सुप्रीम कोर्ट (SC) ने गुरुवार को बीजेपी सांसद मनोज तिवारी (Manoj Tiwari) की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें दिल्ली में पटाखों पर पूरी तरह बैन (Delhi firecrackers Ban) लगाने के फैसले को चुनौती दी गई थी। उन्होंने अदालत से याचिका पर तत्काल सुनवाई की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने कहा, "लोगों को साफ हवा में सांस लेने दें... अपना पैसा मिठाई पर खर्च करें।"
इससे पहले दिन में, दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) के सभी तरह के पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर पूरी तरह प्रतिबंध को चुनौती देने वाली एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था। इसमें सुप्रीम कोर्ट के सामने पटाखों से जुड़े मुद्दों की पेंडेंसी का हवाला दिया गया था।
याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि DPCC की तरफ से 14 सितंबर को लगाया गया "आखिरी समय का प्रतिबंध" मनमाना और अवैध था। इससे उनकी आजीविका पर सीधा-सीधा असर पड़ रहा है।
एक दिन पहले, दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी में पटाखे बनाने, स्टोरेज और बिक्री एक दंडनीय अपराध है। इसके लिए 5,000 रुपए तक का जुर्माना और तीन साल की जेल हो सकती है।
पटाखे खरीदने और फोड़ने पर 200 रुपए का जुर्माना और छह महीने की जेल की सजा भी हो सकती है। इन नियमों का मकसद त्योहारी सीजन के दौरान वायु प्रदूषण पर रोक लगाना है, जब वायु की गुणवत्ता काफी खराब हो जाती है।
PM 2.5 पोल्यूटेंट 20 फीसदी घटा
दिल्ली में सर्दी के दौरान औसत पीएम 2.5 प्रदूषण महामारी से पहले के मुकाबले 20 फीसदी घट गया है। विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (सीएसई) की ओर से बृहस्पतिवार को जारी नई रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।
आकलन के दौरान दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में एक जनवरी 2015 से लगातार सर्दी के सात मौसमों और सर्दी पूर्व के रुझानों को शामिल किया गया। यह रिपोर्ट इस क्षेत्र के सक्रिय 81 एयर क्वालिटी सर्विलांस स्टेशन से उपलब्ध ‘रियल टाइम डाटा’ पर आधारित है।
महामारी से पहले सर्दी (एक अक्टूबर से 28 फरवरी) के दौरान पीएम 2.5 कंसंट्रेशन प्रति घन मीटर 180-190 माइक्रोग्राम तक बढ़ जाता था। लेकिन रिपोर्ट में कहा गया है कि पीएम 2.5 कंसंट्रेशन अब घटकर प्रति घन मीटर 150 से 160 माइक्रोग्राम तक रह गया है।
CSE में रिसर्च डायरेक्टर अनुमिता रॉयचौधरी ने कहा कि रिपोर्ट का मकसद प्रदूषण के रुझान को समझना है।
हालांकि, CSE ने पाया कि सुधार के बावजूद इस मौसम का औसत अब भी 24 घंटों के मानक स्तर (60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) के मुकाबले 150 फीसदी ज्यादा है और यह करीब-करीब वार्षिक मानक स्तर (40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) का चार गुना है।