3ए कैपिटल ने सेबी के एक आदेश के खिलाफ सिक्योरिटीज अपैलेट ट्राइब्यूनल (सैट) का दरवाजा खटखटाया है। सेबी ने 3ए कैपिटल को श्री सर्वराया शुगर्स के लिए ओपन ऑफर से उन शेयरहोल्डर्स को बाहर रखने की इजाजत नहीं दी थी, जो टारगेट कंपनी में अपने शेयर नहीं बेचना चाहते थे। 3ए कैपिटल की दलील थी कि चूंकि श्री सर्वराया शुगर्स के 65 फीसदी शेयरहोल्डर्स अपने शेयर बेचना नहीं चाहते और वह (3ए कैपिटल) पहले ही कंपनी में 25 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी खरीद चुकी है, जिससे ओपन ऑफर सिर्फ बाकी 5.85 फीसदी के लिए होना चाहिए।
3ए कैपिटल की दलील सेबी ने नहीं मानी
SEBI ने 3A Capital की इस दलील को मानने से इनकार कर दिया। सेबी ने कंपनी को ओपन ऑफर के मामले में यह रियायत नहीं दी। रेगुलेटर का मानना था कि 3ए कैपिटल को नियम के मुताबिक ओपन ऑफर पेश करना होगा। कंपनी के वकील ने सैट में कहा कि कंपनी को सिर्फ श्री सर्वराया शुगर्स के बाकी शेयरहोल्डर्स के लिए ओपन ऑफर पेश करने की जरूरत है न कि उन शेयरहोल्डर्स के लिए जो खरीदने या बेचने वाली कंपनी के साथ हैं।
3ए कैपिटल ओपन ऑफर में चाहती थी रियायत
श्री सर्वराया शुगर्स की प्रमोटर अर्चना प्रसाद किलारु ने अपने शेयर 3ए कैपिटल को बेचे थे, जबकि दूसरे प्रमोटर्स और शेयरहोल्डर्स ने अपने शेयर बेचने में दलिचस्पी नहीं दिखाई। ऐसे प्रमोटर्स और शेयरहोल्डर्स के पास श्री सर्वराया शुगर्स के 65 फीसदी शेयर हैं। इन शेयरहोल्डर्स ने अपनी इच्छा के बारे में मर्चेंट बैंकर के जरिए सेबी को बताया था। इसलिए 3ए कैपिटल की दलील थी कि उसे सिर्फ बाकी 5.85 शेयरहोल्डर्स के लिए ओपन ऑफर पेश करने की जरूरत है।
ओपन ऑफर से शेयहोल्डर्स को बाहर नहीं रखा जा सकता
मार्केट रेगुलेटर 3ए कैपिटल की दलील से सहमत नहीं था। उसने कहा कि उसके, कंपनी और मर्चेंट बैंक के बीच हुआ कम्युनिकेशन उस समय का है, जब 3ए कैपिटल के पास 25 फीसदी से कम हिस्सेदारी थी। एक बार जब कंपनी (श्री सर्वराया) में 3ए कैपिटल की हिस्सेदारी 25 फीसदी की सीमा को पार कर गई है तो उसे तय नियमों के तहत ओपन ऑफर पेश करना होगा। यह भी कि 65 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले प्रमोटर्स और शेयरहोल्डर्स को इस ओपन ऑफर से बाहर नहीं रखा जा सकता। सेबी ने अपनी दलील में कहा कि यह साबित करने के लिए ऐसी कोई जानकारी रिकॉर्ड में नहीं है कि ये प्रमोटर्स और शेयरहोल्डर्स ओपन ऑफर को एक्सेप्ट नहीं करेंगे।
ओपन ऑफर एक खास मकसद के लिए पेश किया जाता है
फिनसेक लॉ एडवाइजर्स के पार्टनर अनिल चौधरी ने कहा, "इस मामले में किसी तरह का एग्जेम्प्शन नहीं देने का सेबी का फैसला सही है। ओपन ऑफर का मतलब बाकी शेयहोल्डर्स को अपने शेयर उस कंपनी को बेचने का मौका देना है, जिसने दूसरी कंपनी का अधिग्रहण किया है। ऐसे प्रमोटर्स और शेयरहोल्डर्स अपने शेयर बेचने को तैयार है या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।"