दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गुरुवार को निचली अदालत से जमानत मिल गई, लेकिन हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। अपने 25 पेज के आदेश में, दिल्ली के स्पेशल जज नियाय बिंदू ने ये कहा कि ऐसे सबूतों की कमी है, जो ये बताते हों कि शराब नीति मामले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में केजरीवाल का सीधा संबंध है। साथ आदेश में प्रवर्तन निदेशालय (ED) को आरोपों को पूर्वाग्रह बताया है।
ED ने अरविंद केजरीवाल की जमानत के आदेश के खिलाफ शुक्रवार सुबह दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, और दलील दी कि ED को जमानत का विरोध करने का मौका नहीं दिया गया था और निचली अदालत ने पूरी डिटेल के साथ जमानत का फैसला अभी तक जारी नहीं किया है।
हाई कोर्ट ने दिन में निचली अदालत के आदेश के खिलाफ ED की अपील पर सुनवाई होने तक तिहाड़ जेल से सीएम की रिहाई पर रोक लगा दी।
Hindustan Times के मुताबिक, जस्टिस नियाय बिंदू का विस्तृत फैसला इसके तुरंत बाद अपलोड किया गया, जिसमें जज ने बताया कि उन्होंने अरविंद केजरीवाल को जमानत क्यों दी।
आदेश में, ट्रायल जज ने ED के इस दावे पर ध्यान दिया कि अगर केजरीवाल को रिहा किया गया, तो चल रही जांच से समझौता किया जा सकता है, क्योंकि वे गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं और सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं।
हालांकि, अदालत ने बताया कि जांच अधिकारी (IO) ने खुलासा किया कि कथित ₹100 करोड़ में से केवल ₹40 करोड़ का पता लगाया गया था, बाकी रकम का पता लगाने के लिए कोई तय समयसीमा नहीं थी।
अदालत ने आम आदमी पार्टी (AAP) प्रमुख के खिलाफ ठोस सबूतों की कमी को उजागर किया। जस्टिस बिंदू ने आदेश में कहा, “इस पहलू पर, ED ये साफ नहीं कर पाया कि पूरे पैसे के लेन-देन का पता लगाने के लिए कितना समय चाहिए। इसका मतलब ये है कि जब तक ईडी की ओर से बाकी रकम का पता लगाने की ये कवायद पूरी नहीं हो जाती, तब तक आरोपी को सलाखों के पीछे ही रहना होगा, वो भी तब जब उसके खिलाफ उचित सबूत भी नहीं है। ED की ये दलील भी मानने लायक नहीं है।"
अदालत ने इस बात पर भी ED की चुप्पी पर ध्यान दिया कि कैसे अपराध की कमाई का इस्तेमाल कथित तौर पर 2022 में गोवा विधानसभा चुनावों में AAP की ओर से किया गया था। अदालत को ये भी बड़ा अजीब लगा कि लगभग दो सालों के बाद, कथित रकम का एक बड़ा हिस्सा अब भी नहीं मिला।
आदेश में कहा गया, “ये भी ध्यान देने वाली बात है कि ED इस तथ्य के बारे में चुप है कि अपराध की आय का इस्तेमाल गोवा में विधानसभा चुनावों में AAP ने कैसे किया, क्योंकि लगभग दो सालों के बाद, कथित राशि के बड़े हिस्से का पता लगाना अब भी बाकी है।"
अदालत ने अप्रूवर यानि सरकारी गवाह और साथी आरोपियों की विश्वसनीयता पर ED की निर्भरता की भी आलोचना की। दूसरे आरोपी व्यक्तियों के साथ उनके संबंधों के बारे में ED के दावों के बावजूद, अदालत ने केजरीवाल को अपराध की कथित आय से सीधे तौर पर जोड़ने वाले सबूतों की कमी पर भी गौर किया।
अदालत ने कहा, “ये संभव हो सकता है कि आरोपी के कुछ जानने वाले लोग किसी अपराध में शामिल हों या अपराध में शामिल किसी तीसरे व्यक्ति को जानते हों, लेकिन ED ऐसा कोई सबूत पेश नहीं कर पाई, जो साबित कर सके है कि आरोपी का अपराध की आय से सीधा संबंध है।"
ऐसा लगता है कि ED का भी मानना है कि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूत आरोपी के खिलाफ काफी नहीं हैं। जांच एजेंसी को तत्पर और निष्पक्ष होना चाहिए, ताकि ये लगे कि एजेंसी की ओर से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का भी पालन किया जा रहा है।