Get App

म्यांमार तख्तापलटः भारत की नीति की आलोचना करने से पहले जमीनी जरूरतों को समझिए

लोकतांत्रिक मूल्यों का पक्षधर होने का एक मतलब किसी देश के लोकतंत्र-समर्थकों का हमदर्द होना तो होता है लेकिन हमदर्दी इतनी नहीं बढ़नी चाहिए कि किसी देश के अंदरुनी मामलों में सक्रिय हस्तक्षेप करके वहां अपनी मर्जी की कठपुतली सरकार बनवाने की राह पर चला जाये

MoneyControl Newsअपडेटेड Apr 04, 2021 पर 9:56 AM
म्यांमार तख्तापलटः भारत की नीति की आलोचना करने से पहले जमीनी जरूरतों को समझिए

चंदन श्रीवास्तव

"महिमा घटी समुद्र की, रावण बस्यो पड़ोस"- म्यांमार के हालात पर भारत सरकार के रुख को लेकर कवि रहीम के दोहे का यह हिस्सा याद आ रहा है। अगर समुद्र किनारे लंका नगरी ना होती और लंका का राजा रावण ना होता तो फिर समुद्र पर पुल भी ना बनता। अलंघ्य कहे जाने वाले सागर की महिमा बरकरार रहती, कोई उसे लांघ नहीं पाता।

म्यांमार का पड़ोसी होने के नाते भारत के साथ फिलहाल यही हो रहा है। याद दिलाया जा रहा है कि भारत तो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और म्यांमार में चलने वाली लोकतंत्र की लड़ाई को सक्रिय समर्थन देने का भी उसका एक इतिहास रहा है।

तो फिर.. इस बार हुए तख्तापलट के बाद से भारत ने सोची-समझी चुप्पी क्यों साध रखी है, कड़े शब्दों में म्यांमार की फौज और उसके जेनरल की आलोचना क्यों नहीं की अबतक ? रिश्ते क्यों बहाल रखे हैं,म्यांमार के फौजी शासन का बॉयकॉट क्यों नहीं किया अबतक ?

लोकतंत्र की महिमा पर सवाल?

मिसाल के लिए, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर टिप्पणी करने वाले विदेशी (अमेरिकी) जर्नल द डिप्लोमेट ने भारत की म्यांमार नीति को खतरनाक करार देते हुए लिखा है कि "भारत म्यामार के सैन्य सत्ता-प्रतिष्ठान (इसे तत्मादाव बुलाया जाता है) की तुष्टीकरण की नीति पर चल रहा है। भारत की यह नीति विरोध-प्रदर्शनों को भड़का सकती है और शायद भारत के पूर्वोत्तर के राज्यों में राष्ट्र-विरोधी ताकतों को भी हवा दे सकती है।"

भारत ने मार्च के आखिर में म्यांमार के सेना-दिवस की परेड में शिरकत की, म्यांमार स्थित अपने मिलिट्री अटैशे को आयोजन में भाग लेने के लिए भेजा। इस पर टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने समाचार में तीन मोटी-मोटी बातें याद दिलायीं।

एक तो ये कि जिस दिन म्यांमार में सेना-दिवस की परेड हुई उसी दिन वहां फौज ने 100 से ज्यादा लोकतंत्र-समर्थक प्रदर्शनकारियों को मार गिराया। दूसरे ये कि 1 फरवरी के दिन से सत्ता पर काबिज होने के बाद म्यांमार की सेना जिस "व्यापक, व्यवस्थित और घातक तरीके से शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शनों पर हमलावर है और मानवाधिकारों का उल्लंघन" कर रही है उसकी संयुक्त राष्ट्र संघ ने कठोर शब्दों में निन्दा की है।

सब समाचार

+ और भी पढ़ें