अगर आप 10 लोगों को किसी मल्टीबैगर शेयर में पैसे लगाने की पक्की सलाह देते हैं तो ज्यादा से ज्यादा एक या दो लोग ही उसका फायदा उठाते हैं। यह कहा है अजय कायन (Ajay Kayan) ने । 1980 और 1990 के दशक में कायन का नाम कोलकाता (तब कलकत्ता) के मनी मार्केट और स्टॉक एक्सचेंज में काफी जानामाना था। कायन ने अपने दोस्त और मशहूर निवेशक राकेश झुनझुनवाला (Rakesh Jhunjhunwala) के बारे में कई खास बातें बताई हैं। झुनझुनवाला का 62 साल की उम्र में 14 अगस्त को देहांत हो गया।
कायन कहते हैं, "कई चीजें झुनझुनवाला को दूसरों से अलग करती थीं।" 65 साल के कायन को हर्षद मेहता का धुर विरोधी माना जाता था। मेहता को इंडियन स्टॉक मार्केट का पहला 'बिग बुल' माना जाता है। हालांकि, 1990 के दशक की शुरुआत में उन पर स्टॉक मार्केट में बड़ा स्कैम करने का आरोप लगा। इसे हर्षद मेहता स्कैम कहा जाता है।
कायन ने मनीकंट्रोल को बताया, "राकेश झुनझुनवाला से मेरी मुलाकात 1986 में हुई थी। तब वह इस इंडस्ट्री में नए थे। दूसरे नए लोगों की तरह वह अपना मार्केट में अपना नेटवर्क बनाने की कोशिश कर रहे थे। इसी सिलसिले में उनसे मेरी मुलाकात हुई।" तब कायन फाइनेंशियल मार्केट में अपनी मजबूत जगह बना चुके थे। इसकी वजह यह है कि उन्होंने काफी पहले 70 के दशक में अपना करियर शुरू किया था।
कायन बताते हैं कि झुनझुनवाला बहुत महत्वाकांक्षी थे। वह कहते हैं, "झुनझुनवाला एक चार्टर्ड अकाउंटेंट थे। वह तुरंत कंपनी की बैलेंसशीट को देख सटीक अनुमान लगा देते थे कि कंपनी ने आंकड़ों के मामलों में इमानदारी बरती है या नहीं। वह समय अलग था। इंफॉर्मेशन इतनी आसनी से नहीं मिलती थी...कंपनी की एनुअल रिपोर्ट को देखने के लिए होड़ मच जाती थी।"
उन्होंने बताया, "तब कंपनियां छह महीने में एक बार अपना फाइनेंशियल रिजल्ट पेश करती थीं। आज की तरह इनवेस्टर्स से मिलने में उनकी दिलचस्पी नहीं होती थी। आज कंपनियां एनालिस्ट्स और फंड मैनेजर्स से बातचीत करने में खुद दिलचस्पी दिखाती हैं। सभी इंफॉर्मेशन इनवेस्टर्स को उपलब्ध है।"
1980 और 1990 के दशक में जब कभी कायन मुंबई आते थे उनकी मुलाकात झुनझुनवाला से रोजाना होती थी। दोनों कई कंपनियों के बारे में बातचीत करते थे। कायन ने कहा कि हम निजी मसलों के बारे में भी बातचीत किया करते थे। हमारे रिश्ते बहुत अच्छे थे।
कायन ने कहा, "झुनझुनवाला ने शुरुआती पैसा शेयरों की शॉर्ट-सेलिंग से कमाया। वह मुझसे उन कंपनियों के बारे में ज्यादा चर्चा करते थे, जिनकी वैल्यूएशन ज्यादा थी और फिर वे उनमें शॉर्ट-सेलिंग करते थे। वह वक्त ऐसा था जब Bulls के मुकाबले Bears ज्यादा पैसे कमाते थे। तब बैंकों का इंटरेस्ट रेट बहुत ज्यादा हुआ करता था। बीएसई के बदला सिस्टम के जरिए लॉन्ग पॉजिशन को कैरी फॉरवर्ड करने पर 25-30 फीसदी (सालाना) खर्च आता था। इसके उलट ट्रेड सेटलमेंट टालने के लिए तैयार होने पर Bears को 25 से 30 फीसदी मिल जाता था।"
उन्होंने कहा कि तब इकोनॉमी के बारे में भी आज के मुकाबले खराब खबरें सुनने को ज्यादा मिलती थीं। इस वजह से कीमतें चढ़ती कम थीं और गिरती ज्यादा थीं। लेकिन Bears को भी पैसे कमाने के लिए मेहनत करनी पड़ती थी। कई महंगे शेयरों का वैल्यूएशन लंबे वक्त तक हाई बना रहता था। इसके अलावा प्रमोटर्स भी अपने शेयरों को सपोर्ट करने की कोशिश करते थे।
कायन ने कहा, "हर व्यक्ति की जिंदगी में ऐसा वक्त आता है जब उसके पास खोने के लिए बहुत कम और पाने के लिए बहुत ज्यादा होता है। लेकिन, कम ही लोग इस मौके को समझ पाते हैं। झुनझुनवाला ने शायद इस चीज को समझ ली थी। फिर उन्होंने इसका फायदा उठाया। उनमें रिस्क लेने की गजब की क्षमता थी। लेकिन, वह जिंदगी में किस्मत की भूमिका पर भी भरोसा करते थे। कई अच्छे ट्रेडर्स इसलिए बर्बाद हो गए, क्योंकि उन्हें लगता था कि वे बहुत होशियार हो चुके हैं। आप बतौर ट्रेडर चाहे कितना भी अनुभवी हो जाए, लेकिन सही मौके पर सही जगह होने के लिए कई दूसरी चीजों की जरूरत होती है।"
झुनझुनवाला ने 5000 रुपये के साथ 1985 में स्टॉक मार्केट में अपना करियर शुरू किया था। इस साल जुलाई में उनकी संपत्ति 5.5 अरब डॉलर पहुंच गई थी। टाइटन उनका सबसे अच्छा इनवेस्टमेंट था। यह दिलचस्प है कि वह करुर वैश्य बैंक के शेयरों के बारे में ज्यााद बात करते थे। वह 1990 के दशक से इस शेयर में निवेश बढ़ा रहे थे जब वह एक ट्रेडर थे।