Market news: सोमवार, 7 अप्रैल को सरकारी तेल उत्पादक कंपनियों ONGC और Oil India के शेयरों में भारी गिरावट आई। ग्लोबल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतें कई साल के निचले स्तर पर पहुंच गई हैं। सऊदी अरब की कीमतों में कटौती रणनीति और डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ बढ़त से जुड़ी चिताओं के कारण क्रूड की कीमतों में कमी आई। ब्रेंट क्रूड करीब 4 फीसदी गिरकर 63.21 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया है। ये 2021 के बाद से इसका सबसे निचला स्तर है। वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) क्रूड चार साल में पहली बार 60 डॉलर के लेवल को तोड़ते हुए 59.79 डॉलर पर आ गया है। ग्लोबल डिमांड में मंदी की आशंकाओं के बीच पिछले सप्ताह भी ब्रेंट में 11 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी।
शेयर बाजार पर नजर डालें तो ONGC के शेयर इंट्राडे में 9.3 फीसदी गिरकर 205 रुपए पर आ गए, जबकि ऑयल इंडिया थोड़ी रिकवरी के पहले 9.15 फीसदी गिरकर 325 रुपए पर आ गया। ONGC इस समय सालाना आधार पर 10 फीसदी से ज्यादा नीचे है। वहीं, ऑयल इंडिया 2025 में अब तक 23 फीसदी से अधिक टूट चुका है।
कच्चे तेल की गिरती कीमतों से ONGC और ऑयल इंडिया को परेशानी क्यों?
ONGC और ऑयल इंडिया अपस्ट्रीम तेल कंपनियां हैं तो कच्चा तेल निकालती हैं। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों में बढ़त होने पर ही इनके कमाई और मुनाफे में बढ़त होती है। जब कच्चे तेल की कीमतें गिरती हैं तो इन कंपनियों की प्रति बैरल कमाई और मुनाफा कम हो जाता है। इसके अलावा,अगर रिफाइंड प्रोडक्ट्स की कीमतें तेजी से नहीं गिरती हैं, तो महंगी इन्वेंट्री रखने वाले रिफाइनरों को इन्वेंट्री घाटा उठाना पड़ सकता है।
विश्लेषकों को कच्चे तेल की मांग में भी कमजोरी की अशंका नजर आ रहा। इसको ध्यान में रखते हुए सऊदी अरब ने मई में एशिया के लिए अरब लाइट क्रूड की कीमतों में 2.3 डॉलर प्रति बैरल की कटौती की है। इस कदम के साथ-साथ ओपेक+ देशों द्वारा उत्पादन में भारी बढ़त ने आपूर्ति की अधिकता की आशंकाओं को भी जन्म दिया है।
बाजार की परेशानी को और बढ़ाते हुए, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तमाम देशों पर भारी टैरिफ लगाकर ग्लोबल इकोनॉम में मंदी का डर बढ़ा दिया है। इसके चलते आगे कच्चे तेल मांग घट सकती है।
कच्चे तेल के ओवरसोल्ड जोन के करीब पहुंचने के साथ अब कुछ टेक्निकल पुलबैक से इंकार नहीं किया जा सकता है,लेकिन निवेशक सतर्क बने हुए हैं। ग्लोबल ब्रोकरेज फर्मों को उम्मीद है कि अगर जियोपोलिटिकल स्थितियां खराब बनी रहती हैं तो तेल में वोलैटिलिटी बनी रहेगी। मार्केट एक्सपर्ट्स का कहना है कि जब तक कच्चे तेल की कीमत 70 डॉलर से ऊपर स्थिर नहीं हो जाती तब तक ONGC और ऑयल इंडिया जैसी तेल निकालने वाली कंपनियों को दबाव का सामना करना पड़ सकता है। इन पर कीमतों में नरमी और तेल की बढ़ती वैश्विक आपूर्ति की वजह से दबाव देखने को मिलेगा।