आम तौर पर बैंकिंग और फाइनेंशियल सर्विसेज सेक्टर का इकोनॉमी और स्टॉक मार्केट में सबसे ज्यादा कंट्रिब्यूशन होता है। लेकिन, कोविड के बाद इकोनॉमी में रिकवरी और 2020 के स्टॉक मार्केट्स के निचले स्तर के बाद से स्थिति अलग रही है। कोविड के बाद इकोनॉमिक रिकवरी की वजह से अचानक डिमांड बढ़ गई। लेकिन रिटेल लोन की तेज ग्रोथ को छोड़ दिया जाए तो क्रेडिट ग्रोथ कमजोर रही। फाइनेंशियल स्टॉक्स के रिटर्न पर भी इसका असर पड़ा। पिछले साल सितंबर से पहले के 5 साल में निफ्टी फाइनेंशियल सर्विसेज इंडेक्स का रिटर्न 91 फीसदी, जबकि निफ्टी 50 का रिटर्न इस दौरान 129 फीसदी था।
कंपनियों ने पूंजीगत खर्च बढ़ाने से परहेज किया
कोविड के बाद क्रेडिट ग्रोथ (Credit Growth) सुस्त रहने की बड़ी वजह कॉर्पोरेट क्रेडिट रहा है। पहले सरकार ने अपना पूंजीगत खर्च काफी ज्यादा बढ़ाया। फिर, जियोपॉलिटिकल स्थितियों और आर्थिक अनिश्चितिता को देखते हुए प्राइवेट कंपनियों ने पूंजीगत खर्च बढ़ाने से परहेज किया। इसके अलावा कंपनियों के लिए प्राइवेट इक्विटी और डेट कैपिटल के जरिए पूंजी जुटाने का आसान रास्ता उपलब्ध था। स्टॉक मार्केट्स में तेजी को देखते हुए कंपनियों को आईपीओ/एफपीओ के रास्ते फंड जुटाना फायदेमंद लगा।
क्रेडिट-डिपॉजिट रेशियो बढ़ने से फंड की लागत बढ़ी
शुरुआत में रिटेल लोन की ग्रोथ अच्छी थी। लेकिन, आरबीआई के असेक्योर्ड रिटेल लोन और माइक्रोफाइनेंस लोन पर रिस्क वेटेज बढ़ा देने के बाद इसकी ग्रोथ भी घट गई। लंबे समय तक इंटरेस्ट रेट्स हाई बने रहने से स्थिति और बिगड़ गई। इसका सीधा असर NBFC पर पड़ा, जिन्हें कम कॉस्ट वाले डिपॉजिट का फायदा नहीं मिलता है। उधर, बैंकों की डिपॉजिट ग्रोथ भी सुस्त पड़ी। क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात बढ़ने से बैंकों के लिए फंड की लागत बढ़ गई।
कॉर्पोरेट क्रेडिट ग्रोथ अब तक रफ्तार नहीं पकड़ सकी है
पिछले साल सरकार के पूंजीगत खर्च की रफ्तार सुस्त पड़ी। यह प्राइवेट सेक्टर के लिए पूंजीगत खर्च बढ़ाने का बड़ा मौका था। लेकिन, जियोपॉलिटिकल स्थितियों और अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी ने अनिश्चितता बढ़ा दी। इससे शहरी इलाकों में मांग घटने लगी। इससे ग्रामीण इलाकों में डिमांड में रिकवरी का फायदा नहीं मिला। इस वजह से प्राइवेट सेक्टर का पूंजीगत खर्च और कॉर्पोरेट क्रेडिट ग्रोथ ने अब तक रफ्तार नहीं पकड़ी है।
गिरावट के बीच फाइनेंशियल सर्विसेज इंडेक्स चढ़ा
इस बीच, आरबीआई ने करीब दो साल तक रेपो रेट 6.5 फीसदी पर बनाए रखने के बाद इस साल फरवरी में इंटरेस्ट रेट में कमी की। उसने एनबीएफसी को लोन देने वाले बैंकों के लिए बढ़ाए गए रिस्क वेटेज को भी वापस ले लिया। इससे फंड की कॉस्ट में कमी आई है और एनबीएफसी के मार्जिन में इम्प्रूवमेंट दिखा है। इस बीच, स्टॉक मार्केट्स में गिरावट और SIP स्टॉपेज रेशियो बढ़ने से बैंकों के डिपॉजिट में इजाफा होने की उम्मीद बढ़ी है। इसका असर निफ्टी फाइनेंशियल सर्विसेज इंडेक्स पर दिखा है। सितंबर 2024 से अब तक यह करीब 4 फीसदी चढ़ा है, जबकि इस दौरान मार्केट के प्रमुख सूचकांकों में 7 फीसदी गिरावट आई है।
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क्या आपको निवेश करना चाहिए?
प्राइवेट सेक्टर का पूंजीगत खर्च अभी बढ़ता नहीं दिखा है। लेकिन, यह बढ़ेगा। इसका फायदा बैंकों को मिलेगा, जो एनबीएफसी के मुकाबले कंपनियों को ज्यादा लोन देते हैं। स्टॉक मार्केट का रिटर्न कम रहने से बैंकों के डिपॉजिट में अच्छी ग्रोथ दिख सकती है। सरकारी बैंकों के स्टॉक्स में पहले से तेजी दिख रही है। अगर इंडसइंड बैंक को छोड़ दिया जाए तो बैंकों की वैल्यूएशन को देखने से ऐसा लगता है कि उनके स्टॉक्स में तेजी की गुंजाइश बची हुई है। ऐसे में अच्छे बैंकिंग स्टॉक्स में निवेश से लंबी अवधि में अच्छा मुनाफा हो सकता है।