Ram Mandir: शालिग्राम से बनी रामलला कि मूर्ति में उकेरे गए हैं महत्वपूर्ण हिंदू प्रतीक, जनिए क्या है महत्व

Ram Mandir: शालिग्राम को भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है। हिंदू संस्कृति में, यह माना जाता है कि यह पत्थर उन लोगों के लिए आशीर्वाद, समृद्धि और सौभाग्य लाता है जो इसकी पूजा करते हैं। प्राचीन काल में इनका उपयोग हिन्दू मंदिरों के निर्माण में आधारशिला के रूप में किया जाता था। द हिंदू के मुताबिक अयोध्या में मंदिर के गर्भगृह को सुशोभित करने वाली बाल स्वरूप राम की मूर्ति तीन अरब साल पुरानी चट्टान से बनाई गई है

अपडेटेड Jan 22, 2024 पर 10:21 AM
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Ram Mandir:गर्भगृह को सुशोभित करने वाली मूर्ति को तीन अरब साल पुरानी चट्टान से तराशा गया है, मूर्ति के सिर के चारों ओर एक स्वस्तिक, ओम का चिन्ह, चक्र, एक गदा और एक शंख है

Ram Mandir Inauguration : 22 जनवरी को अयोध्या राम मंदिर में स्थापित की जाने वाली काले पत्थर की मूर्ति, भगवान राम की पांच साल के आयु की छवि है। मैसूर के मूर्तिकार अरुण योगीराज द्वारा बनाई गई यह मूर्ति 51 इंच लंबी है और इसका वजन 1.5 टन है। यह प्रतिमा नेपाल से लाई गई विशेष चट्टानों से बनाई गई है, जिन्हें शालिग्राम के नाम से जाना जाता है। ये चट्टाने लगभग 6 करोड़ साल पुरानी होने का अनुमान है। शालिग्राम पत्थर हिंदू धार्मिक रीति-रिवाजों में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।

शालिग्राम और उसका महत्व

मुख्य रूप से पश्चिमी नेपाल में काली गंडकी नदी के किनारे पाए जाने वाले ये दुर्लभ काले या गहरे भूरे पत्थर विभिन्न आकृतियों और आकारों में पाए जाते हैं। इनमें हर के अपने विशिष्ट चिह्न हैं जिन्हें भगवान विष्णु के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करने वाला माना जाता है। ये पत्थर प्राचीन समुद्री जीवों के जीवाश्म से बने हैं। ये पत्थर मुख्य रूप से जीवाश्म अम्मोनाइट ( fossilised ammonite)से बने होतो। अम्मोनाइट एक मोलस्क हो जो लाखों साल पहले पाया जाता था।


शालिग्राम को भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है। हिंदू संस्कृति में, यह माना जाता है कि यह पत्थर उन लोगों के लिए आशीर्वाद, समृद्धि और सौभाग्य लाता है जो इसकी पूजा करते हैं।

प्राचीन काल में इनका उपयोग हिन्दू मंदिरों के निर्माण में आधारशिला के रूप में किया जाता था। द हिंदू के मुताबिक अयोध्या में मंदिर के गर्भगृह को सुशोभित करने वाली बाल स्वरूप राम की मूर्ति तीन अरब साल पुरानी चट्टान से बनाई गई है। कुछ प्रसिद्ध मंदिर जहां शालिग्राम की पूजा होती है उनमें पुरी का जगन्नाथ मंदिर, उत्तराखंड का बद्रीनाथ मंदिर और श्रीलंका का रंगनाथ मंदिर शामिल हैं।

राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा कि जल, दूध और आचमन का मूर्ति पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। “भगवान श्री राम की मूर्ति की लंबाई और इसकी स्थापना की ऊंचाई भारत के प्रतिष्ठित अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की सलाह पर इस तरह से डिजाइन की गई है कि हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि राम नवमी को स्वयं भगवान सूर्य श्री राम का अभिषेक करेंगे। इस दिन दोपहर के समय सूर्य की किरणें सीधे उनके माथे पर पड़ेंगी जिससे मूर्ति का मस्तक चमक उठेगा।''

प्रमुख हिंदू प्रतीकों को दर्शाने वाली मूर्तियां

भगवान राम, भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं। 22 जनवरी को अयोध्या में स्थापित की जाने वाली मूर्ति के दोनों ओर भगवान विष्णु के सभी 10 अवतारों को उकेरा गया है। इसमें मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिम्हा, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि नामक 10 अवतारों को उकेरा गया है। भगवान राम के सबसे बड़े भक्त, भगवान हनुमान को राम लला की मूर्ति के दाहिने पैर के पास जगह मिली है। जबकि भगवान गरुड़, जो भगवान विष्णु की सवारी (वाहन) हैं, को राम की मूर्ति के बाएं पैर के पास उकेरा गया है।

मूर्ति के सिर के चारों ओर एक स्वस्तिक, ओम चिन्ह, चक्र, एक गदा और एक शंख बनाया गया है। ये सभी चित्रण भगवान विष्णु और भगवान राम से निकटता से जुड़े हुए हैं। मूर्ति का दाहिना हाथ एक तीर के साथ आशीर्वाद मुद्रा में है जबकि बाएं हाथ में धनुष है।

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प्राण प्रतिष्ठा से पहले 22 जनवरी को रामलला की आंखों से कपड़ा हटा दिया जाएगा। इस प्रक्रिया को नेत्रोनमेलन कहा जाता है। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य गोविंद देव गिरि ने बताया कि प्राण प्रतिष्ठा से पहले 22 जनवरी को राम लला की आंखों से कपड़ा हटा दिया जाएगा। आचार्य गिरि ने एएनआई को बताया, "नेत्रोनमेलन की मूल विधि में सोने की पट्टी में शहद लगा कर आंखों का अभिषेक होता है, जो लोगों को 'काजल' जैसा दिखता है।"

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