दो आंखें, बारह स्क्रीन, कभी कंप्यूटर, कभी टीवी तो कभी फोन की स्क्रीन। हम क्या और हमारे बच्चे क्या। इंटरनेट और टेक्नोलॉजी अब हमारी दुनिया बन चुके हैं। ऐसे में हम ये भी नहीं कह सकते कि स्मार्टफोन या कंप्यूटर से दूर रहिए। पर अब सोचना तो पड़ेगा। क्योंकि ये डिजिटल दुनिया हमारे भीतर एक ही खिड़की से होकर आती है और वो खिड़की है हमारी दो आंखें।
आंखे दिमाग की खिड़की हैं। कुदरत की सबसे बड़ी नेमत हैं। इन आंखों से ही तो दुनिया देखते हैं। लेकिन अब इन आंखों से आप सबसे ज्यादा स्क्रीन देखते हैं। जी हां, तरह तरह के स्क्रीन। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक, मोबाइल स्क्रीन। दफ्तर में लैपटॉप या डेस्कटॉप का स्क्रीन। मनोरंजन के लिए टैब का स्क्रीन या टीवी का स्क्रीन। गेमिंग कंसोल का स्क्रीन। सिनेमा हॉल का स्क्रीन। पैसे निकालने के लिए ATM का स्क्रीन। रेलवे स्टेशन पर स्क्रीन, एयरपोर्ट पर स्क्रीन, बाजार में एडवर्टिजमेंट के स्क्रीन। स्क्रीन, स्क्रीन और स्क्रीन। कुदरत ने देखने के लिए क्या-क्या नहीं दिया। मगर क्या करें अब आंखों के सामने से एक स्क्रीन हटता नहीं कि दूसरा आ जाता है। मगर क्या आपने कभी सोचा है कि लगातार एकटक स्क्रीन देखने की ये मजबूरी या फिर कहें लत आपकी आंखों पर जुल्म है। आखिर क्या करें कि इस मजबूरी में कम से कम आंखों को कुछ राहत दे सकें।
आंखों पर स्क्रीन से जोर पड़ता है। स्क्रीन से आने वाली लाइट से तनाव होता है। पलकें ना झपकाने से आंखें सूखती हैं जबकि पलकें झपकने से दिमाग को राहत मिलती है। मोबाइल हमें नोमोफोबिया दे रहा है जिसमें मोबाइल के बिना डर का अहसास होता है और हम डर की वजह से बार-बार फोन देखते हैं। 24 में से 3-4 घंटे हम फोन देखते हैं। फोन देखने में पुरुष महिलाओं से आगे हैं। नतीजतन हमें कान, अंगूठे, कंधे का दर्द होता है। गर्दन में तकलीफ, नींद की कमी की समस्या आती है। इसका सबसे ज्यादा असर आंखों पर होता है।
TV, कंप्यूटर, स्मार्टफोन में ब्लू लाइट होती है। सूर्य की रोशनी में सबसे ज्यादा ब्लू लाइट होती है। स्क्रीन नजदीक से देखने के चलते हमारी आंखों पर असर होता है। स्क्रीन पर ज्यादा देर रहने से आंखें खराब होती हैं। आंखें ब्लू लाइट को रोकने में सक्षम नहीं होती। ब्लू लाइट से कॉन्ट्रास्ट घटता है। ब्लू लाइट से डिजिटल आई स्ट्रेन संभव है। रेटिना पर ब्लू लाइट का बुरा असर पड़ता है। बहुत ज्यादा ब्लू लाइट से अंधापन भी संभव है। इससे पीले लेंस वाले कंप्यूटर चश्मे से राहत मिल सकती है।
स्क्रीन पर ज्यादा टाइम देनें से वजन बढ़ना, खाने-पीने में गड़बड़ी, डिप्रेशन, आलस, नींद की कमी जैसी समस्याएं आ सकती हैं।
ऑफिस में कंप्यूटर पर ग्लेयर फिल्टर लगाएं। आस-पास तेज रोशनी ना रखें। खिड़कियों पर पर्दे लगाकर रखें। ये कोशिश करें की स्क्रीन चेहरे से 28-30 इंच दूर हो। स्क्रीन आई लेवल से थोड़ा नीचे रखें। कागज देखकर टाइप करने में सावधानी बरतें। कागज को स्क्रीन की ऊंचाई पर रखें। बार-बार सिर झुकाना उठाना ठीक नहीं होता। हर 20 मिनट पर स्क्रीन से आंख हटाएं और 20 मीटर की दूरी पर स्थित किसी चीज को 20 सेकेंड देखें। पलकें झपकाने में कंजूसी कभी ना करें। आखों में सूखापन हो तो आईड्रॉप डालें लेकिन आई ड्रॉप सिर्फ डॉक्टर की सलाह से चुनें।
सोशल मीडिया मेंटॉर बनें, मॉनिटर नहीं क्योंकि आजकल टेक्नोलॉजी जरूरी भी है। बच्चा कब क्या करता है इसकी जानकारी रखें। बच्चे को अपने कंट्रोल में सब कुछ दें। घर में WiFi है तो नियम से चलाएं, बंद करें। कोई नियम बनाएं तो उसका कठोरता से पालन करें। पैरेंटल कंट्रोल ऐप का इस्तेमाल करें।