उधम सिंह ने पंजाब के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर सर माइकल ओ डायर की लंदन में 13 मार्च, 1940 को हत्या कर दी थी। इस कसूर में उधम सिंह को 31 जुलाई 1940 को फांसी पर चढ़ा दिया गया। यानी देश के लिए वे शहीद हो गये। उधम सिंह जालियांवाला बाग नर संहार के लिए ओ डायर को भी जिम्मेदार मानते थे। सन् 1919 में जालियांवाला बाग में अंग्रेज शासक ने निहत्थों पर अंधाधुध गोलियां बरसा कर सैकड़ों लोगों को मार डाला था। उस जन संहार दस्ते का नेतृत्व ब्रिगेडियर REH डायर कर रहा था। उधम सिंह ने माइकल ओ डायर को इसलिए मारा क्योंकि उसने ब्रिगेडियर डायर के कुकृत्यों का समर्थन किया था। याद रहे कि डायर और ओ डायर दो अलग-अलग व्यक्ति थे। कई लोग इस नाम को लेकर गलतफहमी में रहते हैं।
फांसी पर चढ़ने से पहले उधम सिंह ने कहा था कि "मैं अपने देश के लिए मरना चाहता हूं। ब्रिटिश राज में भारत के लोग भूखों मर रहे हैं।’ याद रहे कि ब्रिटिश शासकों ने यहां के संसाधनों को लूट कर ब्रिटेन को और भी अमीर बनाया था। आंकड़े बताते हैं कि ब्रिटिश शासन काल में पूरी दुनिया की आय में भारत का हिस्सा घटा था और ब्रिटेन का हिस्सा बढ़ता चला गया था। स्वतंत्रता सेनानियों ने यह सपना पाला था कि आजादी के बाद देश एक बार फिर सोने की चिड़िया बनेगा। पर वह सपना पूरा नहीं हुआ। आज कहा जा रहा है कि भारत की गरीबी इसलिए भी दूर नहीं हो रही है क्योंकि सार्वजनिक संसाधनों को हमारे ही देश के कुछ हुक्मरानों ने आजादी के बाद से ही लूटना शुरू कर दिया था। वे अमीर बनते गये।
स्थिति यह है कि आज मोदी सरकार को 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देना पड़ रहा है। नरेंद्र मोदी के शासन काल में सरकार में भ्रष्टाचार कम हुआ है। पर, दशकों से जिसे बिगाड़ दिया गया, उसे बनाने में समय लगेगा। ऐसे में शहीद उधम सिंह के बलिदान को एक बार फिर याद कर लेना मौजूं होगा। लंदन कोर्ट में उधम सिंह के खिलाफ सुनवाई सिर्फ दो दिनों में ही पूरी कर ली गई थी। उन्हें फांसी की सजा दे दी गई। 31 जुलाई 1940 को उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया।
उनकी अस्थियां सन् 1974 में ही दिल्ली लाई जा सकीं। पर, ब्रिटिश सरकार चाहती थी कि इस अस्थि यात्रा का कोई प्रचार नहीं हो। इसके बावजूद पालम हवाई अड्डे पर कांग्रेस अध्यक्ष डा. शंकर दयाल शर्मा , गृह मंत्री उमाशंकर दीक्षित, पंजाब के मुख्य मंत्री जैल सिंह, सूचना प्रसारण मंत्री इंदर कुमार गुजराल, पर्यटन मंत्री राज बहादुर, दिल्ली के मुख्य कार्यकारी पार्षद राधारमण सहित अनेक लोग उपस्थित थे। अस्थियां एक विशेष गाड़ी में कपूरथला हाउस लाई गईं। वहां प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने भी उस पर श्रद्धा के फूल चढ़ाये।
जिस उधम सिंह ने देश को आजाद और संपन्न बनाने के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था, उनका बचपन और जवानी भी संघर्षों में ही बीता था। उधम सिंह का जन्म पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम में हुआ था। उनके पिता रेलवे गुमटी के चैकीदार थे। बचपन में ही उधम सिंह के माता-पिता का निधन हो गया। पहले तो उनके एक पारिवरिक मित्र ने उन्हें अपने यहां रखा, पर बाद में उधम को अनाथालय में रहना पड़ा। जालियांवाला बाग कांड के समय वे अनाथालय में ही थे। उस नृशंस कांड का उनके मानस पर काफी असर पड़ा और उन्होंने प्रतिशोध की शपथ ली।
अनाथालय से निकल कर वे लकड़ी के एक व्यापारी के यहां काम करने लगे। लकड़ी का एक व्यापारी उन्हें पहले कश्मीर और बाद में अफ्रीकी देश केन्या ले गया। केन्या से स्वदेश लौटने के बाद वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। उधम सिंह भगत सिंह के साथियों में थे। शासन की कुदृष्टि से बचने के लिए उधम सिंह कैलीफोर्निया चले गये। वहां भी भारत की स्वतंत्रता के लिए गदर पार्टी बनी थी जिसमें वे शामिल हो गये। उन्होंने वहां से कुछ हथियार भी समुद्री जहाज के जरिए भारत भेजे थे। सन् 1935 में वे फिर स्वदेश आ गये। उन्होंने अमृसर में एक दूकान खोली। दूकान पर राम मोहम्मद सिंह आजाद नाम की तख्ती लगी थी। वह दूकान क्रांतिकारियों का अड्डा थी।
हथियार रखने के आरोप में उधम सिंह गिरफ्तार कर लिये गये। जेल से रिहा होते ही वे 1937 में जाली पासपोर्ट के आधार पर इंगलैंड चले गये। वहां से फिर वे जर्मनी और रुस भी गये। वहां से वे अपने साथ एक शॅाल और एक रिवाल्वर लाये थे।उसी से उन्होंने ओ डायर की हत्या की। यह काम उन्होंने तब किया जब ओ डायर लंदन की एक सभा में थे। कैक्सटन हॉल में सभा हो रही थी। सभा में करीब डेढ़ सौ लोग थे। ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसाइटी ने सभा आयोजित की थी।
भारत के सचिव लॉर्ड जेटलैंड सभा की अध्यक्षता कर रहे थे। उधम सिंह ने वहां घुस कर ओ डायर की हत्या कर दी। हमला इतना घातक था कि उनकी तत्काल मृत्यु हो गई।इस हमले में कुछ अन्य लोग भी घायल हुए थे। लोगों ने उधम सिंह को पकड़ कर तुरंत पुलिस के हवाले कर दिया। उधम सिंह को ब्रिक्सटन जेल में रखा गया। मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई। प्रत्यक्षदर्शी गवाह मौजूद थे ही।
उधम सिंह के वकील वी.के.कृष्ण मेनन थे। कोर्ट में उधम सिंह ने किसी सवाल का जवाब नहीं दिया। वे हर सवाल के जवाब में यही कहते रहे कि मैं देश के लिए मरना चाहता हूं। अंततः 31 जुलाई 1940 को उन्हें फांसी दी गई।