Rupee Symbol Row: भाषा को लेकर तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच जारी विवाद में एक नया मोड़ आ गया है। तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने राज्य के बजट से आधिकारिक रुपये (₹) का सिंबल बदलकर तमिल भाषा में कर दिया है। स्टालिन सरकार ने तमिलनाडु के बजट से '₹' का सिंबल हटाकर उसे 'ரூ' सिंबल से रिप्लेस कर दिया है। वह सिंबल तमिल लिपि का अक्षर 'रु' है। यह पहली बार है जब किसी राज्य ने नेशनल करेंसी सिंबल को अस्वीकार कर दिया है। पूरे देश में रुपये को सिंबल ₹ को आधिकारिक तौर पर अपनाया जाता है। लेकिन तमिलनाडु सरकार अलग सिंबल लेकर आ गई है।
इस कदम के बारे में CNN न्यूज़ 18 से बात करते हुए DMK नेता सरवनन अन्नादुरई ने कहा, "हमने रुपये के लिए तमिल शब्द रखा है। यह कोई टकराव नहीं है। इसमें कुछ भी अवैध नहीं है। हम तमिल को प्राथमिकता देंगे, इसीलिए सरकार ने यह कदम उठाया।" उन्होंने आगे कहा, "मैंने उनसे सिर्फ़ तमिल को उचित रूप से बढ़ावा देने के लिए कहा है। तमिलनाडु शिक्षा के क्षेत्र में लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। लोग यहां से उत्तर भारत की ओर नहीं जा रहे हैं। वे अमेरिका और ब्रिटेन जा रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी इसे पचा नहीं पा रही है।"
सिंबल बदलने पर बीजेपी नेता अमित मालवीय ने तमिलनाडु सरकार पर तीखा हमला बोला है। बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख मालवीय ने गुरुवार को कहा, "उदय कुमार धर्मलिंगम एक भारतीय शिक्षाविद और डिजाइनर हैं, जो डीएमके के एक पूर्व विधायक के बेटे हैं, जिन्होंने भारतीय रुपये (₹) का चिह्न डिजाइन किया था, जिसे भारत ने स्वीकार किया था। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन तमिलनाडु बजट 2025-26 दस्तावेज से ₹ चिह्न हटाकर तमिलों का अपमान कर रहे हैं। कोई कितना हास्यास्पद हो सकता है?"
आपको जानकारी के लिए बता दें कि रुपये (₹) के सिंबल का डिजाइन उदय कुमार धर्मलिंगम ने बनाया था। वह पेशे से एक शिक्षाविद और डिजाइनर हैं। उनका डिजाइन पांच शॉर्ट लिस्टेड सिंबल में से चुना गया था। भारत सरकार ने 15 जुलाई 2010 को इस सिंबल को आधिकारिक तौर पर अपनाया था।
नई शिक्षा नीति (NEP) और ट्राय लैंग्वेज पॉलिसी को लेकर स्टालिन सरकार और केंद्र के बीच भारी विवाद चल रहा है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने आरोप लगाया है कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक भगवा नीति है, जिसका मकसद हिंदी को बढ़ावा देना है। उन्होंने दावा किया कि भारतीय जनता पार्टी संसदीय क्षेत्रों के प्रस्तावित परिसीमन के जरिए अपने दबदबे वाले उत्तरी राज्यों में सीटों की संख्या बढ़ाकर अपनी सत्ता बनाए रखने की कोशिश कर रही है।