देश के 13वें प्रधानमंत्री (2004-2014) और वित्तीय सुधारों के प्रणेता मनमोहन सिंह का 92 वर्ष की उम्र में देहांत हो गया है। मूलरूप से अर्थशास्त्री रहे मनमोहन सिंह की मृत्यु के बाद देश के तमाम दिग्गज नेताओं ने श्रद्धांजलि दी है और पूर्व पीएम की उपलब्धियों को याद किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सोशल मीडिया पोस्ट में मनमोहन सिंह को श्रद्धांजलि दी है। मनमोहन सिंह के देहांत के साथ ही देशभर के मीडिया और सोशल मीडिया में एक टर्म वायरल हो रहा है। वह टर्म है 'एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर'। यह टर्म मनमोहन सिंह के मीडिया एडवाइजर रहे संजय बारू की किताब से निकला था जिस पर बाद में फिल्म भी बनी और खूब चर्चित हुई।
मनमोहन सिंह जिस यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री रहे थे, उस पर भ्रष्टाचार के खूब आरोप लगे थे। इन आरोपों पर खुद मनमोहन ने कहा था कि वर्तमान मीडिया की तुलना में इतिहास उन्हें बेहतर रूप याद रखेगा। लेकिन क्या मनमोहन वाकई एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर थे? इस सवाल का सबसे बेहतर जवाब मनमोहन सिंह कैबिनेट में मंत्री रहे और फिर बाद में देश के राष्ट्रपति बने प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब में दिया था। गठबंधन की सरकारों के दौर पर लिखी अपनी किताब में प्रणब मुखर्जी ने देश के लिए मनमोहन के योगदान को याद किया था। किताब का नाम है-THE COALITION YEARS. दरअसल यह किताब प्रणब ने दो हिस्सों में लिखी थी जिसका पहला हिस्सा था THE TURBULENT YEARS 1980-1996। इसके बाद THE COALITION YEARS 1996 से 2012 तक की राजनीति पर लिखी गई थी।
'साहस और प्रतिबद्धता से भरे व्यक्ति हैं मनमोहन'
प्रणब ने मनमोहन के योगदान की जमकर प्रशंसा की थी और साफ कहा था-मनमोहन एक प्रखर राष्ट्रवादी, साहस और प्रतिबद्धता से भरे व्यक्ति थे और निश्चित तौर पर एक एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर नहीं थे। प्रणब ने एक चैप्टर में कई उदाहरणों के जरिए समझाया था कि क्यों मनमोहन सिंह एक एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर नहीं थे।
प्रणब मुखर्जी लिखते हैं-'मुझे पक्का विश्वास है कि भविष्य मनमोहन को बिल्कुल अगल रोशनी में देखगा, ठीक उसी तरह जैसे PV का आंकलन आज किया जाता है। 1991 में आर्थिक उदारीकरण में उनके रोल को लेकर उन्हें 'सुधारों का पितामह' कहना बिल्कुल ठीक रहेगा। ऐसे वक्त में जब देश कंगाल होने की कगार पर था तब मनमोहन ने जिम्मेदारी उठाई और कठोर सुधारों की शुरुआत की। पीवी नरसिम्हा राव के मजबूत सपोर्ट से मनमोहन सिंह ने बड़े परिवर्तनों की शुरुआत की थी।'
क्यों PM बनाए गए थे मनमोहन, प्रणब ने दिया था जवाब
इसके बाद 1991 के कई सुधारों का जिक्र कर प्रणब ने लिखा है-यह मनमोहन की विरासत और गहरा अनुभव था जिसकी वजह से उन्हें प्रधानमंत्री बनाया गया। वह एक अराजनीतिक आदमी थे जो राष्ट्र के हित को सर्वोपरि रखते थे। अपने फैसलों पर मजबूती से टिकने का साहस रखते थे और जरूरत पड़ने पर प्रेरक व्यक्तित्व से आम सहमति भी तैयार कर लेते थे।
मनमोहन सिंह के व्यक्तित्व की ताकत का जिक्र करते हुए प्रणब ने न्यूक्लियर डील को याद किया। वो लिखते हैं- उनके (मनमोहन सिंह) कार्यकाल में कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की गईं। लेकिन सबसे अहम इंडो-यूएस न्यूक्लियर डील के दौरान मनमोहन की दृढ़ता रही। प्रणब मुखर्जी ने 2006 के इस प्रकरण को याद करते हुए लिखा है कि तब लेफ्ट पार्टियों ने इस डील का विरोध किया था लेकिन मनमोहन सिंह अड़ गए थे। मनमोहन के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव भी आया लेकिन उससे भी वो मजबूती से पार पा गए।
प्रणब मुखर्जी मनमोहन सिंह की कैबिनेट में मंत्री भी थे। उन्होंने मनमोहन के साथी के रूप में काम करने का भी अनुभव साझा किया। उन्होंने लिखा कि मनमोहन सिंह की कैबिनेट में उन्हें काम करने की सबसे ज्यादा स्वतंत्रता मिली। वो लिखते हैं-' मनमोहन सिंह को एक विविधतापूर्ण गठबंधन की सरकार को मैनेज करना था और ऐसा करने के लिए काबिलियत चाहिए जो बहुत लोगों के पास नहीं होती। यह काम उन्होंने पूरे आत्मविश्वास के साथ किया और अपनी कैबिनेट के सहयोगियों को उनका काम करने की शक्ति दी। मैं यह व्यक्तिगत अनुभव से कह सकता हूं। मैंने इंदिरा गांधी और पीवी नरसिम्हा राव की कैबिनेट में काम किया था। मुझे काम करने की सबसे ज्यादा स्वायत्तता मनमोहन सिंह के साथ काम करते वक्त मिली।'