रिजर्व बैंक (Reserve Bank) के बुलेटिन में प्रकाशित एक लेख के अनुसार भारत का चालू खाते का घाटा (current account deficit (CAD) 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 3 प्रतिशत के भीतर रहने की संभावना है। जबकि पिछले वित्त वर्ष के दौरान यह 1.2 प्रतिशत रहा था। CAD किसी देश के भुगतान संतुलन (balance of payments) का एक प्रमुख इंडिकेटर होता है।
बढ़ता व्यापार घाटा या आयात और निर्यात के मूल्य के बीच का अंतर भुगतान संतुलन पर दबाव डालता है।
2022-23 के पहले पांच महीनों के दौरान भारत का व्यापार घाटा पिछली इसी अवधि में 54 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 124.5 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया। पूरे वित्त वर्ष 2021-22 में व्यापार घाटा 189.5 अरब अमेरिकी डॉलर था।
'स्टेट ऑफ द इकोनॉमी' शीर्षक वाले लेख में सबसे महत्वपूर्ण बात यह कही गई है कि अगले कुछ महीनों में कच्चे तेल के कॉन्ट्रैक्ट्स की भविष्य की कीमतों में नरमी आई है। वनस्पति तेलों और फर्टिलाइजर्स की अंतरराष्ट्रीय कीमतें भी पहले की तुलना में अधिक नरम दिख रही हैं। इसमें कहा गया है कि अगस्त में पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात में साल-दर-साल आधार पर सुधार हुआ है।
कुल मिलाकर 2022-23 के लिए वस्तुओं और सेवाओं के लिए 750 अरब अमेरिकी डालर का निर्यात लक्ष्य पहुंच के अंदर दिखाई दे रहा है। इसके अलावा, भारत दुनिया में टॉप रेमिटेंसेस रिसीवर के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत कर रहा है। पिछले साल भारत में आने वाला निवेश 90 अरब अमेरिकी डालर तक पहुंच गया। ये एक नया रिकॉर्ड बनाने के लिए तैयार है।
आरबीआई के डिप्टी गवर्नर माइकल देवव्रत पात्रा (RBI Deputy Governor Michael Debabrata Patra) के नेतृत्व वाली टीम द्वारा लिखे गए लेख में कहा गया है, "कुल मिलाकर, चालू खाते का घाटा जीडीपी के 3.0 प्रतिशत के भीतर रहने की उम्मीद है। पोर्टफोलियो निवेश में वापसी और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मजबूत रहने के साथ इस तरह का घाटा बेहद फाइनेंसिएबल है।"
हालांकि केंद्रीय बैंक ने कहा कि इस लेख में व्यक्त की गई राय लेखकों की अपनी निजी राय हैं। ये भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India (RBI) के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं।