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मनमोहन सिंह कैसे बने 'एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर'? जब विरोध के चलते सोनिया गांधी को हटना पड़ा था पीछे

2004 में, जब कांग्रेस के नेतृत्व वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार को हराकर सत्ता में लौटा, सभी की निगाहें सोनिया गांधी पर थीं, जो कई लोगों का मानना ​​था कि भारत के प्रधान मंत्री के रूप में कार्यभार संभालेंगी

अपडेटेड Dec 27, 2024 पर 4:55 PM
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Manmohan Singh: भारत के पूर्व प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 92 साल की उम्र में गुरुवार, 26 दिसंबर को अंतिम सांस ली।

भारत के पूर्व प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 92 साल की उम्र में गुरुवार, 26 दिसंबर को अंतिम सांस ली। उन्होंने देश की आर्थिक तस्वीर और कई बड़े सुधार करने के लिए जाना जाता है। डॉ. मनमोहन सिंह को अक्सर "द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर" कहा जाता था। क्योंकि ऐसे परिस्थितियों में उन्होंने 2004 में भारत के प्रधान मंत्री की कुर्सी संभाली, जब किसी ने दूर दूर तक नहीं सोचा था कि मनमोहन सिंह देश की कमान संभाल सकते हैं।

2004 में, जब कांग्रेस के नेतृत्व वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार को हराकर सत्ता में लौटा, सभी की निगाहें सोनिया गांधी पर थीं, जो कई लोगों का मानना ​​था कि भारत के प्रधान मंत्री के रूप में कार्यभार संभालेंगी।

सुषमा स्वराज ने दी थी सिर मुंडवा देने की धमकी


हालांकि, सोनिया गांधी के पीएम बनने का विचार विपक्ष को रास नहीं आया। सुषमा स्वराज और उमा भारती जैसे भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेताओं ने सोनिया गांधी की इटली की जड़ों को उजागर किया और उनके प्रधान मंत्री के रूप में कार्यभार संभालने पर विरोध प्रदर्शन की धमकी दी।

इतना ही नहीं सुषमा स्वराज ने ये तक कह दिया था कि अगर सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनीं, तो वह अपना सिर मुंडवा लेंगी।

राहुल गांधी ने भी किया था विरोध

जहां विपक्ष ने गांधी के प्रधानमंत्री बनने के विचार का विरोध किया, तो वहीं कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार के भीतर भी इसे लेकर विरोध था। पूर्व विदेश मंत्री और कांग्रेस नेता नटवर सिंह ने अपनी आत्मकथा - वन लाइफ इज़ नॉट इनफ - में जिक्र किया कि कैसे राहुल गांधी ने अपने पिता राजीव गांधी और दादी इंदिरा गांदी की हत्याओं का हवाला देते हुए अपनी मां से प्रधानमंत्री पद न लेने का आग्रह किया था।

प्रधान मंत्री बनने के बाहरी और आंतरिक विरोध के कारण, सोनिया गांधी ने कदम पीछे खींच लिए। तब उन्होंने डॉ. मनमोहन सिंह का नाम प्रस्तावित किया, जो 1991 में वित्त मंत्री थे, और किसी भी राजनीतिक विवाद से जुड़े नहीं थे।

भले ही डॉ. मनमोहन सिंह एक अप्रत्याशित विकल्प थे, लेकिन अपने बेदाग राजनीतिक करियर और विनम्र स्वभाव के कारण उन्हें कोई विरोध नहीं देखने को मिला।

मनमोहन सिंह का नाम देखकर राष्ट्रपति भी हो गए थे हैरान

पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने अपनी पुस्तक टर्निंग पॉइंट्स में लिखा है कि किस तरह सोनिया गांधी के शपथ लेने के लिए राष्ट्रपति भवन तैयार किया गया था, लेकिन जब उन्होंने इस पद के लिए मनमोहन सिंह को नामांकित किया, तो वह हैरान रह गए।

कलाम ने लिखा, "यह निश्चित रूप से मेरे लिए हैरानी की बात थी और राष्ट्रपति भवन सचिवालय को डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधान मंत्री नियुक्त करने और उन्हें जल्द से जल्द सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने वाले पत्र पर फिर से काम करना पड़ा।"

इस तरह डॉ. मनमोहन सिंह "द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर" बन गए, जैसा कि उनके मीडिया सलाहकार संजय बारू ने अपनी किताब में ये नाम लिखा था।

हालांकि, 2004-2014 तक प्रधान मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल कोई संयोग नहीं था, क्योंकि उन्होंने मनरेगा, RTI एक्ट, और Aadhar सहित प्रमुख सुधार लाए, लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि भारत-अमेरिका परमाणु समझौता थी।

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