सुप्रीम कोर्ट ने मिनरल्स की रॉयल्टी पर एक बड़ा फैसला सुनाया है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने खनिजों पर सेस वसूलने के राज्य सरकारों के अधिकारों को सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की पीठ ने यह फैसला सुनाया। पीठ के 8 जज इस फैसले के पक्ष में थे, जबकि एक जज की राय अलग थी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने माइनर्स और केंद्र सरकार की याचिका खारिज कर दी। इसमें खनिजों पर रॉयल्टी वसूलने के राज्य सरकारों के अधिकारों को चुनौती दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने फैसले में कहा कि मिनरल्स पर रॉयल्टी वसूलना राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र के तहत आता है। माइंस एंड मिनरल्स (डेवलेपमेंट एंड रेगुलेशन) एक्ट (MMDR Act) के तहत मिनरल्स पर रॉयल्टी वसूलने के वास्ते राज्य सरकारों के लिए कोई सीमा तय नहीं की गई है। देश के सबसे बड़े कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य की विधायिका को जमीन पर टैक्स लगाने का विधायी अधिकार है। इसमें खनिज वाली जमीन भी शामिल है। जमीन से निकलने पर खनिज पर टैक्स लगाया जा सकता है।
माइनिंग कंपनियों ने राज्य के अधिकार पर उठाए थे सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में प्राइवेट माइनिंग कंपननियों की तरफ से फाइल की गईं 80 से ज्यादा अपील पर सुनवाई की। प्राइवेट माइनिंग कंपनियों ने राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले मिनरल्स पर सेस लगाने के राज्य सरकारों के अधिकार को चुनौती दी थी। माइनिंग कंपनियों के वकीलों की दलील थी कि मिनरल्स पर टैक्स लगाने का अधिकार केंद्र सरकार को है। उन्होंने यह दलीली भी दी कि मिनरल्स पर सेस लगाने से प्राइवेट माइनिंग कंपनियों पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है जिसका असर मिडनरल डेवलपमेंट पर पड़ता है।
मिनरल्स पर वसूली जाने वाली रॉयल्टी टैक्स नहीं है
देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि एमएमडीआर एक्ट, 1957 के तहत मिनरल्स पर चुकाई जाने वाली रॉयल्टी टैक्स नहीं है। यह मिनरल्स के इस्तेमाल के लिए राज्य और माइनिंग कंपनी के बीच हुए समझौते का हिस्सा है। यह मामला पहली बार 1989 में इंडिया सीमेंट्स से जुड़े मामले में आए एक फैसले से सुर्खियों में आया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की एक पीठ ने तमिलनाडु सरकार के खिलाफ इंडिया सीमेंट्स की याचिका पर फैसला दिया था। इसमें कहा गया था कि रॉयल्टी एक टैक्स है।
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2004 में सुप्रीम कोर्ट ने मामला 9 जजों की पीठ को ट्रांसफर किया था
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की एक पीठ ने 2004 में कहा था कि 1989 के फैसले में टाइपोग्राफिकल एरर यानी टाइपिंग में गलती हुई थी। उसने साफ कर दिया था कि रॉयल्टी टैक्स नहीं है। उसके बाद इस मामले को सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की पीठ को ट्रांसफर कर दिया गया था।