अस्थिरता आ रही है। सामान्य मानसून का अनुमान लगाते हुए वित्त वर्ष 2025 में महंगाई 4.5 फीसदी पर रहने का अंदाजा लगाया गया है।

वित्त वर्ष 2025 के बाद के हिस्से में नीति दरों में 50 बेसिस प्वाइंट की कटौती मुमकिन

सारा लब्बोलुआब यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन कर रही है, लेकिन फूड, फ्यूल और ग्लोबल शिपिंग से जुड़ी परेशानियों की वजह से महंगाई का खतरा खत्म नहीं हुआ है। आरबीआई गवर्नर ने महंगाई को 4 फीसदी के लक्ष्य पर बनाए रखने पर फोकस बनाए रखने का संकेत दिया है। इन सब बातों के ध्यान में रखते हुए लगता है कि आरबीआई वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही में अपने रुख में बदलाव कर सकता है और वित्त वर्ष 2025 के बाद के हिस्से में नीति दरों में 50 बेसिस प्वाइंट (0.50 फीसदी) की कटौती हो सकती है।

 

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