बीजेपी नेतृत्व ने आगामी महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए एक बार फिर देवेंद्र फडणवीस पर दांव खेला है। इसके साथ ही उन अटकलों पर कुछ समय के लिए विराम लग गया है कि उन्हें अगला पार्टी प्रमुख बनने के लिए दिल्ली भेजा जा रहा है। हालांकि, फडणवीस को चुनाव से पहले अपनी पार्टी, महायुति गठबंधन और विपक्ष से मिलने वाली कई चुनौतियों का सामना करना होगा। फडणवीस मौजूदा BJP-शिवसेना-NCP सरकार में उप-मुख्यमंत्री हैं।
इसमें सबसे पहली चुनौती है मराठा फैक्टर। मराठा आरक्षण कार्यकर्ता, मनोज जरांगे पाटिल ने बीजेपी, खासकर देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को बीजेपी उम्मीदवारों को हराने तक का निर्देश दे दिया है।
मराठा आंदोलन के प्रभाव के कारण मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र में बीजेपी को नुकसान हुआ, जिससे राज्य में उसकी कुल सीटें कम हो गईं। यह देखना दिलचस्प होगा कि मराठा चुनौती से निपटने के लिए फडणवीस क्या रणनीति बनाते हैं।
2019 के विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) से पहले, कई विपक्षी नेता बीजेपी में शामिल हो गए, क्योंकि तब पार्टी मजबूत स्थिति में दिख रही थी। हालांकि, पिछले लोकसभा नतीजों ने BJP की सत्ता में वापसी को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
एक विपक्षी दल की ओर से कराए गए हालिया सर्वे से पता चला है कि MVA को बहुमत के लिए जरूरत से ज्यादा सीटें जीतने की संभावना है। ऐसे में पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल बनाए रखना और दलबदल को रोकना अब फडणवीस पर निर्भर है।
गठबंधन में "बड़ा भाई" बने रहना
अगर बीजेपी सीएम पद दोबारा हासिल करना चाहती है, तो उसे गठबंधन में सबसे ज्यादा सीटें जीतनी होंगी। इसे हासिल करने के लिए पार्टी को गठबंधन के दूसरे घटकों की तुलना में ज्यादा सीटों पर लड़ना भी होगा।
हालांकि, एकनाथ शिंदे और अजीत पवार जैसे दूसरे गठबंधन साथियों की भी महत्वाकांक्षाएं हैं। अजित पवार को ये स्वीकार करने में कभी हिचकिचाहट नहीं हुई कि उनकी नजर सीएम पद पर है। शिंदे भी सीएम पद पर वापसी करना चाहते हैं। फडणवीस को महत्वाकांक्षाओं के इस टकराव से निपटने का रास्ता खोजना होगा।
महायुति के प्रभाव को बनाए रखना
एकनाथ शिंदे की शिवसेना उस समय सहज नहीं थी, जब अजित पवार अपने वफादार विधायकों के साथ NCP से बगावत कर महायुति सरकार में शामिल हो गए।
जब शिंदे और पवार MVA सरकार का हिस्सा थे, तब भी उनके बीच कड़वे रिश्ते थे। शिंदे के वफादारों ने आरोप लगाया कि वित्त मंत्री के रूप में अजित पवार ने गलत तरीके से पैसा बांटा।
नई सरकार में भी दोनों पार्टियों के बीच कड़वाहट दूर नहीं हुई है और दोनों पार्टियों के सदस्यों के बीच अक्सर मनमुटाव की खबरें आती रहती हैं।
लोकसभा चुनावों में महायुति की हार का एक अहम कारण किसानों का गुस्सा था, खासकर उत्तरी महाराष्ट्र और विदर्भ क्षेत्र में। प्याज के निर्यात पर रोक से किसान नाराज हो गए, जिससे उनकी कमाई पर असर पड़ा था।
सूखे ने इस चोट पर नमक का काम किया। अब बीजेपी किसान हितैषी रुख अपनाने की कोशिश कर रही है। "मुख्यमंत्री लाडली बहिन योजना" के जरिए महिला वोटर्स को लुभाने की कोशिश है। इस योजना के तहक हर महीने महिलाओं को एक तय रकम दी जाती है।
विधानसभा चुनाव के नतीजे फडणवीस के राजनीतिक पथ में एक अहम मोड़ होंगे। वह राज्य की राजनीति में रहेंगे या केंद्र में जाएंगे, ये भाजपा के चुनावी प्रदर्शन पर निर्भर करता है।