पाकिस्तान और श्रीलंका से भी ज्यादा भूखे लोग भारत में! हास्यास्पद है यह Global Hunger Index
Global Hunger Index 2022 की रिपोर्ट खारिज करने के बाद भी इस बात से आंखें मूंद लेना गलत होगा कि हमारे देश में करोड़ों बच्चे पौष्टिक भोजन से वंचित हैं। ऐसी वैश्विक रिपोर्टों से विचलित हुए बिना सरकार को अपने बच्चों, महिलाओं, वृद्धों और अन्य जरूरतमंदों की सिर्फ भूख मिटाने से आगे बढ़कर उन्हें एक पुष्ट और मजबूत नागरिक बनाने के लिहाज से नीतियां बनाने की जरूरत है
Global Hunger Index 2022 की रिपोर्ट में ऐसी क्या खामी है जिस पर भारत ने ऐतराज जताया है
हर साल की तरह इस बार भी ग्लोबल हंगर इंडेक्स ने भारत की सरकार और उसकी खाद्य सुरक्षा नीति पर सवाल उठाया है। इंडेक्स के हिसाब से भारत में भूख की समस्या भयानक है। भारत के आसपास के देशों में सिर्फ एक अफगानिस्तान ही है जो इस इंडेक्स में भारत से नीचे है। वह भी सिर्फ 2 पायदानों से।
लेकिन कमाल की बात है कि पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे देश, जहां खाने-पीने की समान्य वस्तुओं की कमी भी आए दिन हेडलाइन बनती है और दूध और टमाटर जैसी आम चीजें भी 200-300 रुपये किलो बिकने की खबर आती रही है, वे सब ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत से बेहतर हैं।
Global Hunger Index का क्या है पूरा खेल?
आयरलैंड की कंसर्न वर्ल्डवाइड और जर्मनी की वेल्टहंगरहाईलाइफ नाम की दो संस्थाएं हर साल यह इंडेक्स तैयार करती हैं और जारी करती हैं। वेल्टहंगरहाईलाइफ की फंडिंग बिल गेट्स फाउंडेशन, UNO और जर्मन सरकार द्वारा होती है।
इसमें विकसित देशों को और बहुत कम जनसंख्या वाले देशों को शामिल नहीं किया जाता, जिसके लिए इन संस्थाओं के पास अपने तर्क हैं। कुल मिलाकर 116-117 देश इनके मानकों के मुताबिक इंडेक्स में शामिल होने के लायक बचते हैं और उन देशों में इस साल भारत का स्थान 107वां है, जो पिछले साल (2021) में यह 101वां था। उससे पिछले साल (2020) भारत का स्थान 94वां था और उससे भी पिछले साल (2019) यह 102 नंबर पर था।
Global Hunger Index की रिपोर्ट पर भारत ने उठाए सवाल
भारत सरकार ने इस इंडेक्स के तैयार किए जाने की पूरी मेथोडोलॉजी की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं और इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया है। जाहिर है, किसी देश में भुखमरी के हालात यदि बने हैं, तो उसके लिए सरकार के अतिरिक्त और कोई जिम्मेदार नहीं हो सकता और इसलिए भारत सरकार की त्वरित और आक्रोशित प्रतिक्रिया स्वाभाविक है।
लेकिन भारत के नागरिक के तौर पर हममें से किसी के लिए भी इंडेक्स में भारत का यूं फिसलना वास्तव में चिंता का विषय है। इसलिए इस इंडेक्स और उसमें भारत की स्थिति को समझने के लिए स्वतंत्र विश्लेषण आवश्यक है।
Global Hunger Index की रिपोर्ट कैसे बनती है?
किसी भी रिपोर्ट की विश्वसनीयता को परखने के दो पैमाने होते हैः उसे बनाने वाले की पृष्ठभूमि और दूसरा, उसे तैयार करने की प्रक्रिया। इस लिहाज से सबसे पहली बात जो इस इंडेक्स के बारे में ध्यान रखनी चाहिए, वह ये कि इसे बनाने वाली ये दोनों ही संस्थाएं गैर-सरकारी हैं।
ऐसे में किसी निजी आयरिश और जर्मन संस्था द्वारा बनाया जाने वाला कोई भी इंडेक्स अंतिम सत्य नहीं हो सकता। लेकिन सिर्फ इसी आधार पर इसे झूठ कहकर खारिज करना भी अतिवाद होगा कि दूसरी कई संस्थाएं वैश्विक प्रोपैगेंडा मशीनरी के हिस्से के तौर पर काम कर रही हैं। फिर समाधान क्या है? समाधान है इस इंडेक्स को बनाने की प्रक्रिया को समझना।
हंगर इंडेक्स में अंक देने के तीन मोटे पैमाने हैं – अपर्याप्त खाद्य आपूर्ति जिसे अंडरनॉरिशमेंट से मापा जाता है (PUN), बाल मृत्यु दर (5 वर्ष से कम प्रति 1000 पर) और बाल कुपोषण। इन तीनों का वेटेज 33.33% है। इनमें बाल कुपोषण को मापने के दो पैमाने है – वेस्टिंग और स्टंटिंग।
वेस्टिंग मतलब बच्चे का वजन उम्र के लिहाज से मानक से कितना कम है और स्टंटिंग का मतलब बच्चे की ऊंचाई, उम्र के लिहाज से मानक से कितना कम है। इन दोनों पैमानों का वेटेज 33.33% में आधा-आधा बंटता है। अपर्याप्त खाद्य आपूर्ति में यह देखा जाता है कि कितने लोगों को हर दिन 1800 कैलोरी से कम मिलती है।
सवाल यह है कि इन आंकड़ों को जुटाने के लिए कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्टहंगरहाईलाइफ ने किन जगहों पर सर्वे किया, किन स्रोतों से आंकड़े जुटाए और किन प्रक्रियाओं से विश्लेषण किया? दरअसल ये दोनों संस्थाएं हंगर इंडेक्स बनाने के लिए कोई जमीनी सर्वे नहीं करती हैं।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स की वेबसाइट पर इसे तैयार करने की प्रक्रिया (मेथोडोलॉजी) में यह बताया गया है कि इसके लिए आंकड़े संयुक्त राष्ट्र की सब्सिडियरी संस्थाओं और “अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिकॉग्नाइज्ड स्रोतों” से लिया जाता है। फिर इन्हीं आंकड़ों को समीकरणों के आधार पर नंबर में बदल दिया जाता है और इंडेक्स में देशों का स्थान घोषित कर दिया जाता है।
Global Hunger Index में भारत को कितने नंबर
इसी मेथोडोलॉजी से भारत को 29.1 अंक मिले हैं, जो भूख का गंभीर स्तर दर्शाता है। GHI 2022 में श्रीलंका 64वें स्थान पर, बंगलादेश 84वें स्थान पर पाकिस्तान 99वें स्थान पर है। रिपोर्ट में कहा गया है, “भारत में बच्चों के वेस्टिंग की दर 19.3% है, जो दुनिया में सबसे खराब है।”
भारत सरकार ने स्वाभाविक तौर पर इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इस इंडेक्स की विश्वसनीयत पर सवाल उठाते हुए कहा, “इंडेक्स के चार मानकों में से तीन का संबंध केवल बच्चों से है। चौथा और सबसे अहम इंडिकेटर कुपोषितों का अनुपात (PoU) जानने के लिए ओपिनियन पोल किया गया है, जिसका सैंपल साइज सिर्फ 3000 है।”
Global Hunger Index पर क्यों भरोसा करना नामुमकिन
आंकड़ों के अलावा इस इंडेक्स को कॉमन सेंस के आधार पर भी खारिज किया जा सकता है। भारत को अफगानिस्तान, नाइजीरिया और कॉन्गो के स्तर पर रखने वाले इस हंगर इंडेक्स को बनाने में न कॉमन सेंस का इस्तेमाल किया गया है और न ही आसानी से उपलब्ध आर्थिक आंकड़ों का।
आप खाने-पीने पर कितना खर्च कर सकते हैं, यह दो बातों पर निर्भर करता है। पहला, आपकी आमदनी कितनी है और दूसरा, आपके इर्द-गिर्द खाने-पीने की चीजों का मूल्य क्या है? यानी हंगर इंडेक्स तय करने के पहले दो कारक, खाद्य आपूर्ति और कुपोषण (यानी भोजन के माध्यम से पर्याप्त पौष्टिकता न मिल पाना) समझने के लिए प्रति व्यक्ति आय और खाद्य महंगाई दर (फूड इनफ्लेशन) को देखना चाहिए। आइए देखते हैं।
विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 2021 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 2277.4 अमेरिकी डॉलर सालाना थी। पाकिस्तान में यह 1537.9, नेपाल में 1222.9, बंगलादेश में 2503 और श्रीलंका में 3814.7 अमेरिकी डॉलर सालाना है। महंगाई देखते हैं। भारत में सितंबर 2022 में खाद्य महंगाई दर 7.6% थी।
पाकिस्तान में सितंबर 2022 में खाद्य महंगाई 29.53% थी। बंगलादेश में सितंबर खाद्य महंगाई 9.94%, नेपाल में जुलाई खाद्य महंगाई दर 7.43% और श्रीलंका में सितंबर में खाद्य महंगाई पिछले साल के इसी महीने की तुलना में 93.7 प्रतिशत की भयावह दर से बढ़ी।
तीसरे मानक, बाल मृत्यु दर का आंकड़ा भी देख लीजिए। 2020 के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक पाकिस्तान में शिशु मृत्यु प्रति 1000 पर 65 थी, नेपाल में यह 28, बंगलादेश में 29 थी, जबकि भारत में 33 थी।
इनके अलावा, भारत सरकार ने कोरोना के पीक पर 80 करोड़ लोगों को खाद्यान्न वितरण करने का जो निर्णय लिया था, वह आज भी जारी है। मनरेगा में तमाम कमियों के बावजूद इसे विश्व की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना के तौर पर मान्यता मिली हुई है। भारत का PDS सिस्टम अपनी तमाम खामियों के बावजूद समाज के अंतिम व्यक्ति तक राशन पहुंचाता है और इसे जानने के लिए हमें किसी विश्व बैंक, FAO या यूनिसेफ की रिपोर्ट की दरकार नहीं है।
इन आसानी से उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर बहुत आसानी से यह समझा जा सकता है कि पाकिस्तान को इंडेक्स में 99वां और भारत को 107वां स्थान देने वाले इस हंगर इंडेक्स की विश्वसनीयता संदिग्ध है।
अलबत्ता, रिपोर्ट को खारिज करने के बाद भी इस बात से आंखें मूंद लेना गलत होगा कि हमारे देश में करोड़ों बच्चे पौष्टिक भोजन से वंचित हैं। ऐसी वैश्विक रिपोर्टों से विचलित हुए बिना सरकार को अपने बच्चों, महिलाओं, वृद्धों और अन्य जरूरतमंदों की सिर्फ भूख मिटाने से आगे बढ़कर उन्हें एक पुष्ट और मजबूत नागरिक बनाने के लिहाज से नीतियां बनाने की जरूरत है।